आरबीआई के रिसर्च पेपर में इस स्थिति में सुधार के लिए एग्रीकल्चरल मार्केटिंग सेक्टर में सुधार का सुझाव दिया गया है। इसमें किसानों को उनकी उपज की बेहतर कीमत प्राप्त करने में मदद के लिए प्राइवेट मंडियों की संख्या बढ़ाने की बात शामिल है।
सरकार ने एक्स पर किए पोस्ट में कहा कि इन दोनों कृषि योजनाओं पर कुल 1,01,321.61 करोड़ रुपये खर्च होंगे। पीएम-आरकेवीवाई के लिए 57,074.72 करोड़ रुपये और कृषोन्नति योजना के लिए 44,246.89 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
इलेक्ट्रॉनिक नेगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट (ई-एनडब्ल्यूआर) के बदले फंडिंग का काम सरकारी प्रयासों के बावजूद संतोषजनक स्तर तक नहीं पहुंच पा रहा था। हाल ही में ‘किसान उपज निधि’ पोर्टल की शुरूआत के बावजूद ऐसा देखा जा रहा था।
यह योजना जमाखोरी और सट्टेबाजों को हतोत्साहित करने में मदद करेगी। जब भी बाजार में कीमतें एमएसपी से अधिक होंगी, तो बाजार मूल्य पर दालों की खरीद उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा की जाएगी।
केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि घरेलू समाधानों को प्रोत्साहित करके आयात निर्भरता को कम करने पर सरकार का पूरा ध्यान है। घोषणाओं का एक मुख्य आकर्षण मवेशियों के लिए विशेष एकीकृत जीनोमिक 'गौ चिप' और भैंसों के लिए 'महिष चिप' का विकास है।
किसानों को मिले नोटिस में कहा गया है कि उनके बागान में उगाई गई काली मिर्च की बिक्री जीएसटी के अधीन है और बागान मालिक को जीएसटी अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड होना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि ये नोटिस काली मिर्च को सुखाने की प्रक्रिया को लेकर फैली गलतफहमी का नतीजा है।
सरकार ने पहले न्यूनतम निर्यात मूल्य के तौर पर 550 डॉलर प्रति टन की लिमिट तय की थी। इसका मतलब ये था कि किसान इस भाव से कम कीमत पर अपनी उपज विदेश में नहीं बेच सकते थे। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने एक नोटिफिकेशन जारी कर प्याज के निर्यात के लिए तय किए गए एमईपी को तत्काल प्रभाव से हटा दिया।
सचिव ने कहा कि वर्तमान सरकारी आंकड़े कृषि भूमि के टुकड़ों और राज्यों द्वारा प्रदान किए गए फसल के विवरण तक सीमित हैं, लेकिन इसमें व्यक्तिगत किसान-वार जानकारी का अभाव है। नई रजिस्ट्री का उद्देश्य इस अंतर को पाटना है।
सरकार ने कहा कि उसका लक्ष्य वित्त वर्ष 2024-25 में किसानों के लिए 6 करोड़, वित्त वर्ष 2025-26 में 3 करोड़ और वित्त वर्ष 2026-27 में 2 करोड़ ऐसे डिजिटल आईडी बनाना है।
मई 2024 में देश के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने जानकारी दी थी कि मात्रात्मक रूप से, पूरे देश में दक्षिण पश्चिम मानसून मौसमी वर्षा ±4 प्रतिशत की मॉडल त्रुटि के साथ लंबी अवधि के औसत (एलपीए) का 106 प्रतिशत होने की संभावना है।
राज्य में इस साल मई, जून और जुलाई में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में कम बारिश हुई है। इस साल कम बारिश के कारण किसानों को फसलों पर अधिक लागत लगानी पड़ रही है।
समय पर लोन चुकाने वाले किसानों को वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान चार प्रतिशत सालाना की दर से अल्पकालिक फसल लोन लोन मिलेगा।
मोदी ने कहा कि पिछली बार जब भारत ने इस सम्मेलन की मेजबानी की थी, तब उसे आजादी मिले ज्यादा समय नहीं हुआ था और वह दौर देश में कृषि एवं खाद्य सुरक्षा के लिहाज से बेहद चुनौतीपूर्ण दौर था।
सीतारमण ने कहा, ‘‘चालू वित्त वर्ष में सरकार 400 जिलों में डीपीआई का उपयोग करके खरीफ मौसम के लिए डिजिटल फसल सर्वेक्षण करेगी। छह करोड़ किसानों और उनकी भूमि का विवरण किसान और भूमि रजिस्ट्री में लाया जाएगा।’’
धान की बुवाई का क्षेत्र पिछले साल के बराबर ही है, जबकि गन्ने की बुवाई बेहतर है। गैर-खाद्य फसलों में कपास की बुवाई काफी अधिक है। कुल बुवाई क्षेत्र सामान्य बुवाई क्षेत्र का 22 प्रतिशत है, जबकि 2023 में यह 18.6 प्रतिशत था।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें यह भी याद रखना चाहिए कि किसान भी एक उपभोक्ता है। गेहूं के अलावा, वह अपने दैनिक जीवन के लिए कई अन्य चीजें खरीदता है। महंगाई कम होना किसानों के हित में भी है।’’
साल 2022 में, गर्मी की लू के शुरुआती हमले ने भारत में गेहूं की फसल को प्रभावित किया और उत्पादन वर्ष 2021 के 10 करोड़ 95.9 लाख टन से घटकर 10 करोड़ 77 लाख टन रह गया।
अप्लाई करने से पहले आपके पास आधार कार्ड, भूमि स्वामित्व पत्र और सेविंग बैंक अकाउंट होना चाहिए। मजबूत आर्थिक स्टेटस वाले कुछ खास कैटेगरी के लाभार्थी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के फायदे के लिए पात्र नहीं होते हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2022-23 में यूरिया का आयात इससे पिछले साल के 91.36 लाख टन से घटकर 75.8 लाख टन रह गया। भारत को सालाना करीब 350 लाख टन यूरिया की जरूरत होती है। मांडविया ने कहा कि स्थापित घरेलू उत्पादन क्षमता 2014-15 में 225 लाख टन से बढ़कर करीब 310 लाख टन हो गई है।
चंद ने कहा कि अगर व्यापारियों को बिना मांग और आपूर्ति के समर्थन वाली कीमत पर गेहूं या चावल खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है, तो खरीदारी नहीं होगी। चंद ने कहा कि जब सरकार किसी चीज (गेहूं या चावल) को फिर से उस कीमत पर खरीदती है जो मांग और आपूर्ति पर आधारित नहीं है, तो इसका आर्थिक प्रभाव होता है।
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