Tuesday, March 18, 2025
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The Diplomat Review: न गोलियों की तरह चुभने वाले डायलॉग, न हाई-ऑक्टेन एक्शन, फिर भी सही जगह चोट करती है जॉन अब्राहम की 'द डिप्लोमैट'

'द डिप्लोमैट' होली के दिन यानी 14 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। इस फिल्म में जॉन अब्राहम और सादिया खतीब लीड रोल में हैं। फिल्म की कहानी में कितना दम है, जानने के लिए पढ़े पूरा रिव्यू।

जया द्विवेदी
Updated : March 13, 2025 8:53 IST
The diplomate
Photo: INSTAGRAM 'द डिप्लोमैट'
  • फिल्म रिव्यू: द डिप्लोमैट
  • स्टार रेटिंग: 3 / 5
  • पर्दे पर: 13/03/2025
  • डायरेक्टर: शिवम नायर
  • शैली: थ्रिलर

भारत-पाकिस्तान संबंधों पर आधारित कई फिल्में हैं और हर बार इन कहानियों में कई बातें कॉमन होती हैं। वो क्या? बहुत सारे घिसेपिटे डायलॉग, जोरदार ड्रामा, एक्शन और नारेबाजी। माना जाता है कि ये चार चीजें लोगों की रगों में देशभक्ति की भावना पैदा करने के लिए काफी हैं। 'बॉर्डर', 'गदर', 'लक्ष्य' जैसी फिल्मों में ऐसा बिकाऊ मसाला भर-भर कर देखने को पहले ही मिल चुका है। खैर 'द डिप्लोमैट' इन सभी से अलग है। इस फिल्म में 'बेबी' और 'ए वेडनेसडे' वाला साइलेंट इफेक्ट देखने को मिल रहा है। 'द डिप्लोमैट' एक ऐसी फिल्म है जो दो प्रतिद्वंद्वी, देशों भारत और पाकिस्तान के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंधों की पड़ताल करती है। बिना कुछ भी ओवर किए फिल्म कहानी को पेश करती हैं और सटीक जगह पर चोट भी करती है। देश भक्ति वाली कई फिल्मों में अपनी छाप छोड़ने वाले जॉन अब्राहम ने इस बार अपनी पर्सनालिटी पर जचने वाला किरदार चुनं हैं। उनके हाथ एक ऐसी स्क्रिप्ट लगी है जो असल में ठोस है। 

कहानी

वास्तविक जीवन पर 'द डिप्लोमैट' आधारित है। फिल्म उज्मा अहमद की कहानी पेश करती है, जो कि एक भारतीय महिला है। इस महिला की पाकिस्तान में जबरन शादी कर दी जाती है और ये शारीरिक हिंसा और यौन उत्पीड़न का सामना करती है और फिर भारतीय दूतावास में शरण लेती है। रियल लाइफ कैरेक्टर राजनयिक जे.पी. सिंह के सामने ये मामला आता है। इसे सुलझाने में कई चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं। राजनयिक बाधाओं, कानूनी जटिलताओं और दोनों सरकारों के दबाव से जूझते हुए उज्मा को घर लाने के लिए हर संभव प्रयास करता है। हाल के दिनों में हमने भारत-पाकिस्तान तनाव को दर्शाती कई फिल्में देखी हैं, लेकिन जॉन अब्राहम की फिल्म उनसे काफी अलग है। जॉन ने राजनयिक जेपी सिंह की भूमिका निभाई है, जो कम बोलने वाले लेकिन दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हैं और अपने काम को अच्छी तरह जानते हैं। पाकिस्तान में राजनयिक के तौर पर काम करना आसान काम नहीं है और उन्हें पता है कि उपद्रवी पाकिस्तानी भीड़ से कैसे निपटना है। फिल्म में पाकिस्तान में फैली अराजकता को दिखाया गया है।

अभिनय

अगर आप एक्शन लवर हैं तो फिल्म आपको निराश करेगी क्योंकि इसमें कोई हाई-ऑक्टेन एक्शन पैक्ड ड्रामा नहीं है, जहां  हम जॉन अब्राहम को शर्टलेस देख सकें। फिल्म को वास्तविक ही रखने की कोशिश की गई है। जॉन अब्राहम को एक दृढ़, सुलझे हुए और सीधे-सादे राजनयिक के तौर पर दिखाया गया है। इस किरदार में वो खूब जमे हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि इस बार जॉन ने अपने लिए कुछ अलग चुना है और ये उन्हें पूरी तरह से सूट भी कर रहा है। जॉन अब्राहम ने अपने अभिनय के दम पर इस रोल को पूरी तरह से जस्टीफाई भी किया है। हमेशा दमखम दिखाने और अपनी ग्लैमरस बॉडी को फ्लॉन्ट करते नजर आने वाले जॉन अब्राहम इस बार सूट-बूट में हैं और शालीनता को दर्शा रहे हैं। 

