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राष्ट्रीय स्तर पर ‘‘अतीत की परछाईं’’ रह गया वाम मोर्चा

एक समय विपक्षी गठबंधन का आधार रही माकपा अब पहले जैसी मजबूत नहीं रही है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह ‘‘अतीत की परछाईं’’ मात्र रह गई है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : Jan 01, 2019 05:15 pm IST, Updated : Jan 01, 2019 05:15 pm IST
Left a shadow of its past in stitching opposition alliance...- India TV Hindi
Left a shadow of its past in stitching opposition alliance nationally

कोलकाता: एक समय विपक्षी गठबंधन का आधार रही माकपा अब पहले जैसी मजबूत नहीं रही है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह ‘‘अतीत की परछाईं’’ मात्र रह गई है। ऐसे में राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा से मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय पार्टियां माकपा का स्थान लेने लगी हैं। एक समय गैर-कांग्रेस व गैर-भाजपा वाले तीसरे मोर्चे में विभिन्न क्षेत्रीय दलों के बीच वाम मोर्चा की अहम भूमिका होती थी। लेकिन अब न तो वह संख्या है और न ही वह प्रभाव है।

माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य हन्नान मुल्ला ने कहा कि अतीत में कई मौकों पर वाम ने विपक्षी ताकतों को एकजुट करने में प्रमुख भूमिका निभाई लेकिन मौजूदा स्थिति में ऐसा करने के लिए संख्या बल नहीं है। मुल्ला पार्टी की किसान इकाई अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव भी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इस तथ्य से इंकार नहीं है कि संसदीय राजनीति में संख्या एक महत्वपूर्ण कारक है। संसद में अभी हमारे पास जो ताकत है... हमारे लिए वह भूमिका निभाना संभव नहीं है। विभिन्न क्षेत्रीय दल अब वह करने का प्रयास कर रहे हैं।’’

राष्ट्रीय राजनीति में समाजवादी पार्टी हमेशा वाम दलों की भरोसेमंद सहयोगी रही है। सपा ने कहा कि राष्ट्रव्यापी विपक्षी गठबंधन बनाने में उनकी भूमिका "महत्वहीन और अप्रासंगिक" हो गई है। सपा उपाध्यक्ष किरणमय नंदा ने कहा, "अब वाम दलों की भूमिका महत्वहीन और अप्रासंगिक है। क्षेत्रीय दल जो कभी वाम दलों की छत्रछाया में (राष्ट्रीय स्तर पर) कार्य करते थे, अब वे प्रमुख राजनीतिक ताकतें बन गए हैं। और, वाम दलों के पास गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए कोई करिश्माई नेता नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि जब लोकसभा में वाम दलों के 50 से ज्यादा सांसद थे, उस समय माकपा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1996 में संयुक्त मोर्चा के शासनकाल में और 2004 में संप्रग-एक के दौरान माकपा नीत वाम मोर्चा के लोकसभा में क्रमश: 52 और 61 सदस्य थे। 1989 में वी पी सिंह सरकार के दौरान वाम मोर्चा के लोकसभा में 52 सदस्य थे। लेकिन 2014 में लोकसभा में उसके सांसदों की संख्या घटकर 11 रह गई। उसने अपना मुख्य गढ़ पश्चिम बंगाल भी खो दिया।

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