Wednesday, May 15, 2024
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्भया मामले में केंद्र की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्भया मामले में केंद्र की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा। न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने कहा कि सभी पक्षों द्वारा अपनी दलीलें पूरी करने के बाद आदेश पारित किया जाएगा।

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: February 02, 2020 19:08 IST
Nirbhaya- India TV Hindi
Image Source : FILE दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्भया मामले में केंद्र की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्भया मामले में केंद्र की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा। न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने कहा कि सभी पक्षों द्वारा अपनी दलीलें पूरी करने के बाद आदेश पारित किया जाएगा। इससे पहले, केंद्र सरकार ने निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में चार दोषियों को फांसी की सजा में अनिश्चितकालीन रोक को 'कानूनी प्रक्रिया में रोक लगाने वाला जानबूझकर, सुनियोजित और सोचा-समझा काम' बताया। सरकार ने मांग करते हुए कहा कि फांसी में बिल्कुल देरी नहीं होनी चाहिए।

केंद्र की तरफ से महाअधिवक्ता तुषार मेहता ने सप्ताहांत में विशेष कोर्ट सुनवाई के दौरान न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत से कहा, "समाज और पीड़िता के हित में इस मामले में कोई देरी नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का भी कहना है कि इससे दोषी पर अमानवीय प्रभाव पड़ेगा इसलिए इसमें कोई देरी नहीं होनी चाहिए।" महाधिवक्ता ने कोर्ट में एक चार्ट भी पेश किया, जिसमें चारों दोषियों द्वारा अभी तक अपनाए गए कानूनी उपायों की विस्तृत जानकारी थी।

कोर्ट दिसंबर 2012 में मेडिकल की छात्रा के दुष्कर्म और हत्या के दोषियों- विनय, अक्षय, मुकेश और पवन की फांसी पर रोक लगाने वाले सत्र न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली गृह मंत्रालय की याचिका पर सुनवाई कर रहा थी। महाधिवक्ता मेहता ने कहा, "यह कानूनी प्रक्रिया को विफल करने के लिए जानबूझकर, सुनियोजित और सोची-समझी योजना है। मुकेश ने सामान्य याचिका दायर की जिसे ट्रायल कोर्ट ने गलती से स्वीकार कर लिया। दया का न्याय क्षेत्र व्यक्तिगत है।"

दोषियों को एक फरवरी को सुबह छह बजे फांसी दी जाने वाली थी। मुकेश ने दिल्ली हाईकोर्ट में यह तर्क देते हुए एक आवेदन किया कि अन्य दोषियों ने अभी कानूनी उपाय नहीं अपनाए हैं और उन्हें अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती। मुकेश और विनय के सभी कानूनी हथकंडे समाप्त हो चुके हैं। हालांकि अक्षय की दया याचिका अभी राष्ट्रपति के समक्ष लंबित है। पवन ने अभी तक दया याचिका दायर नहीं की है, जो उसका अंतिम संवैधानिक उपाय है। फांसी की सजा पाए चारों दोषियों के खिलाफ हमला जारी रखते हुए मेहता ने कहा कि एक सहदोषी अपनी सिर्फ 'गणनात्मक निष्क्रियता' से कोर्ट के आदेश को रोक सकता है। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने दोषी द्वारा दायर सामान्य अपील गलती से 'दया' याचिका समझ लिया।

इनपुट- भाषा/IANS

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