Friday, April 19, 2024
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BLOG: यमुना फ्लाईओवर पर बहेगी और हिमालय से इम्पोर्ट होंगी हवाएं...कुछ ऐसा होगा मेरा इंडिया!

क्या दिल्ली में यमुना का नाली अवतार, नदी अवतार बन गया? क्या यमुना भी पवित्र हों गई? तब चचा भी किसी बड़े विदूषक की तरह बताने की मुद्रा में आ गए थे क्यूंकि अब उन्हें स्टोव जलाने के लिए घंटों मशक्कत जो नहीं करनी पड़ रही थी।

Prashant Tiwari Written by: Prashant Tiwari
Updated on: November 24, 2018 21:27 IST
Satire India and dreams of its development blog on current...- India TV Hindi
Satire India and dreams of its development blog on current affairs by prashant tiwari

आज हम जब सो के उठे तो सब बदला बदला सा नज़र आने लगा, ऐसा लगा भैया गज़ब हो गया कम्बल अपने आप हट गया, ग्लास में भरा पानी उछल उछल के छींटे मारने लगा चप्पल अपने आप पैरों पर आ गया... हम अचंभित... आँख मलते हुए बाहर निकले। चाय पीने पहुंचे तो देखा कि चाय भी सोलर वाली केतली से बन रही...चाय वाले चचा बोले भैया सब बदल गया बड़ी-बड़ी टेक्नोलॉजी आ गई हैं। अब तो पैदल चलना भी नहीं पड़ता हमने पूछा क्यों चचा? तो उन्होंने कहा कि अब तो सड़कें चलने लगी हैं बस आपको खड़े होना है... मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ फिर अचानक सुबह की घटना याद आ गई अरे वही कम्बल वाली, तो मुझे लगा कि क्या पता सड़कें खुद ही चल रही हों। फिर चचा बताते गए और हम सुनते गए... कि भैया अब तो चारो तरफ सुंगधित हवा... मैंने अचकचाकर पूछा सुगन्धित हवा? तो चचा हंसते हुए बोले अरे बाबा वो तुम जो लड़के लड़कियां बिना नहाए लगाते घुमते रहते हों उसको क्या कहते है अंग्रेजी में मैंने बताया 'डिओडरंट' हां बेटा हां वही आज कल हर घंटे वही छिड़कते मशीन जाती हैं...

अब तो प्रदूषण भी नहीं हैं... मैंने पूछा अच्छा ऐसा कैसे हों गया?... क्या दिल्ली में यमुना का नाली अवतार, नदी अवतार बन गया?  क्या यमुना भी पवित्र हों गई? तब चचा भी किसी बड़े विदूषक की तरह बताने की मुद्रा में आ गए थे क्यूंकि अब उन्हें स्टोव जलाने के लिए घंटों मशक्कत जो नहीं करनी पड़ रही थी। हवाएं भी ठंडी एक दम एयर कंडीशन माफिक बह रही थी।

चचा ने अपने रेकलाइनर सोफे पे आराम से बैठते हुए बताना शुरू कर दिया कि अब विकास पैदा हो चुका, सब ईमानदार हो गएं, अब बाते नहीं सिर्फ काम होता हैं और अब इंडिया, सिर्फ इंडिया नहीं रहा टेक्निकल इंडिया बन चुका हैं। ट्रम्प और जिनपिंगवा आकर सिर्फ गप्पियाते है कि थोड़ा टेक्नॉलजियां उन्हें भी मिल जाए और रही बात यमुना जी की... तो वो तो एकदम साफ़ हों गई हैं, सरकार ने यमुना जी को बाईपास कर दिया... मतलब कि अब यमुना जी दिल्ली में नहीं दिल्ली के ऊपर बह कर जाती हैं... फ्लाईओवर सिस्टम पगले... नदी अब पुल में बहती हैं... उसमे स्टीमर भी चलता हैं... दिल्ली से सीधे प्रयागराज तक फिर काशी और काशी में तो बड़का बड़का टाइटैनिक जैसा जहाज खड़ा होने लगा हैं... और तो और मतलब काशी तो ऐसा बन गया कि जापान वाले क्योटो का नाम बदलकर अब काशी रखने का मूड बनाने में लगे हैं।

