
- फिल्म रिव्यू: स्काईफोर्स
- स्टार रेटिंग: 3 / 5
- पर्दे पर: 23.01.2025
- डायरेक्टर: अभिषेक अनिल कपूर
- शैली: एक्शन थ्रिलर
अक्षय कुमार ने इस साल की शुरुआत शानदार अंदाज में की है। जोश से भरी कहानी के साथ एक्टर ने वर्दी में 'स्काई फोर्स' से वापसी की है। 'स्काई फोर्स' 1965 के भारत-पाकिस्तान हवाई युद्ध में पाकिस्तान के सरगोधा एयरबेस पर भारत के जवाबी हमले पर आधारित है। ये फिल्म न केवल भारत के पहले हवाई हमले के बारे में बात करती है बल्कि एक वायु सेना अधिकारी की बहादुरी और वीरता के बारे में भी बताती है, जिन्होंने इस एयरस्ट्राइक को सफल बनाया, लेकिन वीरगति को प्राप्त हो गए। फिल्म की कहानी तो दमदार है, लेकिन किरदारों को निभा रहे एक्टर्स में कितना दम है, ये जानने के लिए पढ़ें पूरा रिव्यू।
कहानी
फिल्म की कहानी शुरू होती है 1971 में जब पाकिस्तान की वायु सेना ने अचानक भारत के एयरबेस पर हमला कर दिया। भारतीय बलों ने जवाबी हमले में एक पाकिस्तानी पायलट अहमद हुसैन (शरद केलकर) को पकड़ लिया था। भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर के.ओ. आहूजा (ओ.पी. तनेजा वीआरसी के चित्रण में अक्षय कुमार) अहमद से पूछताछ करने के लिए पहुंचते हैं। इस पूछताछ में उन्हें पता चलता है कि 1965 के सरगोधा हमले के बाद अहमद को सम्मानित किया गया था। आहूजा के मन में यहीं से संदेह पैदा होता है और पहला सुराग भी हाथ लगता है।
आगे बढ़ते हुए कहानी 6 साल और पीछे जाती है। 1965 के फ्लैशबैक में विंग कमांडर के.ओ. आहूजा आदमपुर एयरबेस पर पोस्टेड दिखाए जाते हैं जहां अपने साथियों को युद्ध के लिए तैयार करते हैं। इनमें टी. विजया (वीर पहारिया द्वारा अभिनीत अज्जमदा बोप्पय्या देवय्या एमवीसी का चित्रण) और अन्य शामिल हैं। विजया में आहूजा को अपना वीरगति को प्राप्त हो चुका भाई नजर आता है। विजया एक रिबेल युवा अधिकारी है, जिसमें देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का जुनून है।
यहीं से कहानी में रोमांच बढ़ता है। भारतीय एयरबेस पर पाकिस्तान हमला करता है, जिसमें कई जवान मारे जाते हैं। इसके बाद भारत बदले की आग में झुलसता है और अपने कमजोर हवाई जहाजों की मदद से पाकिस्तानी एयरफोर्स से लोहा लेता है। पाकिस्तान के माडर्न और नई तकनीक वाले एयरक्राफ्ट्स को नष्ट करने के लिए स्काईफोर्स मिशन अहूजा की अगुवाई में प्लान किया जाता है। भारत इसमें सफलता हासिल करता है, लेकिन एक साथी इस मिशन में गुमशुदा हो जाता है। ये कोई और नहीं बल्कि टी विजया है। इस हादसे के बाद विंग कमांडर आहूजा की जिंदगी किस करवट बैठी है, परिवार का क्या हश्र होता है और विजया की खोज में कैसे 23 साल बीतते हैं, ये आगे की कहानी में आपको देखने को मिलेगा।
निर्देशन और लेखन
