Tuesday, April 23, 2024
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ऑक्सीजन थेरेपी के कारण हो रहा है ब्लैक फंगस? AIIMS निदेशक रणदीप गुलेरिया ने दी जानकारी

उन्होंने कहा, ‘‘कई मरीज घर पर इलाज करा रहे हैं। वे ऑक्सीजन थेरेपी पर नहीं थे लेकिन उनमें भी म्यूकरमाइकोसिस का संक्रमण देखा गया। इसलिए ऑक्सीजन थेरेपी और इस संक्रमण का सीधा संबंध नहीं है।’’

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: May 24, 2021 22:22 IST
ऑक्सीजन थेरेपी से फंगस का कोई संबंध नहीं, AIIMS निदेशक रणदीप गुलेरिया ने बताया- India TV Hindi
Image Source : PTI ऑक्सीजन थेरेपी से फंगस का कोई संबंध नहीं, AIIMS निदेशक रणदीप गुलेरिया ने बताया

नई दिल्ली: दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने सोमवार को कहा कि बेहतर होगा कि म्यूकरमाइकोसिस को उसके नाम से पहचाना जाए, बजाय कि कवक (फंगस) के विभिन्न रंगों से क्योंकि इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि म्यूकरमाइकोसिस का ऑक्सीजन थेरेपी से निश्चित संबंध नहीं देखा गया है। उन्होंने कहा, ‘‘कई मरीज घर पर इलाज करा रहे हैं। वे ऑक्सीजन थेरेपी पर नहीं थे लेकिन उनमें भी म्यूकरमाइकोसिस का संक्रमण देखा गया। इसलिए ऑक्सीजन थेरेपी और इस संक्रमण का सीधा संबंध नहीं है।’’ 

डॉ गुलेरिया ने रेखांकित किया कि बेहतर होगा कि म्यूकरमाइकोसिस के बारे में बात करते हुए ‘ब्लैक फंगस’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाए, जिससे कई भ्रम से बचा जा सकेगा। उन्होंने कहा, ‘‘एक ही फंगस का अलग-अलग रंगों के आधार पर नामकरण करने से भ्रम पैदा होगा। म्यूकरमाइकोसिस संचारी रोग नहीं है जैसा कि कोविड-19 है। करीब 90 से 95 प्रतिशत मरीज जो म्यूकरमाइकोसिस से संक्रमित हैं या तो मधुमेह के शिकार हैं या उन्होंने स्ट्रॉयड लिया था। यह बीमारी उनमें दुर्लभ है जो मधुमेह के मरीज नहीं हैं या जिन्होंने स्ट्रॉयड नहीं ली है।’’ 

डॉ गुलेरिया ने कहा, ‘‘अगर हम पहली और दूसरी लहर के आंकड़ों को देखें तो वे समान हैं और दिखाते हैं कि बच्चे सुरक्षित हैं। अगर उन्हें संक्रमण होता भी है तो हल्के लक्षण सामने आते हैं। वायरस बदला नहीं है, ऐसे में कोई संकेत नहीं है कि तीसरी लहर में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होंगे।’’ गुलेरिया ने रेखांकित किया, ‘‘बच्चों को महामारी के बीच मानसिक तनाव, स्मार्टफोन की लत और शैक्षणिक चुनौतियों से अतिरिक्त नुकसान हुआ है।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘अगर लक्षण करीब 12 हफ्ते से अधिक समय तक रहते हैं तो उसे पोस्ट कोविड सिंड्रोम कहते हैं और उसके इलाज की जरूरत है। समान लक्षण सांस लेने में समस्या, खांसी, सीने में जकड़न, व्याकुलता और नाड़ी का तेज चलना है।’’ 

वहीं, राज्यों द्वारा मॉडर्ना और फाइजर के टीके नहीं खरीद पाने के सवाल पर स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा, ‘‘चाहे फाइजर हो या मॉडर्ना, केंद्रीय स्तर पर हम उनके साथ समन्वय कर रहे हैं और दो तरह से सहूलियत दे रहे हैं। पहली- मंजूरी के स्तर पर नियामकीय सहूलियत और दूसरी- खरीदने संबंधी सुविधा।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘फाइजर और मॉडर्ना के उत्पादन की बुकिंग हो चुकी है और भारत को वे कितनी खुराक की आपूर्ति कर सकते हैं यह उनके पास उपलब्ध अतिरिक्त स्टॉक पर निर्भर करता है। वे केंद्र के पास वापस आएंगे और हम राज्यों को उन्हें मुहैया कराने में मदद करेंगे।’’ 

उन्होंने बताया कि भारत में पिछले 17 दिनों से कोविड-19 के मामलों में तेजी से कमी आ रही है। अग्रवाल ने कहा कि पिछले 15 हफ्तों में नमूनों की जांच में 2.6 गुना की वृद्धि की गई है जबकि पिछले दो हफ्ते से साप्ताहिक संक्रमण दर में तेजी से गिरावट आ रही है।

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