Saturday, July 19, 2025
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Housefull 5 Review: थोड़ा हंसाती, थोड़ा बोर करती है 'हाउसफुल 5', सस्पेंस की गलियों से गुजरता है सरप्राइज भरा क्लाइमेक्स

लंबी-चौड़ी कास्ट वाली हाउसफुल 5 आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म को दो अलग-अलग क्लाइमेक्स के साथ रिलीज किया गया है। फिल्म की कहानी कितनी दमदार है जानने के लिए पढ़े पूरा रिव्यू।

जया द्विवेदी
Updated : June 06, 2025 15:51 IST
housefull 5
Photo: INSTAGRAM हाउसफुल की कास्ट।
  • फिल्म रिव्यू: हाउसफुल 5
  • स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
  • पर्दे पर: 06.06.2025
  • डायरेक्टर: तरुण मनसुखानी
  • शैली: सस्पेंस कॉमेडी

साल 2010 में आई पहली 'हाउसफुल' फिल्म ने अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, दीपिका पादुकोण, लारा दत्ता और अर्जुन रामपाल जैसे सितारों की बदौलत बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया था। मजेदार कॉमेडी, सस्पेंस और जबरदस्त स्टार कास्ट के चलते यह फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आई थी। इसके बाद यह एक चर्चित फ्रैंचाइज बन गई और अब तक इसके चार पार्ट आ चुके हैं। अब 6 जून 2025 को 'हाउसफुल 5' बड़े पर्दे पर रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म का ट्रेलर ही इतना हंसी से भरपूर था कि दर्शकों की उम्मीदें सातवें आसमान पर पहुंच गई थीं, लेकिन जैसा कि कहा जाता है, किसी फिल्म को उसके ट्रेलर से नहीं आंकना चाहिए, ठीक ऐसा ही इस फिल्म के साथ भी देखने को मिल रहा है। फिल्म में लंबी चौड़ी स्टारकस्ट क्या हर कसर पूरी कर पाई और क्या दर्शकों को वादे के अनुसार हंसा पाई ये आपको इस रिव्यू में जानने को मिलेगा। 

फिल्म की कहानी

'हाउसफुल 5' की कहानी रंजीत नाम के एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने 100वें जन्मदिन पर एक आलीशान क्रूज पार्टी आयोजित करता है, लेकिन इसी पार्टी के दौरान उसकी मौत हो जाती है। मौत के बाद रंजीत एक होलोग्राम वसीयत के जरिए अपने सौतेले बेटे देव (फरदीन खान) को बताता है कि उसकी 69 बिलियन पाउंड की संपत्ति उसके आधिकारिक उत्तराधिकारी जॉली को मिलनी चाहिए। अब कहानी में ट्विस्ट आता है जब क्रूज पर एक नहीं बल्कि तीन-तीन जॉली (अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, अभिषेक बच्चन) अपनी-अपनी पत्नियों (नरगिस फाखरी, सोनम बाजवा, जैकलीन फर्नांडिस) के साथ आ धमकते हैं और सभी यह दावा करते हैं कि वही असली वारिस हैं। इसी बीच एक मर्डर हो जाता है और सभी जॉली उस हत्या में संदिग्ध बन जाते हैं। अब सवाल यह उठता है कि असली हत्यारा कौन है? रंजीत के आस-पास हर किसी के पास उसे मारने का कारण है, फिर चाहे वो उसके कंपनी के बोर्ड मेंबर हों या उसका परिवार।

कॉमेडी और मर्डर मिस्ट्री का यह मेल बॉलीवुड में बहुत कम देखने को मिलता है। यही कारण है कि फिल्म के ट्रेलर ने दर्शकों की दिलचस्पी और भी बढ़ा दी थी। वैसे सस्पेंस कहानी में अंत तक है और हंसी के फुवारे भी हैं, बस कहानी में कुछ किरदार अगर कम होते और फिल्म की कहानी को इतना न खींचा जाता तो पक्का ये एक ए वन फिल्म बन सकती थी। फिल्म का क्लाइमेक्स जोरदार है। चौर मौत से गुजरते हुए फिल्म सॉलिड क्लाइमेक्स तक पहुंचती है। फिल्म का क्लाइमेक्स ही जान है। वैसे आपको बता दें कि मेकर्स ने फिल्म की कहानी में दो क्लाइमेक्स रखे हैं। अगर आप टिकट खरीदते समय हाउसफुल 5 ए देख रहे हैं तो आपको अलग क्लाइमेक्स देखने को मिलेगा और अगलर आप हाउसफुल 5 बी देख रहे हैं तो क्लाइमेक्स अलग होगा। ये पूरा रिव्यू हाउसफुल 5 ए के अनुसार लिखा गया है। 

