Friday, April 26, 2024
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अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाकर आधुनिक भारत के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं जस्टिस गोगोई

 न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में अपना कार्यकाल पूरा होने से महज एक सप्ताह पहले वर्षों पुराने अयोध्या विवाद पर शनिवार को फैसला सुनाकर अपना नाम आधुनिक भारत के इतिहास में दर्ज करा लिया है।

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: November 09, 2019 23:43 IST
Jusitce Ranjan Gogoi- India TV Hindi
Jusitce Ranjan Gogoi

नयी दिल्ली: न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में अपना कार्यकाल पूरा होने से महज एक सप्ताह पहले वर्षों पुराने अयोध्या विवाद पर शनिवार को फैसला सुनाकर अपना नाम आधुनिक भारत के इतिहास में दर्ज करा लिया है। देश की शीर्ष अदालत के अस्तित्व में आने के पहले से चल रहे इस राजनीतिक एवं धार्मिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर गोगोई का फैसला ना सिर्फ न्यायिक इतिहास के पन्नों में बल्कि जनमानस के मन में भी बस गया है। 

उच्चतम न्यायालय की स्थापना 1950 में हुई। अपनी स्पष्टवादिता, मुखरता और निडरता के लिए प्रसिद्ध गोगोई की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अध्योध्या मामले पर 40 दिन लंबी सुनवाई की। इस दौरान मामले से जुड़े सभी पक्षों की ओर से पेश हुए देश के सर्वश्रेष्ठ वकीलों ने अपनी दलीलों के माध्यम से न्यायमूर्ति गोगोई के धैर्य की खूब परीक्षा ली। देश के प्रधान न्यायाधीश के रूप में तीन अक्टूबर, 2018 को शपथ लेने वाले गोगोई भारतीय न्यायपालिका के शीर्ष पद पर पहुंचने वाले पूर्वोत्तर राज्यों के पहले व्यक्ति हैं। उनका कार्यकाल 13 महीने से थोड़ा ज्यादा का रहा जो 17 नवंबर, 2019 को समाप्त हो रहा है। उन्होंने एकदम स्पष्ट कर दिया था कि किसी भी सूरत में अयोध्या मामले पर फैसला 17 नवंबर से पहले आ जाएगा। 

तीन अक्टूबर, 2018 को पद संभालने के बाद और उससे पहले भी न्यायमूर्ति गोगोई को कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा, लेकिन उससे उनका समस्याओं का सीधा समाधान करने के तरीके पर कोई असर नहीं पड़ा। गोगोई पहले से ही न्यायालय में न्यायाधीश थे। न्यायमूर्ति गोगोई को कठोर और कभी-कभी चकित करने वाले फैसले लेने के लिए जाना जाता है। अयोध्या मामले के फैसले में यह दोनों ही बातें नजर आयीं। उन्होंने ना सिर्फ दलीलों को बेवजह लंबा खिंचने से रोका बल्कि ‘‘बस अब बहुत हो गया’ कह कर पूरे मामले की सुनवाई तय तिथि (18 अक्टूबर) से दो दिन पहले 16 अक्टूबर को ही पूरी कर ली। लोगों को चकित करने का अपना अंदाज बनाए रखते हुए गोगोई ने शुक्रवार रात को यह कहा कि अयोध्या मामले में फैसला शनिवार सुबह साढ़े दस बजे सुनाया जाएगा, जबकि सभी अटकलें लगा रहे थे कि न्यायमूर्ति गोगोई अपना कार्यकाल समाप्त होने से दो-तीन दिन पहले यह फैसला सुनाएंगे। 

अयोध्या जैसे विवादित मसले की सुनवाई करने के अलावा न्यायमूर्ति गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की निगरानी की और सुनिश्चित किया कि वह तय समय सीमा में पूरी हो जाए। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति गोगोई असम के रहने वाले हैं। एनआरसी को लेकर तमाम तरह के विवाद हुए, लेकिन न्यायमूर्ति गोगोई अपने रुख पर अडिग रहे और घुसपैठियों की पहचान करने के अपने फैसले का पिछले रविवार को सार्वजनिक तौर पर बचाव भी किया।

बतौर न्यायाधीश उन्होंने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यशैली के खिलाफ न्यायालय के तीन अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ मिलकर 12 जनवरी, 2018 को संवाददाता सम्मेलन करके विवाद को जन्म दिया। बाद में उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान कहा ‘‘स्वतंत्र न्यायाधीश और मुखर पत्रकार लोकतंत्र की पहली रक्षा पंक्ति हैं।’’ उसी कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका की संस्था आम लोगों की सेवा करते रहे इसके लिये ‘‘सुधार नहीं बल्कि क्रांति की जरूरत है।’’ बात अगर प्रशासन की करें तो बतौर प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोगोई ने गलती करने वाले कुछ न्यायाधीशों के खिलाफ कठोर फैसले लिए, उनके तबादले किए। यहां तक कि इस दौरान उच्च न्यायालय की एक महिला मुख्य न्यायाधीश को इस्तीफा भी देना पड़ा। 

न्यायमूर्ति गोगोई बतौर न्यायाधीश उस पीठ की भी अध्यक्षता की थी, जिसने न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के ब्लॉग पर टिप्पणियों को लेकर उनके खिलाफ चल रही अवमानना की कार्रवाई पर उनकी माफी सुनी, स्वीकार की और मुकदमे को बंद किया। असम के डिब्रूगढ़ में 18 नवंबर, 1954 में जन्मे न्यायमूर्ति गोगोई ने 1978 में बतौर वकील अपना पंजीकरण कराया था। वह 28 फरवरी 2001 को गुवाहाटी उच्च न्यायालय के स्थाई न्यायाधीश नियुक्त हुए। उनका नौ सितंबर, 2010 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में तबादला हो गया। अगले साल 12 फरवरी, 2011 को उन्हें पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। वह 23 अप्रैल, 2012 को पदोन्नत होकर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बने।

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