निर्देशक अभिषेक अनिल कपूर और संदीप केवलानी ने एक ऐसी कहानी पेश कि जिसके बारे में कम ही लोगों को पता होगा। असल घटना पर आधारित होने के बाद भी फिल्म मनोरंजक है और बांधे रखती है। कहानी में सस्पेंस भी अंत तक बना के रखा गया है। एक्शन सीन और वॉर सींस कमाल के हैं। एयरबेस पर हुए हमले की सिनेमेटोग्राफी शानदार है, वो पूरी तरह से दर्शकों को कहानी में बंधे रखती है। भावनात्मक क्षणों में आंखें भर आना लाज़मी है। कई फ्रेम ऐसे हैं जो जोश भरते हैं। अक्षय कुमार के जोशीले डायलॉग्स और सटीक गाने जान डालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
वीएफएक्स का काम कुछ जगहों पर कमाल का है। वहीं इक्का-दुक्का जगह ऐसी भी हैं जहां आपको कम में ही संतोष करना पड़ेगा, खास तौर पर शुरुआती एरियल सीन में। 125 मिनट के रनटाइम वाली ये फिल्म कहीं भी खिंची हुई नहीं लगती है यानी कहानी के प्रवाह को मजबूत बनाए रखा गया है। हवाई युद्ध के सीन काफी प्रभावी हैं, लेकिन ये हॉलीवुड वाला स्तर मैच नहीं कर सके हैं। फिल्म में कई गाने हैं और सभी कहानी के साथ फिट बैठ रहे हैं।
एक्टिंग
अक्षय कुमार एक दृढ़ एयरफोर्स अधिकारी के रूप में चमक रहे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी की गंभीरता को सरलता से अक्षय ने प्रस्तुत किया है। वर्दी हमेशा उन पर सूट करती रही है और इस बार भी वो इसकी गरिमा और शोभा को बढ़ाने में नहीं चुके हैं। फिल्म में वो कभी भी हार नहीं मानने वाले जज्बे को जिंदा रखने में कामयाब हैं। उनकी पत्नी की भूमिका निभाने वाली निम्रत कौर के साथ उनकी केमिस्ट्री बेमिसाल है। कई हिस्से में आपको एयरलिफ्ट की याद आ सकती है। निम्रत कहानी में गर्माहट जोड़ती हैं। उनका रोल काफी छोटा है, लेकिन उनके बारे में और जानने कि जिज्ञासा पैदा कर रहा है। वो जिस कनविक्शन से अक्षय का हाथ थाम उन्हें संभालती हैं और उदास आंखों से उनकी ओर देखती हैं, वो इस फिल्मी रिश्ते को और गहराई दे रहा है।
वीर पहाड़िया की ये डेब्यू फिल्म है। उनका काम संतोषजनक है। पहली परफॉर्मेंस खासा इंपैक्ट नहीं छोड़ रही। उनके हिस्से कई दमदार डायलॉग आए हैं, लेकिन उनमें उत्साह और जोश की कमी दिख रही है। वो अक्षय कुमार की एनर्जी को मैच नहीं कर पा रहे। वहीं अब तक लगभग 10 फिल्में कर चुकी सारा अली खान ने खासा निराश किया है। उनके चेहरे पर एक ही एक्सप्रेशन पूरी फिल्म में है। कहने को वो एक साउथ इंडियन महिला के रोल में हैं, लेकिन उसमें ढल नहीं सकी हैं। उनमें एक अधिकारी की पत्नी वाला स्वैग मिसिंग है। वो एक अबला ज्यादा नजर आई हैं। खुशी से लेकर गम वाले डायलॉग उन्होंने जैसे-तैसे फेंके हैं। वीर और सारा के बीच कैमिस्ट्री जीरो है।
शरद केलकर पाकिस्तानी अफसर के रोल में परफेक्ट हैं। चंद सीन में भी उन्होंने छाप छोड़ी है। मनीष चौधरी डेविड लॉरेंस के रोल में प्रभावी हैं।
क्यों देखें फिल्म
कुल मिलकर अगर वीर पहाड़िया और सारा अली खान के कुछ सीन को नजरअंदाज किया जा सके तो ये एक देखने लायक फिल्म है, जो देश के एक गौरवशाली पल की कहानी दिखने के साथ ही भारतीय जाबांजों के जज्बे को सलाम करती है। हम इसे तीन स्टार दे रहे हैं।