Sunday, May 12, 2024
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कौन है असली गुनेहगार! दिल्ली के पर्यावरण सचिव, या फिर खुद दिल्ली सरकार!

नई दिल्ली: पिछले दिनों चाइनिज मांझे की वहज से एक घर का चिराग हमेशा के लिए बुझ गया। साढे तीन साल की सांची गोयल अपने मां बाप की आंखों का तारा उनके दुनियां से दूर

Kumar Kundan Kumar Kundan
Updated on: August 19, 2016 23:09 IST
delhi- India TV Hindi
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नई दिल्ली: पिछले दिनों चाइनिज मांझे की वहज से एक घर का चिराग हमेशा के लिए बुझ गया। साढे तीन साल की सांची गोयल अपने मां बाप की आंखों का तारा उनके दुनियां से दूर चली गई। मौत भी ऐसी आयी जिसकी किसी ने सपने में भी कल्पना तक नहीं की होगी। मौत के बाद फिर कवायद इस बात की शुरु हुई कि आखिरकार कौन है इस मौत गुनेहगार। चाइनिज मांझे मौत की वजह माना गया और इस बात की तहकीकात शुरु हुई कि जब अदालत ने इस बाबत दिल्ली सरकार से पूछा था कि इस तरह के मांझे पर सरकार का क्या स्टेटस है तो छूटते ही सरकार ने ये कह दिया कि हमने तो पॉलिसी तैयार कर ली है बस दिल्ली के उपराज्यपाल की मंजूरी मिलनी बाकी है। जैसे ही मंजूरी मिलेगी दिल्ली मे इस तरह के मांझे बिकने बंद हो जाएगे। हुआ भी कुछ यूं ही उपराज्यपाल ने अपनी मंजूरी दे दी और दिल्ली सरकार ने एक डाफ्ट नोटिफिकेशन जारी कर इसे बैन करने की बात भी कर डाली। लेकिन तबतक काफी देर हो चुकी थी। इस बीच दिल्ली वाले इस मांझे का शिकार हो चुके थे। अब सबकी जुबां पर एक ही सवाल कि आखिरकार चायनिज मांझे की डोर कटाने में इनती देर कैसे हुई।

दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने तो लगे हाथ पूरे मामले के लिए दिल्ली के पर्यावरण सचिव चन्द्राकर भारती को जिम्मेदार बता डाला। वजह गिनाते हुए कि हमने तो मिनटों में ये फैसला कर दिया था लेकिन देरी तो पर्यावरण सचिव के स्तर पर हुआ और इतने में ही वो नहीं माने दिल्ली के उपराज्यपाल को इस बात के लिए ताकीद भी कर दी की तत्काल प्रभाव से एलजी साहब एक्शन लें। इसके लिए वो पर्यावरण मंत्री औऱ खुद को बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं माना।

लेकिन इंडिया टीवी को मिली जानकारी के मुताबिक सरकार ने चायनिज मांझे की डोर काटने में बहुत देरी कर दी। पिछले साल ही दिल्ली सरकार ने पर्यावरण विभाग ने 04.06.2015 को एक प्रस्ताव तैयार किया जिसे दिल्ली के मुख्य सचिव के के शर्मा ने अपनी मंजूरी भी दी। इस प्रस्ताव में इस बात का जिक्र था कि सीसे और नायलोन से बने तेज मांझे की खरीद बिक्री, स्टोरेज को पूर्णतया बंद किया जाय। लेकिन ये प्रस्ताव सभी अधिकारियों से गुजरता दिल्ली सरकार की फाइलों की शोभा बढाता रहा और इससे पहले की किसी भी तरह का ये प्रस्ताव कानूनी जामा पहनता दिल्ली में एक बच्ची मौत की शिकार हो गई।

अब सवाल ये उठता है कि मिनटों में किसी फाइल के निपटारे का दावा करने वाली सरकार ने इस फाइल को क्लियर करने में मिनटों की जगह घंटे या फिर महीनों और या फिर कहें एक साल से भी ज्यादा का वक्त क्यों लगाया। सरकार की मंशा से तो साफ है कि अगर अदालत का आदेश नहीं आता तो अब भी ये फाइलों में ही अटकी रहती। सांची गोयल की मौत के बाद जब गुनेहगार की तलाश शुरु हुई तो खुद  की जगह पर्यावरण सचिव का नाम आगे कर दिया। क्या ये सच नहीं है कि अगर 04. 06.2015 को ही अगर सरकार ये फाइल क्लियर करके नोटिफिकेशन के लिए भेज दिया होता तो अबतक चायनिज मांझा की डोर कट चुकी होती और सांची गोयल की जिंदगी की डोर सलामत होती।

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