Tuesday, December 09, 2025
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वाह रे UP पुलिस! 'रामवीर' की जगह 'राजवीर' को भेजा जेल, बेगुनाह साबित करने में लगे 17 साल, जानिए पूरा मामला

बेहुनाह साबित हुए राजवीर के बेटे को आर्थिक तंगी की वजह से स्कूल तक छोड़ना पड़ा। 17 साल तक वह और उसका परिवार कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाता रहा। पुलिस की एक गलती की वजह से उसे 17 साल शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी।

Edited By: Dhyanendra Chauhan @dhyanendraj
Published : Jul 27, 2025 08:50 pm IST, Updated : Jul 27, 2025 09:30 pm IST
सांकेतिक तस्वीर- India TV Hindi
Image Source : REPORTER INPUT सांकेतिक तस्वीर

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में पुलिस विभाग की बड़ी लापरवाही सामने आई है। पुलिस की छोटी-सी चूक के कारण एक निर्दोष व्यक्ति गुनहगारों की सूची में शामिल हो गया। उसे खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए 17 साल कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े। वहीं, अब कोर्ट ने 62 वर्षीय राजवीर को कोतवाली थाने में गिरोहबंद अधिनियम के तहत दर्ज मामले में 24 जुलाई को आरोपमुक्त कर दिया।

राजवीर समेत ये लोग भेजे गए जेल

कोतवाली थाने के प्रभारी निरीक्षक ने 31 अगस्त 2008 को नगला भांट गांव निवासी राजवीर, मनोज यादव, प्रवेश यादव और भोला के खिलाफ गिरोहबंद अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था। पुलिस ने राजवीर समेत सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। बाद में मामले की जांच दन्नाहार पुलिस को सौंप दी गई थी। 

पुलिस ने रामवीर की जगह दर्ज किया राजवीर का नाम

अधिकारियों के मुताबिक, इस मामले में असली आरोपी राजवीर का भाई रामवीर था, लेकिन पुलिस ने 'रामवीर' की जगह 'राजवीर' का नाम दर्ज कर दिया था। राजवीर के वकील विनोद कुमार यादव ने कहा, 'मेरा मुवक्किल बार-बार दलील देता रहा कि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी। उसे गिरफ्तार किया गया, ज़मानत मिलने से पहले 22 दिन जेल में रखा गया और फिर उसे अकेले ही व्यवस्था से लड़ने के लिए छोड़ दिया गया।'

22 दिन जेल रहने के बाद कोर्ट-कचहरी के चक्कर

वकील विनोद कुमार यादव के मुताबिक, 22 दिन जेल में बिताने के बाद राजवीर को ज़मानत तो मिल गई, लेकिन उसे सच्चाई सामने लाने के लिए मैनपुरी से लेकर आगरा (जहां 2012 में मामला स्थानांतरित कर दिया गया) तक, कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े। 

खेतिहर मजदूरी का काम करता है राजवीर

उन्होंने कहा कि इन सालों में राजवीर ने लगभग 300 अदालती सुनवाइयों में हिस्सा लिया। यादव ने कहा, 'राजवीर अपने परिवार पर मुश्किल से ध्यान दे पाता था। उस पर अपनी दो बेटियों, जिनमें से एक दिव्यांग है की शादी की जिम्मेदारी थी। उसके बेटे गौरव को स्कूल छोड़ना पड़ा और अब वह खेतिहर मजदूर के रूप में काम करता है।' 

पुलिस की गलती की वजह से झेलनी पड़ी मुसीबतें

उन्होंने कहा कि राजवीर को ये दुश्वारियां अपनी वजह से नहीं, बल्कि पुलिस की गलती की वजह से झेलनी पड़ीं। यादव के अनुसार, राजवीर को आखिरकार 24 जुलाई को राहत मिली, जब विशेष न्यायाधीश स्वप्न दीप सिंघल ने उसे आरोपमुक्त करते हुए एक कठोर आदेश पारित किया। 

17 साल झूठे मुकदमे का सामना करना पड़ा

कोर्ट ने कहा, 'पुलिस और अधिकारियों की घोर लापरवाही के कारण, एक निर्दोष व्यक्ति को 22 दिन जेल में बिताने पड़े और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए 17 साल तक अदालत में झूठे मुकदमे का सामना करना पड़ा।' (भाषा के इनपुट के साथ)

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