मैं दंग हैरान खड़ा सिर्फ उनकी बातों को सुनने लगा... मैंने कहा कि ये जो प्राइवेट हॉस्पिटल बगल में था वो कहां चला गया... तब उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि अब यहां कोई बीमार नहीं पड़ता इसलिए बंद हो गया... सफाई ही सफाई हैं और थोड़े बहुत जो बीमार हैं वो सिर्फ सरकारी अस्पतालों में इलाज कराते हैं, अब लोगों को सरकारी अस्पतालों में मौत नहीं ज़िन्दगी नज़र आती हैं। मैंने हैरत भरी निगाहों से देखा ऐसा कैसे हो सकता हैं... ? चचा बोले ऐसा ही है बौआ... फिर वो कुछ कस्टमर्स को चाय देने में व्यस्त हों गए और मैं वहा का जायजा लेने लगा... हर चीज़ बेहतर हैं सड़के, दुकाने करीने से सजी हैं, रोबोट सफाई कर रहे हैं हल्का हल्का म्यूजिक भी चल रहा हैं... उधर चचा अपना काम निपटा कर फारिग होते हुए बोले बचवा खवाबों की दुनिया सच हो रही हैं अब लोग अपने बच्चे को बड़े महंगे स्कूलों में नहीं सरकारी प्राइमरी स्कूलों में भेजते हैं। सबके पास अपने घर हैं... खाना है, रोज़गार हैं... क्राइम तो होता ही नहीं हैं। मंदिर- मस्जिद का भी मसला सुलझ गया हैं... यहां बाबा अब सबकुछ बेहतर हैं।

मुझे यकीन नहीं हो रहा था मुझे लगा कि जैसे मैं किसी माया जाल में उलझा पड़ा हूं... ऐसा कैसे हो सकता हैं फिर मैंने चचा से पूछा कि चचा कितने पैसे हुए चचा ने बोला 20 रुपये, मैंने पैसे निकाले तो चचा बोले अरे बार-बार मत दो मेरे पास तुम्हारे चाय के पैसे भी आ गए.. मैं बौखला गया मैंने पूछा कैसे.. तब चचा गंभीरता से समझते हुए बोले... अरे पगले नैनो टेक्नोलॉजी वाला चिप हर जगह लगा हैं... अब मेरे पैसा और तुम्हारा चप्पल भी समझदार हो गया हैं।

तब मुझे समझ आया कि आज मेरा कम्बल कैसे उठ गया था मेरे उठने से पहले... फिर मैंने चचा से पूछा चचा ये इतनी ठंडी हवाएं कहा से आ रही हैं यहां ऐसा लग रहा कि मैं पहाड़ों में हूं कही... तब चचा बोले अरे बचवा... एक्सपोर्ट इम्पोर्ट समझते हो... हमने कहा हां.. तो उन्होंने कहा हम ठंडी हवा डायरेक्ट हिमालय से यहां इम्पोर्ट करते हैं और यहाँ वाली गर्म प्रदूषण वाली हवा वहा पर एक्सपोर्ट करते हैं... मैंने पूछा ये कैसे हो सकता है? तब चचा बोले अरे मेरे बावले राजा जैसे यमुना को फ्लाईओवर पर शिफ्ट करना.. टेक्नोलॉजी ब्रो टेक्नोलॉजी... मैं खुश, वाह अब तो सच में इंडिया बदल रहा हैं। मैं खुश था बहुत खुश...सड़क पे खड़ा था... सड़क चल रही थी... इतने में तेजी से फ़ोन बजने लगा... मैंने फ़ोन उठाया तो उधर से रूखी हुई सी आवाज़ आई पिकअप हैं क्या? मैं आँखे मीचते हुए ख़्वाबों से बाहर आया टाइम देखा तो सुबह के 5 बज रहे थे... ख्वाब टूट चुका था... मैंने ड्राइवर को हां बोलकर ऑफिस जाने की तैयारी शुरू कर दी... ऑफिस पंहुचा तो याद आया कि आज तो चुनाव हैं...!

ना तो सड़कें चल रही थी ना ही कुछ बदला था...सबकुछ वैसा का वैसा ही था। आज भी जवान शहीद हों रहे थे... बलात्कार, हत्या की वारदात दिल दहला रही थी। यमुना के हालात बद से बदतर है... प्रदूषण ऐसा कि सांस नहीं ली जा रही हैं... अस्पतालों में ज़िंदगियां ख़त्म हो रही...कुछ तो बेइलाज मर रहे। प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज ऐसा कि इलाज के बाद उधारी के बोझ से कभी ना उबर सके। सरकारी स्कूलों के मिड डे मील  में आज भी दाल वाला पानी  मिल रहा हैं और इसी पानी की तरह मिल रही मिलावटी शिक्षा जो अपने बच्चों को प्रॉपर एजुकेशन के लिए प्राइवेट स्कूलों में भेज रहे हैं वो कुछ और नहीं कर पा रहे हैं। रोजगार का आलम ऐसा कि पीएचडी स्कॉलर, इंजीनियर भी सरकारी चपरासी बनने का ख्वाब देखने लगे हैं। राजनीति ऐसी कि सब अपनी-अपनी जाति और मज़हब को ना जाने किससे बचाने की कोशिश कर रहे हैं, सब को डर हैं... सब डर रहे हैं और देश में डरावना माहौल अपने आप बनाए जा रहे हैं... आज चुनाव हैं और मुझे पता हैं कि इसमें भी जीत किसी ना किसी जाति या मज़हब की होगी... और मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि प्लीज मुझे ख़्वाबों में ही जीने दे।

(ब्लॉग के लेखक प्रशांत तिवारी युवा पत्रकार हैं)

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