
शिमला: कोटखाई में वर्ष 2017 में 16 साल की नाबालिग से गैंगरेप के आरोपी की पुलिस हिरासत में हुई मौत के मामले में चंडीगढ़ की सीबीआई कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। अदालत ने इस मामले में तत्कालीन आईजी जाहुर हैदर जैदी समेत 8 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया है। एक अधिकारी और शिमला के पूर्व SP नेगी को बरी कर दिया गया।
अदालत ने पूर्व IG जाहुर जैदी के अलावा मनोज जोशी, राजिंदर सिंह, दीप चंद शर्मा, मोहन लाल, सूरत सिंह, रफी मोहम्मद, रंजीत स्टेटा को दोषी करार दिया है। घटना 4 जुलाई, 2017 को कोटखाई क्षेत्र से 16 साल की लड़की गायब हो गई थी और 6 जुलाई को उसकी लाश हलैला जंगलों में मिली थी। पोस्टमार्टम में रेप की पुष्टि हुई थी। इस केस के आरोपी की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी। अब अदालत ने आरोपी पुलिसवालों को दोषी करार दिया है। इस मामले में 27 जनवरी को सजा सुनाई जाएगी।
जैदी और सात अन्य पुलिसकर्मी हुए थे गिरफ्तार
सीबीआई के लोक अभियोजक अमित जिंदल ने बताया कि आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के साथ 120-बी, 330 (स्वीकारोक्ति करवाने के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाना), 348 (स्वीकारोक्ति करवाने के लिए गलत तरीके से बंधक बनाना) और 195 (झूठे साक्ष्य देना) सहित विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया है। सूरज की हिरासत में मौत के मामले में जैदी और सात अन्य को गिरफ्तार किया गया था। सूरज को 18 जुलाई, 2017 को कोटखाई पुलिस थाने में मृत पाया गया था। चार जुलाई, 2017 को कोटखाई में एक 16 वर्षीय लड़की लापता हो गई थी और उसका शव दो दिन बाद छह जुलाई को हलैला के जंगलों में मिला था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बलात्कार और हत्या की पुष्टि हुई और मामला दर्ज किया गया।
हिमाचल हाईकोर्ट ने सीबीआई को सौंपी थी जांच
राज्य में भारी जनाक्रोश के बीच, तत्कालीन राज्य सरकार ने जैदी की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल का गठन किया था। एसआईटी ने छह लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें से एक सूरज की पुलिस हिरासत में मौत हो गई। पुलिस अधिकारियों ने सूरज की हत्या के लिए राजिंदर (सामूहिक बलात्कार मामले के एक आरोपी) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने दोनों मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी। इसके बाद सीबीआई ने हिरासत में हुई मौत के सिलसिले में जैदी, डीसीपी जोशी और अन्य पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया। सीबीआई ने आपराधिक साजिश, हत्या, झूठे साक्ष्य गढ़ने, सबूत नष्ट करने, कबूलनामा लेने के लिए पुलिस हिरासत में यातना देने, झूठे रिकॉर्ड तैयार करने आदि के लिए गहन जांच के बाद आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। बाद में, शीर्ष अदालत ने मई 2019 में हिरासत में हुई मौत से संबंधित मामले को शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया। (इनपुट-पीटीआई)