Thursday, December 25, 2025
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मंदिर निर्माण पर अध्यादेश और तीन तलाक पर कानून बना तो देंगे अदालत में चुनौती: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने रविवार को कहा कि तीन तलाक पर संसद में कानून बनाए जाने की स्थिति में वह इसे अदालत में चुनौती देगा।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : Dec 16, 2018 05:16 pm IST, Updated : Dec 16, 2018 08:18 pm IST
Triple Talaq- India TV Hindi
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लखनऊ: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने रविवार को कहा कि सरकार द्वारा अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिये अध्यादेश लाये जाने और तीन तलाक पर संसद में कानून बनाए जाने की स्थिति में वह उन्हें अदालत में चुनौती देगा। बोर्ड ने यह भी कहा कि मंदिर के लिये कानून बनाने की मांग कर रहे कुछ हिन्दूवादी संगठनों के भड़काऊ बयानों पर सरकार रोक लगाये और और उच्चतम न्यायालय उनका संज्ञान ले। बोर्ड की कार्यकारिणी समिति की यहां हुई बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य कासिम रसूल इलियास ने बताया कि केंद्र सरकार तीन तलाक पर अध्यादेश लाई है। इसकी मियाद छह महीने होगी। अगर यह गुजर गई तो कोई बात नहीं लेकिन अगर इसे कानून की शक्ल दी गई, तो बोर्ड इसको उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगा।

उन्होंने कहा कि यह अध्यादेश मुस्लिम समाज से सलाह-मशवरा किए बगैर तैयार किया गया है और अगर सरकार इसे संसद में विधेयक के तौर पर पेश करेगी तो बोर्ड की समिति सभी धर्मनिरपेक्ष दलों से गुजारिश करेगी कि वे इसे पारित ना होने दें। इलियास ने बताया कि बोर्ड का स्पष्ट रुख है कि वह बाबरी मस्जिद मामले में अदालत के अंतिम फैसले को स्वीकार करेगा। बैठक में यह भी राय बनी कि सरकार मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश या कानून लाने की मांग के साथ दिए जा रहे जहरीले बयानों पर रोक लगाए और उच्चतम न्यायालय भी इसका संज्ञान ले। बोर्ड के सचिव जफरयाब जीलानी ने इस मौके पर कहा कि अयोध्या के विवादित स्थल पर यथास्थिति बरकरार रहने की स्थिति में कानूनी तौर पर कोई अध्यादेश नहीं लाया जा सकता। यही वजह है कि सरकार ने यह रुख दिखाया है कि वह अध्यादेश नहीं लाएगी। अगर कोई अध्यादेश आता भी है तो वह कानूनन सही नहीं होगा और बोर्ड उसको चुनौती देगा।
 
इस सवाल पर कि बोर्ड मंदिर बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद तथा अन्य कुछ संगठनों द्वारा विभिन्न आयोजन करके सरकार पर दबाव बनाए जाने की आड़ में दिये जा रहे भड़काऊ बयानों की शिकायत उच्चतम न्यायालय से क्यों नहीं करता, जीलानी ने कहा कि यह हमारे लिये मुनासिब नहीं है। हमारा मानना है कि जो लोग इस तरह के बयान दे रहे हैं उनके खिलाफ सरकार कार्रवाई करे और उच्चतम न्यायालय भी इसका संज्ञान ले। उसके लिये उपाय सोचा जा रहा है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय कह चुका है कि राम जन्मभूमि आंदोलन किसी पार्टी का कार्यक्रम हो सकता है, किसी सरकार का नहीं, क्योंकि हुकूमत धर्मनिरपेक्षता से आबद्ध है। जीलानी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में इस्माइल फारूकी मामले पर निर्णय के दौरान कहा गया है कि इस फैसले का असर अयोध्या मामले पर नहीं पड़ेगा। बोर्ड ने इसका स्वागत किया है। विवादित स्थल पर मालिकाना हक से जुड़े मुकदमे की सुनवाई अब शुरू होनी है। अदालत यह कह चुकी है कि वह इस मसले का आस्था के आधार पर नहीं बल्कि जमीन पर मालिकाना हक के मुकदमे के तौर पर निर्णय करेगी। 
 
इलियास ने बताया कि बैठक में बोर्ड की दारुल कजा कमेटी की रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें बताया गया कि इस साल देश में 14 नई दारुल कजा का गठन किया गया है। इस महीने के अंत तक कुछ और स्थानों पर भी इन्हें कायम किया जाएगा। दारुल कजा में कम वक्त में जायदाद, वरासत और तलाक जैसे मामलों का निपटारा किया जाता है। इससे बाकी अदालतों के बोझ को कम करने में मदद मिलती है। उन्होंने बताया कि बैठक में यह फैसला किया गया है कि दारुल कजा के अब तक दिये गये फैसलों का दस्तावेजीकरण किया जाएगा ताकि अदालत के बोझ को कम करने में दारुल कजा के योगदान को दुनिया के सामने लाया जा सके।
 
इलियास ने बताया कि बोर्ड की तफहीम-ए-शरीयत कमेटी ने बैठक में अपनी रिपोर्ट पेश की है। यह समिति शरीयत के कानूनों को लेकर समाज में फैली गलतफहमियों को दूर करने के लिये बनायी गयी है। यह समिति जगह-जगह प्रबुद्ध वर्ग के लोगों की कांफ्रेंस करके उनके सामने तलाक, निकाह, विरासत वगैरह से जुड़े शरई चिंतन को पेश करती है। इस कमेटी की रिपोर्ट से पता लगा कि बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों में भी ऐसे कार्यक्रम हो रहे हैं। बोर्ड की बैठक में राय बनी है कि इन कार्यक्रमों में दूसरे धर्मों के मानने वाले बुद्धिजीवी लोगों को भी शामिल किया जाए ताकि शरीयत से जुड़ी गलतफहमियां दूर हो सकें। बोर्ड की महिला इकाई की प्रमुख असमा जहरा ने इस मौके पर बताया कि उनके विंग की रिपोर्ट के मुताबिक पूरे मुल्क में तीन तलाक अध्यादेश और शरई कानूनों में दखलअंदाजी के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में करीब दो करोड़ महिलाओं ने शिरकत की। 

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