Thursday, December 12, 2024
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Explainer: हादसे के बाद ही क्यों आता है NOC का ख्याल? क्या राजकोट अग्निकांड से कोई सबक लिया जाएगा?

राजकोट में हुए अग्निकांड में 27 लोगों की जान चली गई थी जिनमें से 12 बच्चे थे। इंडिया टीवी की पड़ताल में कई विभागों की लापरवाही सामने आई है। पड़ताल से साफ हो गया कि यह बड़ा हादसा रोका जा सकता था।

Reported By : Nirnay Kapoor Edited By : Vineet Kumar Singh Published : May 29, 2024 14:24 IST, Updated : May 29, 2024 14:24 IST
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Image Source : PTI राजकोट अग्निकांड ने कई परिवारों को कभी न भूलने वाला गम दिया है।

क्या राजकोट अग्निकांड का शिकार हुईं 2 दर्जन से ज्यादा जानें बचाई जा सकती थीं? क्या यह दिल दहला देने वाला हादसा रोका जा सकता था? तो जवाब है कि बिलकुल रोका जा सकता था, अगर संबधित अधिकारीयों ने समय रहते 23/11/2023 को राजकोट पुलिस द्वारा जारी किये गए उस बुकिंग लाइसेंस का का संज्ञान लिया होता जिसमें TRP गेम जोन में टिकट के रेट निर्धारित करने की परमिशन दी गई थी। राजकोट पुलिस को यह परमिशन देने से पहले सभी संबंधित विभागों के अभिप्राय मंगवाने चाहिए थे (भले ही परमिशन सिर्फ टिकट के रेट से सम्बंधित थी और यह गेम जोन एस्टब्लिश करने का उसमे कोई उल्लेख नहीं था)। लेकिन क्या उन विभागों के बड़े अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती जिनको इस परमिशन के बारे में तत्काल सूचित किया गया था?

पड़ताल में सामने आईं चौंकाने वाली बातें

मेरी पड़ताल में जो जानकारी मिली है उस हिसाब से इस परमिशन के बारे में राजकोट के चीफ फायर ऑफिसर और ⁠मार्ग एवं मकान के कार्यपालक इंजिनियर के साथ-साथ अन्य विभागों को भी सूचित किया गया था (इन दो विभागों का रोल इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण है)। इसका मतलब यह निकलता है कि इन दो महत्वपूर्ण विभागों के शीर्ष अधिकारीयों को इस गेमिंग जोन के अस्तित्व के बारे में साफ-साफ पता था। इसके बावजूद फायर डिपार्टमेंट के मुखिया FIRE NOC की एप्लिकेशन के इंतज़ार में बैठे रहे। उन्होंने इस अवधि के दौरान एक बार भी इस गेमिंग जोन का इंस्पेक्शन करना उचित नहीं समझा। उन्हें एक बार भी ये महसूस नहीं हुआ की ये जगह हॉस्पिटल, मल्टीप्लेक्स या मॉल की तरह ही सेंसिटिव है और पुलिस के बुकिंग लाइसेंस के अनुसार यहां जो ऑपरेशन चल रहे हैं वे लोगों के लिए सुरक्षित हैं या नहीं उसकी जांच की जाए।

जानकारी होने के बावजूद निष्क्रिय रहे विभाग

चौंकाने वाली बात तो ये है कि घटनास्थल पर मुझसे जब राजकोट के चीफ फायर ऑफिसर की ऑफ कैमरा बात हुई तो उन्होंने कहा था कि पुलिस की परमिशन के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता और NOC की अर्जी न मिलने का कारण देकर उन्होंने इंस्पेक्शन की बात से पल्ला झाड़ लिया। शहर में मेला लगा हो तो अस्थायी व्यवस्था के लिए फायर टेंडर वहां तैनात होते हैं। हैरानी की बात है कि 3000 वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में बना परमानेंट स्ट्रक्चर फायर डिपार्टमेंट के ध्यान में नहीं आया। वहीं मार्ग एवं मकान विभाग के कार्यपालक इंजिनियर को भी गेम जोन के बारे में पता था पर उन्होंने भी इसके स्ट्रक्चर और स्टेबिलिटी का कोई ब्यौरा नहीं मंगवाया। मतलब सब चुपचाप बैठे रहे। चूंकि पुलिस विभाग का एक दस्तावेज सामने आया है तो पुलिस विभाग और उसके अधिकारी निशाने पर आ गए हैं, पर इस पत्र के माध्यम से हर सम्बंधित विभाग की लापरवाही सामने आयी है, इसलिए सबकी सामूहिक जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।

सरकार को व्यापक कदम उठाने ही होंगे

सरकार का इस मामले में एक्शन लेना बहुत जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो। इसके उपाय किए जाने बहुत जरूरी हैं वर्ना, सूरत, मोरबी और वड़ोदरा की ही तरह राजकोट भी एक कहानी की तरह भुला दिया जायेगा। सरकार के कदम भी व्यापक होने चाहिए, तात्कालिक नहीं। जैसे 2018 में रेस्टोरेंट के व्यापारियों को परेशानी न हो इसलिए खुद राज्य सरकार ने ही रिन्यूवल का क्लॉज़ हटा दिया। यानी एक बार लाइसेंस ले लिया फिर कोई अधिकारी वहां इंस्पेक्शन के लिए भी नहीं जा सकता, जबकि हम सब जानते हैं की इटरीज़ में हकीकत क्या है। रेस्टोरेंट में आग लगने के कितने ही किस्से सामने आते हैं। ‘Ease of doing business’ के नाम पर किसी को भी लोगों की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ की छूट नहीं दी जा सकती, इसलिए साकार को ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना पड़ेगा जिसमे साफ़ तौर पर जिम्मेदारी सुनिश्चित की जा सके। सब कुछ बरदाश्त किया जा सकता है पर ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ कतई नहीं।

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