Friday, March 29, 2024
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कश्मीर मुद्दे को लेकर महबूबा मुफ्ती के बयानों पर भड़का मुस्लिम राष्ट्रीय मंच

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (MRM) की तेलंगाना इकाई ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती के इस बयान की आलोचना की कि भारत को कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत करनी चाहिए।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: June 24, 2021 18:15 IST
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Image Source : PTI FILE मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की तेलंगाना इकाई ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती के कश्मीर को लेकर दिए गए बयान की आलोचना की।

हैदराबाद: मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (MRM) की तेलंगाना इकाई ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती के इस बयान की आलोचना की कि भारत को कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत करनी चाहिए। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कहा कि महबूबा मुफ्ती का यह बयान ‘राष्ट्रीय अखंडता’ एवं ‘एकता’ के विरूद्ध है।MRM ने कहा कि अनुच्छेद 370 एवं 35ए के तहत जम्मू कश्मीर को दिया गया विशेष दर्जा अस्थायी था और इसे निष्प्रभावी बनाकर मोदी सरकार ने सही कदम उठाया है।

MRM के तेलंगाना संयोजक एम. ए. सत्तार ने कहा, ‘उन्होंने (महबूबा मुफ्ती ने) कहा कि उनसे विशेष दर्जा छीन लिया गया और यह एक गलती है तथा अवैध एवं असंवैधानिक कृत्य है। जम्मू कश्मीर में तबतक शांति नहीं आएगी जब तक अनुच्छेद 370 बहाल नहीं कर दिया जाता। उन्होंने कश्मीर मुद्दे के समाधान में पाकिस्तान को भी शामिल करने का मुद्दा उठाया है।’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध MRM ने एक विज्ञप्ति में दावा किया कि नेशनल काफ्रेंस, CPM जैसे गुपकार गठबंधन के अन्य घटक दलों एवं कांग्रेस ने अनुच्छेद 370 पर महबूबा की राय का समर्थन किया। उसने कहा, ‘MRM का मत है कि इन दलों के नेताओं का बयान राष्ट्रीय अखंडता एवं एकता के विरूद्ध है।’

अनुच्छेद 370 एवं 35ए के तहत जम्मू कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को ‘अस्थायी’ करार देते हुए MRM ने कहा कि मोदी सरकार ने इस विभाजनकारी एवं अस्थायी प्रावधान को निष्प्रभावी बनाकर सही कदम उठाया है। MRM ने केंद्र से किसी भी राजनीतिक दलों के ऐसे सुझावों एवं मांगों पर कतई विचार नहीं करने की अपील की। उसने दावा किया कि उसने अनुच्छेद 370 एवं 35ए के विरूद्ध हस्ताक्षर अभियान चलाया था एवं कश्मीर के 70,000 से अधिक हस्ताक्षर समेत मुसलमानों के साढ़े आठ लाख से अधिक हस्ताक्षर जुटाए थे एवं इन अनुच्छेदों के निरसन की मांग करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को एक ज्ञापन सौंपा था।

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