Saturday, April 27, 2024
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Explainer: यूएई में कॉप-28 सम्मेलन, पीएम मोदी भी ले रहे हिस्सा, जानिए भारत क्यों है इतना महत्वपूर्ण?

यूएई में जलवायु परिवर्तन की चिंताओं के बीच कॉप-28 सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा ले रहे हैं। ऐसे समय में जब दुनिया में तेजी से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया चिंतित है, यह समिट काफी अहम है। जानिए इस समिट में भार​त की भूमिका क्यों महत्वपूर्ण है।

Deepak Vyas Written By: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Updated on: November 30, 2023 13:20 IST
यूएई में कॉप-28 सम्मेलन- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV यूएई में कॉप-28 सम्मेलन

Cop-28 Summit in UAE: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई में चल रहे कॉप-28 सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए यूएई जा रहे हैं।  कॉप-28 बैठक का आयोजन 28 नवंबर से 12 दिसंबर, 2023 तक हो रहा है। इस बैठक में पीएम मोदी  पर्यावरण बदलाव को लेकर भारत के आगामी रोडमैप पर अपने विचार रखेंगे। भारत की आवाज में विकासशील देशों की समस्याओं का जिक्र होगा। वहीं पर्यावरण के मुद्दे पर विकासशील देशों की प्रमुख आवाज भारत बनेगा। 

इसके पहले ग्लासगो (ब्रिटेन) में इसी बैठक में पीएम मोदी ने भारत को वर्ष 2070 तक कार्बन न्यूट्रल (देश से कार्बन उत्सर्जन को खत्म करने) का रोडमैप पेश किया था। 

कई देशों के प्रमुखों से चर्चा, मालदीव के प्रेसिडेंट भी आएंगे

प्रधानमंत्री की यह वर्ष 2023 में यूएई की दूसरी बैठक है। इस बार यूएई में कॉप-28 के विभिन्न सत्रों में विश्व के 167 देशों के सरकारों के प्रमुखों या उनके प्रतिनिधियों के हिस्सा लेने की संभावना है। पीएम मोदी कई देशो के राष्ट्राध्यक्षों के साथ अलग से भी द्विपक्षीय बैठक करेंगे। इस सम्मेलन ने मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू भी हिस्सा लेने आ रहे हैं। हालांकि पीएम मोदी की उनके साथ बैठक का कोई प्लान नहीं है। मालदीव के प्रेसिडेंट तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन से मिलने के बाद मालदीव आएंगे। तुर्की की मोइज्जू से मुलाकात भारत के खिलाफ मुस्लिम ध्रवीकरण की एक रणनीति हो सकती है। 

पीएम मोदी की मुलाकात ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रइसी के साथ होने की संभावना है। फ्रांस, जर्मनी, जापान, सऊदी अरब, ब्राजील के शीर्ष नेताओं के भी इसमें हिस्सा लेने की संभावना है। इजराइल और हमास के बीच विवाद का साया इस बैठक पर पड़ने की आशंका थी, लेकिन अब दोनों पक्षों के बीच कुछ शांति स्थापित हुई है तो ज्यादा नेताओं के इसमें हिस्सा लेने की संभावना है।

 यूएई में कॉप-28 सम्मेलन

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यूएई में कॉप-28 सम्मेलन

क्या है कॉप-28, जानें इसके बारे में 

कॉप-28 एक सालाना बैठक है। यह दुनिया में जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं पर चिंता और विमर्श करने वाला एकमात्र बहुपक्षीय निर्णय लेने वाला मंच है। इस सम्मेलन में दुनिया के करीब करीब सभी देश हिस्सा लेते हैं। इजराइल और हमास जंग व रूस और यूक्रेन युद्ध की परिस्थितियों के बीच यह सामने आए 'भू राजनीतिक' जोखिमों के मद्देनजर यह सम्मेलन काफी अहम है। इसमें जलवायु परिवर्तन पर तो विमर्श होगा ही, साथ ही अन्य देशों से अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों की द्विपक्षीय बातचीत भी होंगी, जो काफी उपयोगी साबित होंगी।

कॉप-28 में क्या है भारत का रोल?

भारत एक तेजी से ​बढ़ता विकासशील देश है। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत विकासशील देशों की प्रमुख आवाज है और पुरजोर तरीके से अपना पक्ष रखेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है। वैसे भारत ग्रीन हाउस गैसों के शीर्ष उत्सर्जकों में से एक है। ऐसे में भारत के लिए यह अहम होगा कि वह महत्वाकांक्षी (दूरदर्शी) रहे, साथ ही न्यायसंगत भी रहे। 

विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे सम्मेलनों में सिर्फ चर्चा न हो, बल्कि कंक्रीट समाधान निकले यह जरूरी है। इसके लिए तीन उद्देश्यों का पूरा होना जरूरी है। ये हैं—एजेंडा व लक्ष्यों का निर्धारण, जमीन पर उतारने की प्रक्रिया का निर्धारण और कार्यान्वयन व प्रगति की निगरानी। यह सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है जब यह साल  रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म वर्ष रहा है। यही नहीं, जंगल की आग, बाढ़,सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं आपदाओं के साथ-साथ भू-राजनीतिक रूप से भी अशांत रहा है। 

कॉप-28 में किन विषयों पर रहेगी खास नजर?

