Sunday, April 28, 2024
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थाईलैंड में अजीबोगरीब घटना, चुनाव जीतने वाली पार्टी के नेता होकर भी पिटा लिमजारोएनराट नहीं बन पा रहे प्रधानमंत्री

थाईलैंड में चुनाव जीतकर भी पिटा लिमजारोएनराट प्रधानमंत्री नहीं बन पा रहे। थाई संसद ने उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ मतदान कर दिया है। इससे मामला उलझ गया है। अभी मई में थाईलैंड में चुनाव हुए थे, जिसमें लिमजारोएनराट की पार्टी ने चुनाव जीत लिया था। मगर उन्हें अब दोबारा पीएम बनने से रोक दिया गया है।

Dharmendra Kumar Mishra Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published on: July 20, 2023 7:11 IST
 पिटा लिमजारोएनराट, थाइलैंड के पीएम उम्मीदवार। - India TV Hindi
Image Source : AP पिटा लिमजारोएनराट, थाइलैंड के पीएम उम्मीदवार।

थाईलैंड की राजनीति में अजीबोगरीब घटना घटी है। यहां चुनाव जीतने वाली पार्टी के नेता होकर भी पिटा लिमजारोएनराट प्रधानमंत्री नहीं बन पा रहे। उनकी उम्मीदवारी को ही बैन कर दिया गया है। थाईलैंड की संसद ने मई के आम चुनाव में पहले स्थान पर रहने वाली प्रगतिशील ‘मूव फॉरवर्ड पार्टी’ के नेता की दूसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति के प्रस्ताव के खिलाफ बुधवार को मतदान किया है। पिटा लिमजारोएनराट ने प्रतिनिधि सभा में अधिकांश सीटों पर कब्जा करने वाली पार्टियों का एक गठबंधन बनाया था। प्रधानमंत्री पद के लिए उनका नामांकन हालांकि पिछले सप्ताह प्रतिनिधि सभा और सीनेट के संयुक्त मतदान में टिक नहीं पाया।

रूढ़िवादी सैन्य-नियुक्त सीनेटरों (सांसद) ने वैचारिक मतभेदों पर अपना समर्थन देने से इनकार कर दिया था। संयुक्त सत्र में बुधवार को इस बात पर बहस हुई कि क्या पिटा को दूसरी बार नामांकित किया जा सकता है, और सदन के अध्यक्ष वान मुहम्मद नूर माथा ने इस प्रश्न को संयुक्त मतदान के लिए रखा। उन्हें दोबारा चुनाव लड़ने से रोकने का प्रस्ताव 312 के मुकाबले 395 मतों से पारित हो गया। आठ सासंदों ने मतदान की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया। अध्यक्ष ने पत्रकारों को बताया कि दूसरे दौर का मतदान 27 जुलाई को होना है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

थाई राजनीति विशेषज्ञों ने कहा कि पिटा का पतन वस्तुतः 2017 के संविधान द्वारा पूर्व निर्धारित था, जो सैन्य शासन के तहत अधिनियमित किया गया था और गैर-निर्वाचित सीनेटरों को प्रधानमंत्रियों की पुष्टि करने में भूमिका देने जैसे उपायों के साथ स्थापित शाही आदेश की चुनौतियों को कम करने के लिए बनाया गया था। कानून का विशिष्ट लक्ष्य थाकसिन शिनावात्रा थे, जिन्हें सेना ने 2006 के तख्तापलट में बाहर कर दिया था, लेकिन नियमों का इस्तेमाल किसी भी खतरे के खिलाफ किया जा सकता है। पिटा को बुधवार को लगा यह दूसरा झटका था। इससे पहले संवैधानिक अदालत ने उन्हें संसद से तब तक निलंबित कर दिया जब तक इस पर फैसला नहीं आ जाता कि उन्होंने चुनाव कानून का उल्लंघन किया है या नहीं।

जेल भी जा सकते हैं पिटा

हालांकि अदालत की घोषणा के बावजूद पिटा को प्रधानमंत्री के रूप में नामांकन और चयन की अनुमति मिल सकती थी, लेकिन संसद की कार्रवाई के बाद इस संभावना पर विराम लग गया और पिटा कानूनी झमेले में फंस गए। अब अगर अदालत का फैसला उनके खिलाफ आता है तो उन्हें जेल भी हो सकती है। इंग्लैंड के बर्मिंघम विश्वविद्यालय के रिसर्च फेलो और सेना की सत्तावादी राजनीति के बारे में एक पुस्तक के लेखक पेट्रा एल्डरमैन ने कहा, “यहां मुख्य मुद्दा यह है कि थाईलैंड की रूढ़िवादी अधिष्ठान चुनावों में प्रतिस्पर्धा करके सत्ता हासिल करने में असमर्थ है।” क्या उन्हें कानूनी तौर पर दोबारा नामांकित किया जा सकता है, पिटा ने इस मुद्दे पर बहस के दौरान कहा कि वह अदालत के आदेश का पालन करेंगे।

अपनी पार्टी की चुनावी जीत के संदर्भ में उन्होंने कहा, “मुझे लगता है थाईलैंड बदल गया है और 14 मई के बाद से यह कभी भी पहले जैसा नहीं रहेगा।” उन्होंने कहा, “जनता आधी जंग जीत चुकी है। अभी आधी बाकी है। यद्यपि मैं अभी अपना कर्तव्य नहीं निभा पाऊंगा, मैं सभी सदस्यों से कहना चाहूंगा कि वे अब से लोगों की देखभाल करने में मदद करें। (भाषा)

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