Saturday, April 20, 2024
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दीवारों पर गढ़े हैं जनरल डायर की क्रूरता के निशान, पढ़िए- जलियांवाला बाग की पूरी कहानी

100 साल पीछे मुड़िए और इतिहास में झांककर देखिए 13 अप्रैल 1919 का वो दिन, जो भारत के लिए अमावस की काली रात से भी ज्यादा स्याह साबित हुआ।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: April 13, 2019 16:37 IST
100th anniversary of Jallianwala Bagh massacre- India TV Hindi
100th anniversary of Jallianwala Bagh massacre

नई दिल्ली: 100 साल पीछे मुड़िए और इतिहास में झांककर देखिए 13 अप्रैल 1919 का वो दिन, जो भारत के लिए अमावस की काली रात से भी ज्यादा स्याह साबित हुआ। वो अंग्रेजी हुकुमत की प्रताड़ना और हिंदुस्तान की सौम्यता का चरम था। मौका बैसाखी का था और जगह थी- अमृतसर का जलियावाला बाग। शांति सभा के लिए हजारों लोग इकट्ठा हुए थे शाम के चार बजे तक सब ठीक चल रहा था लेकिन फिर वहां जनरल डायर पहुंचा।

जनरल डायर वही है, जिसने जलियांवाला बाग को गोलियों की तड़तड़ाहट से मौत के सन्नाटें में धकेल दिया। उस शाम जलियांवाला बाग में आवाजों के नाम पर सिर्फ गोलियों की गूंज थी और सांसों के नाम पर मासूम, निहत्थे हिंदुस्तानियों की मरती हुई जिंदगी थी। अंग्रेजी बारूद ने बाग की धरती को खून से रंग दिया था। उस रोज जनरल डायर के हुक्म पर अंग्रेजी फौज ने चंद मिनटों में ही 1,650 राउंड गोलियां बरसाई थीं। जिसकी गवाही आज भी बाग की दीबारों पर दर्ज है।

अंग्रेजी फौज के बरसते बारूद से बचने के लिए लोगों ने रास्ता खोजना चाहा लेकिन बदकिस्मती से वहां आने और जाने का सिर्फ एक रास्ता ही था, जिसपर जनरल डायर की फौज ने कब्जा कर रखा था। अब गोलियों के सामने जिंदगी और मौत के बीच का फासला घटने लगा था। कुछ लोगों ने बाग के कुएं में कूदकर जान बचानी चाही लेकिन कुआं भी काल बन गया। कुएं में दबने से भी कई लोगों की मौत हुई।

दरअसल, उन दिनों पंजाब में मार्शल लॉ लागू था, जिसमें अगर तीन से अधिक लोग इकट्ठे दिखते थे तो उन्हें अंग्रेजी सैनिक पकड़ लेते थे। इसी कड़ी में अमृतसर के दो नेता चौधरी बुगा मल और महाशा रतन चंद को अंग्रेजी सरकार ने 12 अप्रैल को गिरफ्तार करवा लिया था, जिससे लोगों में गुस्सा था। ऐसे में जब 13 अप्रैल को बैसाखी के लिए लोग जलियांवाला बाग में इक्ट्ठा हुए तो जनरल डायर ने उनपर गोलियां चलियां चलवा दीं।

सरकारी आंकड़ों के मुताबित, जनरल डायर की इस क्रूर कार्रवाई में 337 लोग मारे गए और करीब 1500 के ज्यादा लोग घायल हुए। लेकिन, ऑफ द रिकॉर्ड मरने वालों का आंकड़ा 1000 के करीब बताया जाता है। मरने वालों में बच्चे, महिलाएं, जवान, बढ़े सभी शामिल थे।

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