कॉप-28 में कई अहम विषयों पर विकसित और तेजी से विकास कर रहे विकासशील देशों को ध्यान देना जरूरी होगा। उत्सर्जन शमन लक्ष्य, जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना, विकसित देशों से वित्तपोषण, इंडस्ट्री से मिलने वाले समाधानों पर फोकस, कम कार्बन नवाचार, पेरिस समझौते के अनुच्छेद को क्रियान्वित करने में प्रगति जैसे विषय काफी अहम हैं।

 यूएई में कॉप-28 सम्मेलन

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यूएई में कॉप-28 सम्मेलन

COP28 में जानिए क्या रहेंगी भारत की चुनौतियां?

  1. चूंकि भारत के खेतीहर देश है, यहां इस वजह से मीथेन उत्सर्जन काफी होता है। ऐसे में भारत के लिहाज से मीथेन उत्सर्जन में कटौती कॉप-28 का अहम मुद्दा हो सकता है। कृषि से उत्सर्जन में कटौती का मतलब फसल पैटर्न में बदलाव हो सकता है। इसका भारत की फूड सिक्योरिटी पर भी बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में भारत को ताकत के साथ अपनी बात रखना होगा। 
  2. नए सीएसई-डाउन टू अर्थ आकलन से पता चला है कि भारत ने इस साल के पहले नौ महीनों में लगभग हर दूसरे दिन एक चरम मौसम की घटना देखीं इसलिए देश को 'लॉस और डैमेज फाइनेंस' पर विशेष जोर देने की जरूरत हैं। 
  3. भारत तेजी से तरक्की कर रहा है। इसके बावजूद कोयले से अभी भी बिजली के संयंत्र चल रहे हैं। ऐसे संयंत्रों को तत्काल बंद करने की मांग का भी भारत को सामना करना पड़ेगा। अमेरिका सहित कई विकसित देश भारत और चीन जैसे देशों को कोयले से होने वाले प्रदूषण के लिए जिम्मेदार मानते हैं। हालांकि भारत इसे स्वीकार नहीं करेगा। कम से कम डेढ़ दशक तक भारत को कोयले से बिजली उत्पादन पर निर्भर रहना पड़ेगा। हालांकि भारत में हाल के वर्षों में पनविद्युत परियोजनाओं और विंड एनर्जी के उपयोग में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। भारत चरणबद्ध तरीके से कोयले के उपयोग को खत्म करने का तर्क देता रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में खपत होने वाली लगभग 73 प्रतिशत बिजली कोयले का उपयोग करके उत्पादित की जाती है।
  4.  भारत को नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए धन की जरूरत होगी। समाचार एजेंसी एएनआई ने बताया कि भारत स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के एक बड़े हिस्से में बदलाव कर रहा है। देश को ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के विकास के लिए एक बेहतर ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर के सपोर्ट के लिए फाइनेंस की जरूरत है। जी20 नई दिल्ली नेताओं की घोषणा में विकासशील देशों के लिए नेट जीरो लक्ष्य को पूरा करने के लिए 2030 से पहले की अवधि में 5.8-5.9 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत को रेखांकित किया गया था।
  5. कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह स्पष्ट किया गया है कि भारत की जलवायु कार्रवाइयां उत्सर्जन की तीव्रता या जीडीपी की प्रति इकाई उत्सर्जन के संदर्भ में तय की गई हैं, न कि सीधे उत्सर्जन पर। इसका मतलब है कि जबकि भारत का उत्सर्जन बढ़ता रहेगा, अल्प और मध्यम अवधि में सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में उत्सर्जन में गिरावट आएगी।  दुनिया ग्लोबल वार्मिंग को 1.5C से नीचे रखने में कितनी दूर है और अंतर को कम करने के लिए और क्या करने की जरूरत है। इस पर भी भारत की ओर से अपना पक्ष रखा जा सकता है।

क्या रहेगा बैठक का अहम एजेडा?

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इस बार की बैठक में साल 2030 से पूर्व ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाना और उत्सर्जन में कटौती करना। पुराने वादों को पूरा करके और एक नए समझौते के लिए रूपरेखा तैयार करना जलवायु क्षेत्र में सुधार। प्रकृति, लोगों, जीवन व आजीविका को जलवायु कार्रवाई के केन्द्र में रखना। अभी तक के सबसे समावेशी कॉप के संगठन पर फोकस रहेगा।  

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