Thursday, May 16, 2024
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राज्यसभा में कल पेश किया जाएगा तीन तलाक बिल, मोदी सरकार की होगी अग्निपरीक्षा

तीन तलाक पर पर मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 बिल कल राज्य सभा में पेश किया जाएगा.

India TV News Desk Written by: India TV News Desk
Updated on: January 02, 2018 10:36 IST
Triple Talaq- India TV Hindi
Triple Talaq

तीन तलाक पर पर मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 बिल कल राज्य सभा में पेश किया जाएगा. लोक सभा में ये बिल पहले ही पारित हो चुका है लेकिन राज्य सभा में बीजेपी के पास बहुमत नहीं है इसलिए बिल पास कराना मोदी सरकार के लिए टेड़ी खीर होगा. इस दौरान सरकार और विपक्षी दल आमने-सामने हो सकते हैं.

बिल में एक साथ तीन तलाक को ग़ैर क़ानूनी और ग़ैर ज़ममानती अपराध क़रार देने का प्रावधान है. क़ानून बनने के बाद एक बार में तलाक बोलकर तलाक़ लेने वाले को तीन साल की सज़ा और जुर्माना हो सकता है. सरकार ने बिल को पास कराने के लिए विपक्षी दलों से बात की है.

दरअसल लोकसभा में सरकार के पास ज़बरदस्त बहुमत है जिसकी वजह से आसानी से बिल पास करा लिया हालंकि असदुद्दीन ओवैसी समेत इक्का-दुक्का सांसदों ने इसका विरोध किया लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा. राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है और काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि इस मसले पर कांग्रेस का रुख़ क्या रहता है? बिल पर रुख़ तय करने के लिए विपक्षी दलों की मंगलवार सुबह बैठक होगी.

कांग्रेस लोक सभा में बिल का समर्थन कर चुकी है

कांग्रेस ने लोक सभी में बिल का समर्थन किया था हालंकि उसे बिल के कुछ प्रावधानों को लेकर ऐतराज़ था. सरकार के लिए राहत की बात ये है कि गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता अपना था जिसका उसे फ़ायदा भी हुआ था. ऐसे में राज्य सभा में वह तीन तलाक बिल को रोककर अपने इस इमेज को धराशायी नहीं करना चाहेगी. लोकसभा में जब यह बिल पारित हुआ, तब राहुल गांधी सदन में मौजूद नहीं थे. माना जा रहा है कि तीन तलाक बिल का विरोध करके राहुल गांधी अपनी छवि को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं.

गले की फ़ांस है शाहबानो मामला कांग्रेस के लिए

कांग्रेस चाहकर भी तीन तलाक बिल पर आक्रामक रुख़ नहीं आपना सकती है क्योंकि लोक सभा में बिल पर बहस के दौरान लोकसभा में बार-बार शाहबानो मामले को लेकर कांग्रेस पर हमले हुए थे और उसे चुपचाप सुनना पड़ा था. ऐसे में कांग्रेस तीन तलाक को लेकर बहुत आक्रामक रुख अपनाने की हालत में नहीं दिखती. इन सबके बावजूद हो सकता है कि कांग्रेस इस बिल से तुरंत तीन तलाक को ग़ैर ज़मानती बनाने के प्रावधान को हटाने पर जोर डाले. लोकसभा में बहस के दौरान भी कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह बात कही थी लेकिन राज्यसभा में हो सकता है कि कांग्रेस इस बात पर जोर देकर इस बिल को प्रवर समिति (select committee) के पास के पास भेजने की मांग करे.

बिल पर विपक्षी दलों का नुक़्ता-ए-नज़र

लोकसभा में बहस के दौरान कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों का यह तर्क था कि अगर तीन तलाक की वजह से पति को जेल भेज दिया जाएगा, तो बीवी को गुजारा भत्ता मिल पाना बेहद मुश्किल होगा क्योंकि जेल में बंद शौहर किसी भी हालत में अपनी बीवी को गुजारा भत्ता नहीं दे पाएगा. इस दौरान यह भी तर्क दिया गया था कि शौहर को जेल भेज देने से सुलह की कोई उम्मीद नहीं रह जाएगी.

बहरहाल, राज्यसभा में भी कोई पार्टी सीधे-सीधे तीन तलाक का विरोध करके महिला विरोधी छवि नहीं बनना चाहेगी लेकिन इस बिल के प्रावधानों में कुछ नुक्स निकालकर इसमें संशोधन करने को कहेगी. हालांकि सरकार की मुश्किल यह है कि अगर इस बिल में कोई भी संशोधन मंजूर किया जाता है, तो इसे फिर से पास कराने के लिए लोकसभा भेजना होगा. वहीं, शीतकालीन सत्र पांच जनवरी को खत्म हो रहा है. इसलिए सरकार के पास ज्यादा वक्त नहीं है, लेकिन अगर बिल ऊपरी सदन की प्रवर समिति के पास चला जाता है, तो फिर ये बिल इस सत्र में संसद से पारित नहीं हो पाएगा.

राज्यसभा में सत्तारूढ़ दल की हालत नाज़ुक

राज्यसभा में बीजेपी का बहुमत नहीं है. ऐसे में बिल को पास कराने के लिए दूसरे दलों के साथ की ज़रूरत है. 245 सदस्यीय राज्यसभा में राजग के 88 सांसद (बीजेपी के 57 सांसद सहित), कांग्रेस के 57, सपा के 18, BJD के 8 सांसद, AIADMK के 13, तृणमूल कांग्रेस के 12 और NCP के 5 सांसद हैं. अगर सरकार को अपने सभी सहयोगी दलों का साथ मिल जाता है, तो भी बिल को पारित कराने के लिए कम से कम 35 और सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी. इस बिल का बीजू जनता दल (BJD), AIADMK, सपा और तृणमूल कांग्रेस समेत कई राजनीतिक पार्टियां विरोध कर रही हैं. मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी बिल का विरोध कर रही है. उसका कहना है कि मुसलमानों में विवाह एक सिविल करार है और नया कानून इसमें एक आपराधिक पहलू जोड़ रहा है, जोकि गलत है. उन्होंने कहा, "भाजपा राजनैतिक लाभ और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इस विधेयक को जल्दबाजी में लेकर आई है."

SC ने सरकार को कानून बनाने के लिए दिया था 6 माह का समय

सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को पहले ही असंवैधानिक करार दे चुकी है. 22 अगस्त को शीर्ष अदालत की पांच जजों की बेंच ने बहुमत से तीन तलाक को असंवैधानिक और गैर कानूनी बताया था. साथ ही मोदी सरकार से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने को कहा था. लोकसभा में तीन तलाक बिल पर चर्चा के दौरान भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया.

तीन तलाक बिल में ये हैं प्रावधान

- एक साथ तीन बार तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) कहना गैरकानूनी होगा.

- ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है. यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध माना जाएगा.

- यह कानून सिर्फ 'तलाक ए बिद्दत' यानी एक साथ तीन बार तलाक बोलने पर लागू होगा.

- तलाक की पीड़िता अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से अपील कर सकेगी.

- पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण का भी अनुरोध कर सकती है. मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे.

- यह प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होगा है.

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