आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम
नई दिल्ली। आत्मनिर्भरता का लक्ष्य पाने में पहला और सबसे अहम कदम है नई या बेहतर स्वदेशी तकनीकों की खोज । देश के वैज्ञानिकों के द्वारा किसी भी नई तकनीक या तरीके की खोज जो देश के सामने खड़े सवालों का जवाब देने में समर्थ हो देश को और अर्थव्यवस्था को दूसरे देशों और अर्थव्यवस्थाओं से बढ़त बनाने में काफी मदद करती है। यही वजह है कि भारत सरकार के द्वारा आत्मनिर्भर अभियान के साथ ही रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर भी लगातार फोकस किया जा रहा है। अब स्थिति ये हैं कि लगभग हर कुछ दिन में वैज्ञानिक एक नई तकनीक के साथ सामने आ रहे हैं। आइये नजर डालते हैं इस हफ्ते सामने आई भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धियों पर
इंसानों के बालों से फर्टिलाइजर बनाने की किफायती तकनीक
इस हफ्ते विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय ने जानकारी दी है कि देश के वैज्ञानिको ने इंसान के बालों, मुर्गी के पंखों और बेकार पड़े ऊन से जानवरों का चारा और फर्टिलाइजर बनाने की सस्ती तकनीक खोजी है। वैज्ञानिक भाषा में इसे केराटिन वेस्ट कहते हैं। इस तकनीक को इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी मुंबई के कुलपति प्रोफेसर ए बी पंडित और उनकी टीम ने खोजा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये वेस्ट वास्तव में अमीनो एसिड और प्रोटीन के सस्ते स्रोत होते हैं, जिन्हें या तो जमीन ने दबा दिया जाता है या जला दिया जाता है जिससे क्षेत्र प्रदूषित होता है। वहीं उर्वरक या चारा में बदलने की मौजूदा तकनीक महंगी पड़ती है। टीम ने अब तो तकनीक खोजी है वो लागत में मौजूदा तकनीक का सिर्फ एक तिहाई है। यानि नई तकनीक से न केवल प्रदूषण रोका जा सकेगा साथ ही सस्ता पशुओं का चारा और उर्वरक तैयार किया जा सकेगा। बड़े पैमाने पर उत्पादन से एक तरफ किसानों का उवर्रक और चारे पर खर्च घटेगा वहीं मुर्गीपालन और भेड़ पालन से जुड़े लोगों को आय का नया स्रोत भी मिलेगा।
सैनिकों की सुरक्षा के लिये नई तकनीक विकसित
भारत में पहली बार एक ऐसे उच्च गुणवत्ता वाला पारदर्शी सिरेमिक्त विकसित किया गया है, जिसका इस्तेमाल सैनिकों और सुरक्षा बलों को मुश्किल जगहों पर सुरक्षित रखेगा। इस पारदर्शी सिरेमिक्स या आसान भाषा में कहें तो शीशे जिनसे आर पार देखा जा सकता है को सैनिकों के हेल्मेट, फेस शील्ड चश्मों आदि में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरह के सेरेमिक्स दुनिया भर में बनाये जाते हैं, हालांकि सैन्य कार्यों में इनका इस्तेमाल होने से इनकी आपूर्ति सीमित या प्रतिबंधित है, हालांकि भारत में ही इसे विकसित किये जाने के बाद अब इसकी सप्लाई को लेकर चिंता जल्द खत्म हो सकती है। इस सिरेमिक्स को एआरसीआई के शोधकर्ताओं ने तैयार किया है। इस उत्पाद को पहले भी बनाया जा चुका है हालांकि तब वो सिर्फ प्रयोगशाला के स्तर पर था। अब सिरेमिक्स को इस स्तर पर तैयार किया जा सकता है कि इसे जांचने के लिये कई एप्लीकेशन में इस्तेमाल किया जा सके।
मलबे से बनेंगी एनर्जी एफिशिएंट ईंटे
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक खोजी है जिससे निर्माण और तोड़फोड से निकले कचरे यानि सीएंडडी वेस्ट से एनर्जी एफिशिएंट ईंटे तैयार की जा सकती हैं। भारत में ईंटों और ब्लॉकों की वार्षिक खपत लगभग 90 करोड़ टन है। निर्माण उद्योग भारी मात्रा में (10 करोड़ टन प्रति वर्ष) सीएंडडी कचरा या मलबा उत्पन्न करता है। ये प्रक्रिया बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जित करती है। नई तकनीक से न केवल इस मलबे का सही इस्तेमाल किया जा सकेगा। साथ ही पर्यावरण को काफी मदद मिलेगी।
इंडस्ट्री को क्या होगा फायदा
वैज्ञानिकों के द्वारा तकनीक विकसित किये जाने पर उन्हें अब निजी क्षेत्र को हस्तांतरित किया जा रहा है। कोरोना संकट से निपटने के लिये सरकारी संस्थानों ने कई निजी कंपनियों के साथ कई तकनीकों के हस्तांतरण का करार किया है। वैज्ञानिकों के द्वारा रिसर्च के बाद तकनीक को इंडस्ट्री के हाथों में सौंपने से उनका कमर्शियल प्रोडक्शन शुरू करने में मदद मिलती है। वहीं घरेलू सप्लाई को पूरा करने के बाद निजी क्षेत्र इन उत्पाद का निर्यात कर अर्थव्यवस्था को सहारा दे सकते हैं।
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