Tuesday, December 09, 2025
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कॉमेडी नहीं, इंडो-पाक पर संता-बंता के चुटकुले जैसी है 'सन ऑफ सरदार 2', अजय देवगन पर भारी हैं रवि किशन

अजय देवगन की फिल्म 'सन ऑफ सरदार 2' आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म को लेकर लोगों में काफी उत्साह है, ऐसे में ये फिल्म देखने से पहले ये जानना जरूरी है कि ये कैसी है। पढ़ें पूरा रिव्यू।

जया द्विवेदी
Published : Aug 01, 2025 12:11 pm IST, Updated : Aug 01, 2025 05:17 pm IST
Son of Sardaar 2- India TV Hindi
Photo: PRESS KIT सन ऑफ सरदार की पूरी कास्ट।
  • फिल्म रिव्यू: सन ऑफ सरदार 2
  • स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
  • पर्दे पर: 01/08/2025
  • डायरेक्टर: विजय कुमार अरोड़ा
  • शैली: एक्शन कॉमेडी

अजय देवगन एक बार फिर सन ऑफ सरदार 2 में पंजाबी रंग में रंगे जसविंदर 'जस्सी' सिंह रंधावा बनकर लौटे हैं। डायरेक्टर विजय कुमार अरोड़ा ने इस बार इमोशन, कॉमेडी, ड्रामा और संस्कृति के मेल को दिखाने की कोशिश जरूर की, लेकिन थोड़े विफल होते नजर आए। हां इतना जरूर कह सकते हैं, फिल्म में फूहड़पना और महिलाओं पर जोक्स नहीं है, जो सीधे तौर पर इसे फैमिली एंटरटेनर के तौर पर पेश करते हैं। 'सन ऑफ सरदार 2' पंजाब की मस्ती को स्कॉटलैंड तक ले जाती है। विदेश की धरती पर अपना दुख संभालते हुए दूसरे के पचड़े में उलझने वाले जस्सी, न सिर्फ इसमें घिरते हैं, बल्कि पूरा बीड़ा अपने सिर उठा लेते हैं। मां को किए वादे, सच्चे सरदार, महिलाओं के रक्षक और पाकिस्तानी फेर में फंसकर जस्सी की कहानी सटीक बैठते-बैठते लड़खड़ाने लगती है। देवगन फिल्म्स और जियो स्टूडियो द्वारा निर्मित फिल्म की पूरी कहानी और कलाकारों का काम कैसा है, इसे देखा जाना चाहिए या नहीं, ये जानने के लिए पढ़ें पूरा रिव्यू।

लंदन की गलियों में टूटा सपना दिखाती है कहानी

जस्सी (अजय देवगन) का सपना है कि वो लंदन जाकर अपनी पत्नी डिंपल (नीरू बाजवा) को फिर से पा सके, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर है। उसे पता चलता है कि डिंपल अब उसमें दिलचस्पी नहीं रखती। डिंपल साफ कह देती है कि वो किसी और से प्यार करती है और तलाक चाहती है। ऐसे में जस्सी अकेला, बेसहारा और दिल टूटा हुआ विदेशी शहर में भटक रहा है, तभी जस्सी की मुलाकात पाकिस्तानी महिलाओं के एक समूह से होती है, जिनका नेतृत्व एक दबंग राबिया (मृणाल ठाकुर) करती है। राबिया (मृणाल ठाकुर) एक  वेडिंग डांस कंपनी चलाती है और अपनी टोली सबा (रोशनी वालिया), मेहरिश (कुबरा सैत) और ट्रांसवुमन गुल (दीपक डोबरियाल) के साथ शादियों में डांस करती है। राबिया का शौहर दानिश उसे छोड़ चुका है।

दानिश (चंकी पांडे) भी मुश्किल में है। उसकी बेटी सबा, जो राबिया की सौतेली बेटी है (रोशनी वालिया) का दिल गोगी (साहिल मेहता) पर आ गया है, जो सख्त और पारंपरिक राजा संधू (रवि किशन) का बेटा है। राजा सांधू एक बड़ा बिजनेसमैन है जो गैंगस्टर बन गया है और पाकिस्तानियों से नफरत करता है। राजा संधू चाहता है कि उसका बेटा भारतीय संस्कृति से जुड़ी लड़की से ही शादी करे और चूंकि राबिया पाकिस्तानी है तो प्लान बनता है कि जस्सी सबा का भारतीय फौजी पिता बनकर राजा संधू को इम्प्रेस करे। अब पूरी कहानी इसी शादी को कराने के इर्द गिर्द घूमती है। फिल्म में भारत-पाकिस्तान से जुड़े जोक हैं, लेकिन ये कहानी की ढाल नहीं बन पाते।

संक्षेप में कहानी जस्सी (अजय देवगन) और उसकी उलझी हुई दास्तां को और उलझाकर पेश की गई है। झूठे प्यार में पड़ने से लेकर, चार पागल औरतों के बीच फंसने, माफिया को झेलने के बीच कॉमेडी के नाम पर कुछ चुटकुले पेश करती है, जो बिल्कुल संता-बंता के जोक वाली फीलिंग देते हैं, जो कहानी के फ्लो के साथ चलते ही नहीं।

'सन ऑफ सरदार' Vs 'सन ऑफ सरदार 2'

अगर पहली सन ऑफ सरदार एक देसी अंदाज, लोकल हास्य और भरपूर एक्शन से भरी मनोरंजक फिल्म थी तो इसका सीक्वल 'सन ऑफ सरदार 2' भारत-पाक नोकझोंक, बेतुके रोमांस और नाच-गाने को कला कहने वाले अजीबोगरीब संदेशों के सहारे उससे भी आगे जाने की कोशिश करता है। लेकिन सवाल यह है- क्या ये सारी कोशिशें असर छोड़ती हैं? क्या जस्सी का किरदार एक बार फिर दर्शकों का दिल जीत पाता है? और क्या कहानी में ऐसा कुछ है जो पारिवारिक दर्शकों को थिएटर तक खींच सके? क्योंकि इन सारे सवालों को पास करते हुए 'सन ऑफ सरदार' आगे निकली थी। इस बार की कहानी में वो बात मिसिंग है। ये कहने में कोई गुरेज नहीं कि 'सन ऑफ सरदार' पूरी तरह से 'सन ऑफ सरदार 2' से बेहतर कोशिश थी।

कैसा है निर्देशन और लेखन?