सादिया खतीब की बात करें तो वह वास्तव में फिल्म की असली हीरो बनकर सामने आई हैं। तेज भागती इस कहानी में वो खुद तो स्थापित करने में कामयाब रही हैं। सादिया खतीब ने उज्मा अहमद के वास्तवित जीवन की कहानी को पेश किया है। एक प्रताड़ित पत्नि और बंदी के इमोशन्स उनके चेहरे पर साफ दिखे। जॉन अब्राहम के साथ सादिया का कोई रोमांटिक एंगल तो नहीं है, लेकिन दोनों के बीच तालमेल अच्छा है। कुमुद मिश्रा, उज्मा के वकील की भूमिका में नजर आए हैं और रेवती विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की भूमिका निभा रही हैं। दोनों ही अपनी-अपनी जगह शानदार हैं। जगजीत संधू आईएसआई कर्मी और सादिया खतीब के किरदार के पति की भूमिका निभा रहे हैं। उनका किरदार प्रभावशाली है। जब-जब वो उज्मा को पीटता है तो दर्द और पीड़ा आपको महसूस होगी। जगजीत की आंखों में क्रूरता दिखाई दी है। शारिब हाशमी, एक खोजी पत्रकार के रोल में नजर आएं हैं, वो जैसे ही स्क्रीन पर आएंगे आपके चेहरे पर मुस्कान ला देंगे।

निर्देशन

अब आते फिल्म के सबसे कमजोर पक्ष पर, जो कि इसका निर्देशन ही है। शिवम नायर के निर्देशन में कुछ खामियां हैं। फिल्म में उन्होंने वास्तविक जीवन के नामों का उपयोग किया, लेकिन नेताओं के नाम का प्रयोग करने से बचे हैं। रियल लाइफ पर आधारित फिल्म होने के बावजूद एक चीज जो सबसे ज्यादा खटकती है वो ये है कि हमेशा ही भारतीय फिल्मों में पाकिस्तानियों को खूंखार, पत्नि को पीटने वाला और पठानी कुर्ता पजामा पहनने वाला दिखाया गया है। बड़ी गाड़ियों और बंदूकों के साथ घूमते, आतंकवाद फैलाते इन पाकिस्तानी किरदारों के घरों से इस बार भी गरीबी की बू ही आ रही है।  इस बार भी आतंकियों को पहाड़ी गावों के परिवेश का ही दिखाया गया, जो काफी हद तक कश्मीर से मिलता जुलता ही है, जबकि पाकिस्तान में आतंकवाद लाहौर और इस्लामाबाद के शहरी परिवेश तक घुसा हुआ है। पाकिस्तान का पिकचराइजेशन कुछ अलग हो सकता था। इस बार शायद फिल्म में पाकिस्तानी डिप्लोमेसी को भी बारीकी से दिखाने का मौका था, लेकिन उससे चूकते हुए सिर्फ आतंकवाद पर ही सीमित रखा गया।  

कहानी जाहिर तौर पर दिलचस्प है और अभिनय सराहनीय है, फिर भी फिल्म की पृष्ठभूमि कमजोर पड़ती है। इस बार कुछ नया और अलग दिखाने का मौका निर्देशक के हाथ से चूक गया है। अपनी खूबियों के बावजूद 'द डिप्लोमैट' ये अनुभव कराती है कि नयापन होने के बाद भी कुछ पुराना छूट गया है। इससे इतर पाकिस्तान या आतंकियों के बीच भारतीय लड़की का फसना इससे पहले भी कई फिल्मों और वेब-सीरीज में दिखाया गया है। वास्तिविक और नई कहानी होने के बाद भी ये जानी-पहचानी लगती है। फिल्म जरा भी बोझिल नहीं करती, जमहाई लेने का आपके पास एक भी मौका नहीं आएगा, इसके लिए निर्देशक की तारीफ होनी चाहिए। फिल्म कसी हुई है। हां, लेकिन पूरी फिल्म में आपका गेस वर्क काम करेगा और आप आगे की कहानी पहले ही सोच लेंगे। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और पिकचराइजेश कमाल के हैं। छोटे-छोटे एक्सप्रेशन्स को क्लोजअप सीन्स के जरिए शानदार तरीके से दिखाया गया है। 2 घंटे 10 मिनट के रनटाइम वाली इस फिल्म में सधी हुई एडिटिंग देखने को मिली है।

कैसी है फिल्म

फिल्म के हर छोटे-बड़े पहलू को हम पहले ही ऊपर बता चुके हैं। 'द डिप्लोमैट', जॉन अब्राहम की सबसे प्रभावशाली एक्टिंग को दिखाने वाली फिल्मों में से एक है। अगर आप देशप्रेमी होने के साथ जॉन अब्राहम के फैन हैं तो ये फिल्म एक मस्ट वॉच है। इससे इतर भी फिल्म को एक मौका जरूर देना चाहिए, क्योंकि कलाकारों का काम उम्दा है। फिल्म में किसी भी तरह का कोई प्रोपेगेंडा भी नहीं है और भारतीय कूटनीति की झलक काफी करीब से देखने को मिल रही है।

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