Saturday, April 20, 2024
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हारने का रिकॉर्ड बना चुके हैं ये प्रत्याशी, इस बार राहुल गांधी से हारने की जताई इच्छा

भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में ऐसे कई प्रत्याशी हैं जो लोकतंत्र की आस्था पर इतना विश्वास करते हैं कि कई बार हारने के बाद फिर उठ खड़े होते हैं। आइए आपको इन प्रत्याशियों के बारे में बताते हैं।

Vineeta Vashisth Written by: Vineeta Vashisth
Updated on: April 25, 2019 16:08 IST
rahul gandhi- India TV Hindi
rahul gandhi

गिरते हैं घुड़सवार ही मैदाने जंग में- वो तिफ्ल क्या गिरेंगे जो चलते हैं घुटनों के बल चलें...जी हां, इस समय लोकसभा चुनाव(Lok Sabha Election) की बिसात में हर घुड़सवार जीतने की उम्मीद लिए दौड़ रहा है। हार जीत के आकलन जोरों पर हैं। लगभग हर प्रत्याशी जीतने की उम्मीद लिए जी जान लगा  रहा है। इतिहास गवाह है कि जीतने वाला ही उसके पन्नों पर नाम दर्ज करा पाता है। लेकिन क्या कभी आपने हारने वाले प्रत्याशियों के बारे में सोचा है।

भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में ऐसे कई प्रत्याशी हैं जो लोकतंत्र की आस्था पर इतना विश्वास करते हैं कि कई बार हारने के बाद फिर उठ खड़े होते हैं। हर चुनाव हारने के बाद उनके पास अगले चुनाव के रूप में एक उम्मीद की किरण बाकी है। जिन प्रत्याशियों की बात हम कर रहे हैं वो एक दो बार नहीं कई कई सैंकड़ों बार हारे हैं लेकिन उनका जज्बा देखिए जो हर बार हार कर भी एक संदेश दे जाते हैं कि  लड़ना पहला और एकमात्र कर्म है।

विजय प्रकाश - 24 चुनाव हारे, पीएम बनना लक्ष्य

पुणे की सीट पर 73 साल का एक युवा (कर्म और मन से) पीएम बनने की उम्मीद पाले पिछले 24 चुनाव हार चुका है और इस बार 23 मई को फिर मैदान में उतर रहा है। पुणे के शिवाजी नगर में रहने वाले विजय प्रकाश कोंडेकर कहते हैं कि वो कई चुनाव हार चुके हैं लेकिन हारना कर्म करने के जैसा है, एक ना एक दिन फल जरूर मिलेगा। वो कहते हैं कि एक दिन प्रधानमंत्री बनेंगे और तब देश की सरकार अपने खर्चों में कटौती करके हर नागरिक को कुछ हजार रुपए जरूर देगा। कोंडेकर का चुनाव चिह्न जूता है और उन्हें उम्मीद है कि एक दिन जनता जूते ही अहमियत जरूर जान लेगी। कोंडेकर चुनाव लड़ने के लिए फंड भी जनता से ही दान में लेते हैं। वो कहते हैं 'ज्यादा नहीं बस 100 रुपए दान कीजिए, एक दिन देश का भविष्य बदल देंगे ये 100  रुपए।' 

हेमा मालिनी से हारने को बेताब फक्कड़ बाबा, 20वें चुनाव से उम्मीद
फक्कड़ बाबा इस बार मथुरा से अपना कुल जमा 17वां चुनाव लड़ रहे हैं। 16 बार वो हार चुके हैं और गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार इस बार भी वो हार की उम्मीद लगा रहे हैं। उम्मीद इसलिए क्योंकि उन्हें यकीन है कि गुरु जी के कहेनुसार वो 20वां चुनाव जीतेंगे। पक्कड़ बाबा कहते हैं कि वो इस बार भी हेमा मालिनी जी से हार जाएंगे, उन्हें अपनी हार का गम नहीं, वो तो 20 तक गिनती पूरी कर रहे हैं, 20वें चुनाव में देखेंगे कि हार मिलती है या जीत कदम चूमेगी। 

हारने का रिकॉर्ड बनाना भी हंसी खेल नहीं
कर्नाटक के होत्ते पक्ष रंगास्वामी कुल जमा 86 बार चुनाव हार चुके हैं। उनकी खासियत यह रही कि वो उसी प्रत्याशी के खिलाफ ताल ठोकते थे जो निश्चित तौर पर जीतने वाला होता था। सभी बड़े बाहुबलियों से हारने का जुनून रंगास्वामी पर इस कदर चढा कि उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो गया। कुछ ऐसा ही हाल वाराणसी के नरेंद्र नाथ दूबे का है। नरेंद्र भी 1984 से लगातार चुनाव हार रहे हैं ताकि एक रिकॉर्ड तो बना लें। वो कहते हैं कि जीतने वालों के तो रिकॉर्ड बनते ही हैं, हारने वालों का भी बनना चाहिए। 

राहुल गांधी से हारना चाहता है ये प्रत्याशी, पिछली बार मोदी से खाई थी मात
इस महोदय को बड़े और नामी लोगो से चुनाव हारने का जुनून है। ये हर चुनाव में जनता से अपील करते हैं कि उन्हें वोट न करे। पिछला चुनाव मोदी के हाथों हारे थे और इस बार का लोकसभा चुनाव वायनाड सीट से लड़ रहे हैं, इस उम्मीद में कि राहुल गांधी से हार मिले। इनका नाम है डॉ. के पद्मराजन, डाक्टर साहब इस बार 201वां चुनाव हारने के लिए लड़ रहे हैं। इनका सपना है कि ये जरूर हार जाएं क्योंकि इससे इनका सबसे असफल उम्मीदवार का लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इनके पास ही बना रहेगा।  

हार का रिकार्डधारी धरतीपकड़ - 300 चुनाव भले हारे उम्मीद नहीं
धरतीपकड़ उर्फ काका जोगिंदर सिंह ने चुनाव हारने का विश्व रिकॉर्ड बनाकर ही दुनिया से गए हैं। वो छोटे बड़े (बड़ा चुनाव राष्ट्रपति पद का) कुल मिलाकर 300 चुनाव हारे। इतने चुनाव हारने के बाद किसी का भी हौंसला डोल जाए लेकिन धरती पकड़ ने एक सूत्र पकड़ लिया था कि लड़ूंगा मरते दम तक, जीत ईश्वर की मर्जी पर टिकी है। आपको जानकर हैरानी होगी कि हार के बाद भी धरतीपकड़ मायूस नहीं होते थे बल्कि हार की खुशी में मिश्री से उन्हीं लोगों का मुंह मीठा कराते थे जिनके वोट न देने के चलते वो हारे।

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