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Flipkart और Amazon पर अब नहीं लगेगी Sale, सरकार ने नियम सख्‍त बनाकर हिस्‍सेदारी वाली कंपनियों का माल बेचने पर लगाई रोग

सरकार ने फ्लिपकार्ट और अमेजॉन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए प्रावधान सख्त करते हुए बुधवार को कई नए कदमों की घोषणा की है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Updated : December 26, 2018 22:48 IST
ecommerce firms- India TV Paisa
Photo:ECOMMERCE FIRMS

ecommerce firms

नई दिल्ली। सरकार ने प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए बुधवार को प्रावधानों को सख्‍त कर दिया। अब फ्लिपकार्ट और अमेजॉन जैसी ऑनलाइन मार्केटप्‍लेस उन कंपनियों के उत्पाद नहीं बेच पाएंगी, जिनमें इनकी हिस्सेदारी है।

सरकार ने ऑनलाइन बाजार का परिचालन करने वाली कंपनियों पर उत्पादों की कीमत प्रभावित कर सकने वाले अनुबंधों की रोक लगा दी है। इससे वे किसी इकाई के साथ उसके किसी उत्पाद को केवल व केवल अपने मंच पर बेचने का अनुबंध नहीं कर सकेंगी।वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने ऑनलाइन खुदरा कारोबार में एफडीआई के बारे में संशोधित नीति में कहा कि इन कंपनियों को अपने सभी वेंडरों को बिना भेदभाव किए समान सेवाएं एवं सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी। 

मंत्रालय ने कहा कि संशोधित प्रवधान का लक्ष्य घरेलू कंपनियों को उन ई-कंपनियों से बचाना है जिनके पास एफडीआई के जरिये बड़ी पूंजी उपलब्ध है। संशोधित नीति एक फरवरी 2019 से प्रभावी होगी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस कदम से ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा कीमतों को प्रभावित करने पर पूरी तरह से लगाम लगेगी। इससे ई-कॉमर्स कंपनियों के मामले में एफडीआई दिशानिर्देशों का बेहतर क्रियान्वयन भी सुनिश्चित होगा।

नीति के अनुसार, कोई भी वेंडर अधिकतम 25 प्रतिशत उत्पादों को ही किसी एक ऑनलाइन मार्केटप्लेस के जरिये बेच सकेंगे। मंत्रालय ने कहा कि यदि किसी वेंडर के 25 प्रतिशत से अधिक उत्पादों को किसी एक ई-कॉमर्स कंपनी या उसके समूह की कंपनी द्वारा खरीदा जाता है तो उक्त वेंडर के भंडार (इंवेंटरी) को संबंधित ई-कॉमर्स कंपनी द्वारा नियंत्रित माना जाएगा। 

उसने कहा कि ऐसी कोई भी इकाई जिनके ऊपर ई-कॉमर्स कंपनी या उसके समूह की किसी कंपनी का नियंत्रण हो या उनके भंडार में ई-कॉमर्स कंपनी या उसके समूह की किसी कंपनी की हिस्सेदारी हो तो वह इकाई संबंधित ऑनलाइन मार्केटप्लेस (मंच) के जरिये अपने उत्पादों की बिक्री नहीं कर सकेंगी। अधिसूचना में कहा गया कि ई्-कॉमर्स कंपनी किसी भी विक्रेता को अपना कोई उत्पाद सिर्फ अपने मंच के जरिये बेचने के लिये बाध्य नहीं कर सकती हैं।

ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष या साझी हिस्सेदारी वाले वेंडरों को दी जाने वाली लॉजिस्टिक जैसी अन्य सेवाएं उचित तथा बगैर भेदभव के होनी चाहिये। इन सेवाओं में लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग, विज्ञापन, विपणन, भुगतान तथा वित्त पोषण आदि शामिल हैं। मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा है कि मार्केटप्लेस की समूह कंपनियों द्वारा खरीदारों को दिए जाने वाले कैशबैक भेदभाव से रहित तथा उचित होने चाहिए। 

अधिसूचना में यह भी कहा गया कि इन कंपनियों को हर साल 30 सितंबर तक पिछले वित्त वर्ष के लिए दिशानिर्देशों के अनुपालन की पुष्टि को लेकर विधिवत नियुक्त अपने लेखा-परीक्षक की रिपोर्ट के साथ एक प्रमाण-पत्र रिजर्व बैंक के पास जमा कराना होगा। मंत्रालय ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं को भारी छूट दिए जाने के खिलाफ घरेलू कारोबारियों की आपत्तियों के मद्देनजर ये निर्णय लिए हैं। 

सरकार ने ई-वाणिज्य मंच का परिचालन करने वाली कंपनियों में शत प्रतिशत विदेशी हिस्सेदारी की छूट दे रखी है पर वे माल की इन्वेंट्री (खुद का स्टाक) बना कर उसकी बिक्री अपने मंच पर नियमत: नहीं कर सकतीं है। स्नैपडील के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कुनाल बहल ने संशोधित नीति का स्वागत करते हुए ट्वीट किया कि मार्केटप्लेस ईमानदार एवं स्वतंत्र विक्रेताओं के लिए है जिनमें से अधिकांश एमएसएमई हैं। ये बदलाव सभी बिक्रेताओं को बराबर मौके देंगे तथा उन्हें ई-कॉमर्स की पहुंच का फायदा उठाने में मदद मिलेगी। 

अमेजॉन इंडिया के प्रवक्ता ने कहा कि हम परिपत्र का मूल्यांकन कर रहे हैं। एक अन्य ई-कॉमर्स कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस बदलाव से निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। खुदरा कारोबारियों के संगठन कैट ने कहा कि यदि इन बदलावों का ईमानदारी से क्रियान्वयन किया गया तो कुप्रथाएं और कीमतों को प्रभावित करने वाले कदम तथा ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा दी जाने वाली अतिरिक्त छूट आदि इतिहास की चीजें हो जाएंगी। कैट ने ई-कॉमर्स नीति लाने तथा क्षेत्र पर निगरानी के लिए एक नियामक बनाने की भी मांग की।

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