Saturday, April 27, 2024
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दिल्ली में हर साल पैदा होता है 40 लाख टन कचरा, तेज गति से हो रही है वृद्धि!

देश की राजधानी दिल्ली में हर साल कचरे में दो फीसदी की वृद्धि हो रही है, लिहाजा यह चिंता का विषय है।

IANS Reported by: IANS
Published on: February 14, 2019 9:51 IST
दिल्ली में हर साल पैदा होता है 40 लाख टन कचरा, तेज गति से हो रही है वृद्धि! | PTI File- India TV Hindi
दिल्ली में हर साल पैदा होता है 40 लाख टन कचरा, तेज गति से हो रही है वृद्धि! | PTI File

नई दिल्ली: द एनर्जी ऐंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (TERI) के महानिदेशक डॉ. अजय माथुर का कहना है कि टिकाऊ विकास के लक्ष्य की ओर अग्रसर भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के हरेक रुपये के उत्पादन के लिए जरूरी उर्जा की खपत में हर साल 2.5 फीसदी की कमी आ रही है, मगर कचरों के परिमाण में हर 1.3 फीसदी का इजाफा हो रहा है। उन्होंने कहा कि देश की राजधानी दिल्ली में हर साल कचरे में दो फीसदी की वृद्धि हो रही है। लिहाजा यह चिंता का विषय है।

उन्होंने कहा कि कचरा पैदा करने में कमी लाना एक बड़ी चुनौती है। नई दिल्ली में आयोजित वर्ल्ड स्स्टेनैबिलिटी डेवलपमेंट समिट (WSDS) से इतर डॉ. माथुर ने कहा ‘GDP का एक रुपया पैदा करने के लिए जितनी उर्जा की खपत होती है उसमें हर साल 2.5 फीसदी की कमी आई है, लेकिन, बदकिस्मती से कचरों में हर साल तकरीबन डेढ़ फीसदी की वृद्धि हो रही है।’ डॉ. माथुर ने बताया कि केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के आंकड़ों के अनुसार, देश में हर साल 6.2 करोड़ टन कचरा पैदा होता है।

उन्होंने कहा कि नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट का आकलन है कि देश में हर साल 1.3 फीसदी की दर से कचरों में वृद्धि हो रही है। उन्होंने कहा, ‘दिल्ली की बात करें तो हर साल कचरे में 2 फीसदी का इजाफा होता है। देश की राजधानी में रोज 8,500 टन यानी सालाना 40 लाख टन कचरा पैदा होता है। इसलिए कचरा पैदा होने में कमी लाना हमारा लक्ष्य है।’

टिकाऊ विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति को लेकर पूछे गए एक सवाल पर उन्होंने कहा, ‘सस्टेनेबिलिटी के व्यापक मायने हैं, लेकिन हम अपने काम के लिए इसकी दो तरह से करते हैं। पहला यह कि आपकी आय में वृद्धि हो या फिर आपका स्वास्थ्य बेहतर हो, जिससे आपको कुछ न कुछ आपको फायदा होना चाहिए। इसके लिए संसाधनों की दक्षता में वृद्धि की माप की जाती है, मसलन, उर्वरक, पानी, ऊर्जा व अन्य संसाधनों के उपयोग में आए मगर, उत्पादन में कमी न आए।’

उन्होंने कहा, ‘मतलब एयरकंडीशन की कुलिंग, खेत से मिलने वाली फसल के उत्पादन में कमी न हो लेकिन उसकी लागत में कमी आ जाए तो इसके फायदे हैं।’ माथुर ने कहा कि दूसरा पहलू कचरे का है, जिसमें कमी लाना जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘हमारा लक्ष्य संसाधन की दक्षता बढ़ाना और कचरे में कमी लाना है। वर्ष 2000 से अगर आंकड़ों पर गौर करें तो लोहा, पानी, उर्जा सारी सामग्री के इस्तेमाल में सालाना 1.5 फीसदी की कमी आई है, लेकिन उर्जा के इस्तेमाल में 2.5 फीसदी यानी पिछले साल जहां 100 इकाई उर्जा की जरूरत होती थी, वहां इस साल 97.5 फीसदी।’

डॉ. माथुर ने कहा कि कृषि में उर्वरकों का इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा होता रहा है, जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति क्षीण होती है। उन्होंने कहा, ‘हम इस दिशा में काम कर रहे हैं कि किसान उर्वरक के रूप में टिकिया (टैबलेट) का इस्तेमाल करे और उसका उपयोग फसल की जड़ में ही की जाए।’ उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण बारिश में बदलाव देखने को मिल रहे हैं जोकि अतिवृष्टि और अनावृष्टि दोनों रूपों में मिल रहे हैं, इसलिए जल संचय एक बड़ी चुनौती है।

डॉ. माथुर ने कहा कि इस जल संकट से निपटने के लिए जलाशयों में जल संचय को बढ़ावा देने की जरूरत है। केरल में पिछले साल आई भीषण बाढ़ के कारणों को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और नए निर्माण से बाधित प्राकृतिक जल-प्रवाह दोनों केरल की बाढ़ की त्रासदी के कारण हैं। उन्होंने पश्चिमी घाट में पेड़ों की कटाई से जल प्रवाह के वेग को रोकने वाला कुछ नहीं रह गया। टेरी के तीन दिवसीय सालाना कार्यक्रम डब्ल्यूएसडीएस सोमवार को आरंभ हुआ, जिसमें जलवायु पर्वितन के अलावा स्वच्छ हवा, स्वच्छ ईंधन, परिवहन, शहरीकरण, कृषि समेत टिकाऊ विकास की अन्य चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया गया।

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