Saturday, April 20, 2024
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दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, 8 माह से अधिक के गर्भ गिराने की दी इजाजत; जानें क्या कुछ कहा

महिला ने अपनी अर्जी में कोर्ट को बताया था कि भ्रूण में दिमागी विकृति पाई गई है, जिस पर जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने सुनवाई करते हुए कहा कि मेडिकल कंडीशन के आधार पर अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि मां की पसंद आखिरी है।

Malaika Imam Edited By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Published on: December 06, 2022 18:53 IST
गर्भपात पर दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO गर्भपात पर दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला

दिल्ली हाई कोर्ट ने 33 सप्ताह की प्रेग्नेंट महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 26 साल की विवाहित महिला के 33 सप्ताह यानी करीब 8 महीने के गर्भ गिराने की इजाजत दे दी है। दिल्ली हाई कोर्ट ने डॉक्टर की सलाह के आधार पर यह मंजूरी दी है। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि मामले में मां का फैसला सर्वोपरि होगा।

याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में कोर्ट को बताया था कि भ्रूण में दिमागी विकृति पाई गई है, जिस पर जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने सुनवाई करते हुए कहा कि मेडिकल कंडीशन के आधार पर अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि मां की पसंद आखिरी है, लिहाजा इस पर विचार करते हुए अदालत ने गर्भपात की इजाजत दे दी है। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता लोकनायक नारायण जय प्रकाश हॉस्पिटल (LNJP) या अपनी पसंद के किसी अस्पताल में अबॉर्शन करा सकती है।

भ्रूण हटाने का आदेश

हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के डॉक्टरों की कमेटी ने कहा था कि भ्रूण हटाना सही नहीं है। इसके बाद हाई कोर्ट ने कुछ डॉक्टरों से बातचीत की और भ्रूण हटाने का आदेश दिया है। याचिका में कहा गया था कि गर्भधारण के बाद से याचिकाकर्ता ने कई अल्ट्रासाउंड कराए। 12 नवंबर के अल्ट्रासाउंड की जांच में पता चला कि महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण में सेरेब्रल विकार है। याचिकाकर्ता महिला ने अल्ट्रासाउंड टेस्ट की पुष्टि के लिए 14 नवंबर को एक निजी अल्ट्रासाउंड में जांच कराई। उसमें भी भ्रूण में सेरेब्रल विकार का पता चला।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने बॉम्बे हाई कोर्ट और कलकत्ता हाई कोर्ट के एक फैसले को उद्धृत करते हुए कहा था कि MTP एक्ट की धारा 3(2)(बी) और 3(2)(डी) के तहत भ्रूण को हटाने की अनुमति दी जा सकती है। मामले को देखते हुए जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि यह अधिकार एक महिला को अंतिम विकल्प देता है कि वह उस बच्चे को जन्म दे या नहीं, जिसे उसने गर्भधारण किया है। भारत उन देशों में से है, जो अपने कानून में महिला की पसंद को मान्यता देता है यानी भारतीय कानून में महिला ही यह तय करती है कि वह गर्भधारण के बाद बच्चे को जन्म देना चाहती है या नहीं।

क्या है MTP एक्ट?

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) एक्ट के तहत विवाहित महिलाओं की विशेष श्रेणी, जिसमें दुष्कर्म पीड़िता, दिव्यांग और नाबालिग जैसी अन्य संवेदनशील महिलाओं के लिए गर्भपात की ऊपरी समय सीमा 24 सप्ताह थी, जबकि अविवाहित महिलाओं के लिए यही समय सीमा 20 सप्ताह थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसी अंतर को खत्म करते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत सभी (विवाहित, अविवाहित ) महिलाओं को 24 सप्ताह के अंदर गर्भपात का अधिकार दिया है।

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