कॉमेडी का जबरदस्त तड़का, लेकिन स्लो है कहानी

फिल्म की शुरुआत काफी मजेदार है। पहले हाफ में कॉमेडी और सस्पेंस का बेहतरीन तालमेल दिखाया गया है। अक्षय कुमार, रितेश देशमुख और अभिषेक बच्चन की तिकड़ी स्क्रीन पर छा जाती है। उनके डायलॉग्स, एक्सप्रेशन्स और टाईमिंग दर्शकों को हंसी से लोटपोट कर देते हैं। फिल्म की खास बात यह है कि इसमें पुरानी हाउसफुल फिल्मों की यादें भी ताजा की गई हैं। ‘प्राडा का बेटा गुच्ची’ और बंदर की वापसी जैसे दृश्य पुरानी फिल्मों से जुड़े दर्शकों को एक खास कनेक्शन महसूस कराते हैं। खास तौर पर अक्षय के किरदार को हाउसफुल के पहले भाग से जोड़ा गया है।

एडल्ट कॉमेडी को भी इस फिल्म में अच्छे तरीके से पेश किया गया है। न तो वो बहुत ओवर लगता है और न ही जबरदस्ती। पहले हाफ की राइटिंग शुरुआत में कसी हुई है और यह दर्शकों को बांधे रखने में सफल होती है, लेकिन इंटरवल की ओर बढ़ते हुए कहानी बिखरती है और लगता है कि इसे खींचा जा रहा है, इंटरवल के बाद फिल्म की पकड़ ढीली ही नजर आती है। दूसरा हाफ को और साधा जा सकता था, जिसकी कमी दिखी और ऐसा साफ दिख रहा है कि हर किरदार को भरपूर स्क्रीन स्पेस देने की कोशिश के चलते ही फिल्म बोझिल हुई है। तमाम कोशिशों के बाद भी अंत में यही लगता है कि कुछ किरदार चंद डायलॉग्स के साथ सिर्फ फिलर बनकर ही रह गए। जहां बीच में कहानी की दिशा भटकती हैं, वहीं कलाइमेक्स तक पहुंचने चंद मिनट पहले ही फिल्म फिर से लय ताल पकड़ती नर आती है। कुछ दृश्यों को छोड़ दें तो ज्यादातर सीन प्रभावी हैं।

फिल्म का क्लाइमेक्स चौंकाता भी है और हंसाता भी है। अंत में बॉबी देओल की एंट्री और अभिषेक बच्चन वाला ट्विस्ट सबसे सटीक बैठा है। हाउसफुल फ्रैंचाइजी की पहचान ही तर्क से परे मस्ती रही है, लेकिन इस बार थोड़ा तर्क भी है, जो इसमें रोमांच पैदा कर रहा है, लेकिन खिंचा हुआ पार्ट इसे बोझिल करता है। 165 मिनट यानी लगभग तीन घंटे ही इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है। किरदारों की भरमार आग में घी का काम कर रही है। क्लाइमेक्स तक पहुंचने से पहले अगर फिल्म बोर न करती और सधी रहती तो मेकर्स के दावे सार्थत सिद्ध होते, लेकिन अंत में आपके हाथ एक सवाल ही रह जाता है कि आखिर इतने लोगों को क्यों भरा गया।

सितारों की भरमार, लेकिन कुछ ही चमके

इस फिल्म में कुल 17 कलाकार प्रमुख भूमिकाओं में हैं, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभाव छोड़ते हैं, जैकी श्रॉफ और संजय दत्त। दोनों को कुछ बेहतरीन सीन दिए गए हैं और अपने अनुभव से इन्होंने उन्हें शानदार ढंग से निभाया है। अक्षय कुमार हमेशा की तरह दमदार हैं और उनके अजीबो-गरीब चेहरे के हावभाव कई बार दर्शकों को जोर से हंसने पर मजबूर कर देते हैं। रितेश देशमुख और अभिषेक बच्चन भी अपनी कॉमिक टाइमिंग से प्रभावित करते हैं। फीमेल लीड्स, नरगिस फाखरी, जैकलीन फर्नांडिस और सोनम बाजवा, ग्लैमरस और खूबसूरत लगती हैं। फिल्म में उन्हें पूरी तरह से सिर्फ ग्लैमर के इलिमेंट के तौर पर दिखाया गया और इसमें तीनों ही कामयाब हैं। पहले हाफ में उन्हें कुछ अच्छे कॉमिक सीन्स भी मिले हैं, लेकिन दूसरे हाफ में उनकी मौजूदगी लगभग सिमट जाती है।