विजय कुमार अरोड़ा के निर्देशन में बनी यह फिल्म 2012 की हिट सन ऑफ सरदार का अगला भाग है, जिसमें अजय देवगन और सोनाक्षी सिन्हा प्रमुख भूमिकाओं में थे। लेकिन इस बार कहानी और कॉमेडी दोनों ही बुरी तरह लड़खड़ा जाते हैं। 'सन ऑफ सरदार 2' हास्य से अधिक हास्यास्पद लगती है। इसका ह्यूमर न तो स्मार्ट है, न ही दिलचस्प, बस जबरदस्ती हंसाने की कोशिश करता है। कहने के लिए ये फिल्में लोगों को हंसाने के लिए बनाई जाती हैं, इनका मूल उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन है। अगर सिर्फ इस पर ही जाए तो ये बिना सिर-पैर की ये कहानी आपको हंसाएगी, सिर्फ शर्त एक ही है, लॉजिक और दिमाग आप घर पर रखकर जाए। चंद सीन्स में आपको हंसी जरूर आएगी। खास तौर पर तब जब रवि किशन और दीपक डोब्रियाल स्क्रीन पर दिखेंगे, लेकिन इसके साथ ही ज्यादातर सीन इतने भद्दे हैं कि आप सिर झुकाने से नहीं चूकेंगे। 

पहली फिल्म की तुलना में इस बार फिल्म में वो बात नहीं कि आपको 2.30 घंटे से सिर्फ उछल-उछलकर हंसने पर मजबूर करे। इस चूकी की पूरी जिम्मेदारी निर्देशक और राइटर के कंधों पर है। कहानी को और बांधा जाता तो ये बेहत कोशिश हो सकती थी। सुंदर लोकेशन, खूबसूरत चेहरे और भारत-पाकिस्तान पर आधारित चुटकुले इसके साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं। बड़ी बात ये है कि इस फिल्म को एक्शन-कॉमेडी की श्रेणी में रखा गया है, लेकिन हास्य तो थोड़ा बहुत है भी लेकिन एक्शन की खासा कमी है। अजय देवगन एक्शन के नाम पर थके हुए सीन देते नजर आए हैं। फिल्म में जब-जब पाकिस्तान की बेज्जती होती है तो जरूर तालियां बजाने और सीटियां मारने का दिल करेगा।

कैसी है एक्टिंग?

अजय देवगन से हर बार ज्यादा की उम्मीद की जाती है। उम्मीद होती है कि कहानी भले ही कमजोर हो लेकिन उनका काम प्रभावी होगा। ठीक ऐसी उम्मीद इस बार भी थी, लेकिन इस बार फिल्म में उनका होना एक धोखा था। वो एकदम फ्लैट नजर आए। उन्हें बेबस शख्स के रूप में स्थापित किया गया है, जो उनके किरदार को न गहराई देता है न बल। उनके काम में कुछ भी नया नहीं है। मृणाल की एंट्री तो ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार करते हुए होती हैं, लेकिन उनका किरदार भी सतही है। उनका काम ठीक है, वो सही लैय में आगे बढ़ती हैं और जितना उन्हें मिला है, उसे सही से डिलीवर करती हैं। बात करें, दोनों की केमिस्ट्री की तो उसमें खासा तालमेल नहीं है।

रवि किशन ही फिल्म की जान हैं, भोजपुरी भाषी होते हुए भी वो पंजाबी के रोल में छा गए हैं। वो हर सीन में अच्छे लगते हैं। उनके काम में बारीकी साफ दिख रही है और ये बताती है कि वो न सिर्फ एक अच्छे एक्टर हैं, बल्कि हर बीतते दिन के साथ अपने काम को निखार रहे हैं। दिवंगत मुकुल देव को देखकर अच्छा लगता है। संजय मिश्रा जैसे अनुभवि एक्टर का सही इस्तेमाल नहीं किया गया है। वहीं विंदू दारा सिंह भी ठीक-ठाक हैं। दीपक डोब्रियाल भी आपका दिल जीतेंगे। कुब्रा सैत और रोशनी वालिया, फिल्म में सिर्फ फिलर का काम करती हैं, जबकि इनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता था।

फिल्म देखें या नहीं?

अगर आप उम्मीद कर रहे हैं कि जस्सी फिर से आपका मनोरंजन करेगा, तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी। अगर आपको फिल्म देखने के बाद कोई टेंशन नहीं पालनी है। थिएटर से निकलने के बाद दिल-दिमाग पर कोई बोझ नहीं चाहते हैं और पूरी तरह से बिना-सिर पैर वाली कॉमेडी के चटकारे लेते हैं तो आप इस फिल्म को झेल लेंगे। रवि किशन के काम को आप एंजॉय जरूर करेंगे। वैसे फिल्म के अंत में आपको एक सरप्राइज कैमियो भी मिलेगा।

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