सहायक भूमिकाओं की बात करें तो जॉनी लीवर एकमात्र ऐसे कलाकार हैं जिन्हें अच्छे दृश्य और पंचलाइंस मिले हैं। बाकी कलाकार जैसे फरदीन खान, श्रेयस तलपड़े, डिनो मोरिया, चित्रांगदा सिंह, चंकी पांडे और निकितिन धीर को आजमाया ही नहीं गया है। श्रेयस तलपड़े पूरी तरह से गायब नजर आते हैं। सौदर्य शर्मा फिल्म में क्यों हैं, ये मेकर्स ही जानते होंगे, चंद एडल्ट कॉमेडी वाले दृश्यों में ही उनकी प्रेजेंस नजर आती है। फरदीन खान के कुछ ठीकठाक सीन्स हैं, लेकिन उनका प्रभाव खास नहीं है। निकितिन धीर के पास एक भी डायलॉग नहीं हैं। नाना पाटेकर का कैमियो छोटा होते हुए भी यादगार है। वो फिल्म में आते ही अपना जोरदार इंपैक्ट डालते हैं और सबके असर को फीका कर देते हैं। सीरियस रहते हुए भी वो हंसी के कुछ एलिमेंट देते हैं। इसके अलवा फिल्म के अंत में बॉबी देओल भी सरप्राइज देते नजर आ रहे हैं। बॉबी के बारे में ज्यादा नहीं बताएंगे ताकी आपका मजा किरकिरा न हो। 

म्यूजिक, निर्देशन और लेखन-आधा सफल प्रयास

फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले साजिद नाडियाडवाला ने लिखा है और निर्देशन किया है तरुण मनसुखानी ने। पहले हाफ में दोनों का काम सराहनीय है, लेकिन दूसरे हाफ में स्क्रिप्ट ढीली पड़ जाती है। मर्डर मिस्ट्री को कॉमेडी के साथ संतुलित करना एक कठिन काम है और यहीं पर यह फिल्म पूरी तरह सफल नहीं हो पाती। हाउसफुल फ्रैंचाइजी में गानों की हमेशा अहम भूमिका रही है। चाहे वो 'अनारकली डिस्को चली' हो या 'धन्नो', संगीत हमेशा चार्टबस्टर रहा है, लेकिन हाउसफुल 5 में सिर्फ एक ही गाना  'लाल परी', ऐसा है जो आपके दिमाग पर असर करेगा, बाकी तीन और गाने हैं जो सुनने में कान को अच्छे जरूर लगते हैं, लेकिन आपके साथ थिएटर से बाहर घर नहीं जाएंगे।

फाइनल वर्डिक्ट

हाउसफुल 5 एक बढ़िया आइडिया के साथ शुरू होती है और पहले हाफ में दर्शकों को खूब हंसाती है, लेकिन इंटरवल की ओर बढ़ते हुए अपनी चमक खो देती है। मर्डर मिस्ट्री को लेकर जो उत्सुकता पहले हाफ में बनाई जाती है, वह अंत तक नहीं टिक पाती, फोकस छूटता है, लेकिन प्रभावी क्लाइमेक्स आपके पैसे वेस्ट नहीं होने देगा। अगर आप हाउसफुल स्टाइल की गैर-तार्किक, हल्की-फुल्की कॉमेडी के फैन हैं, तो यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है, खासकर अपनी शानदार स्टारकास्ट के लिए।

नोट: हाउसफुल 5 के दो वर्जन हाउसफुल 5 A और हाउसफुल 5 B रिलीज किए गए हैं, जिनमें केवल हत्यारे का अंतर है। ऊपर दी गई समीक्षा हाउसफुल 5 A पर आधारित है।

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