Indian Air Force Day: भारतीय वायुसेना आज अपना 93वां स्थापना दिवस मना रही है। 8 अक्टूबर 1932 को वायुसेना की स्थापना की गई थी। तबसे हर साल 8 अक्तूबर को वायुसेना दिवस मनाया जाता है। इस बार वायुसेना दिवस इसलिए भी खास है कि मई में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान के होश पाख्ता कर दिए थे। थल सेना और वायुसेना की मिली जुली कार्रवाई ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। भारतीय सेना के आकाशीय हमलों की मार से त्रस्त होकर पाकिस्तान ने भारत के डीजीएमओ को फोन किया और युद्ध विराम के लिए गिड़गिड़ाने लगा था। इस सीमित युद्ध ने साबित कर दिया कि अब युद्ध का स्वरूप बदल चुका है। पारंपरिक युद्ध शैली से नहीं बल्कि तकनीकी आधारित युद्ध, पूरे गेम को चेंज कर सकता है। इसमें वायुसेना, एयर डिफेंस, ड्रोन आदि की भूमिका अहम है। ऑपरेशन सिंदूर ने साबित कर दिया कि भविष्य में भारतीय वायुसेना न सिर्फ अपनी मारकर क्षमता में बड़ी ताकत हासिल कर सकती है बल्कि एयर डिफेंस में भी उसका कोई मुकाबला नहीं है।
तीनों सेनाओं का तेजी से आधुनिकीकरण
दरअसल, भारतीय सशस्त्र बलों की तीनों सेनाओं का तेज़ी से आधुनिकीकरण हो रहा है। उभरते खतरों से निपटने के लिए थिएटर कमांड का गठन इस दिशा में एक बेहद महत्वपूर्ण कदम है। थियेटर कमांड से तीनों सेनाओं के बीच बेहतर समन्वय स्थापित होता है। इसका उदाहरण ऑपरेशन सिंदूर में भी देखने को मिला है। भविष्य में कमांड और कंट्रोल की भूमिका में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) की भी अहम भूमिका रहनेवाली है। भारतीय वायुसेना इस दिशा में भी तेजी से काम कर रही है। मानव रहित विमान या ड्रोन दुनिया भर की सभी वायु सेनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने जा रहे हैं। इससे वायुसेना की सटीक और त्वरित मारक क्षमता बढ़ जाएगी।

आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही है वायुसेना
भारतीय वायुसेना भविष्य में और भी ताकतवर होने जा रही है, इसके लिए कई योजनाएं और परियोजनाएं चल रही हैं। आने वाले कुछ वर्षो में माना जा रहा है कि भारत लड़ाकू विमानों के मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाएगा। इस दिशा में चल रहे कार्य की गति, सरकार व वायुसेना से मिल रहे रिस्पॉन्स से इसके काफी सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। इस दिशा में कई स्वदेशी प्लेटफ़ॉर्म विकास के चरण में हैं।
वायुसेना में बढ़ेगा विमानों का बेड़ा
भारतीय वायु सेना (IAF) का लक्ष्य 2047 तक यानी जब भारत आजादी के 100 साल मना रहा होगा तब तक अपने लड़ाकू विमानों की संख्या को 60 स्क्वाड्रन तक बढ़ाना है। यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य, उभरती वैश्विक और क्षेत्रीय चुनौतियों के जवाब में वायु प्रभुत्व (air dominance ) और राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा है।यह योजना एयफोर्स की वर्तमान परिचालन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाती है। इसे प्राप्त करने के लिए, घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग, रणनीतिक अंतर्राष्ट्रीय खरीद और विमानन टेक्नोलॉजी में प्रगति का संयोजन आवश्यक होगा। यह दृष्टिकोण 2047 तक रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के भारत के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप है। वर्तमान में वायुसेना लगभग 31 लड़ाकू स्क्वाड्रन संचालित करती है, जो 42 स्क्वाड्रन की स्वीकृत क्षमता से कम है। चीन और पाकिस्तान से लगती भारत की सीमाओं पर संभावित खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए यह अधिकृत संख्या आवश्यक मानी जाती है।

पुराने विमानों की जगह ले रहे अत्याधुनिक विमान
प्रत्येक स्क्वाड्रन में आमतौर पर 18-20 विमान होते हैं, और वायुसेना के बेड़े में लगभग 550-600 लड़ाकू जेट शामिल हैं। मौजूदा कमी मुख्य रूप से पुराने विमानों, जैसे मिग-21, मिग-23 और मिग-27 का रिटायर होना है। IAF का वर्तमान बेड़े में स्वदेशी और अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों से प्राप्त, दोनों तरह के विमान हैं। इनमें घरेलू स्तर पर निर्मित एलसीए तेजस Mk-1, सुखोई Su-30 MKI, मिग-29, मिराज 2000, राफेल और जगुआर शामिल हैं। Su-30 MKI बेड़े का सबसे बड़ा हिस्सा है, जिसमें 260 से अधिक विमान हैं। राफेल (36) और तेजस Mk-1A (83 का आदेश दिया गया, 97 अतिरिक्त स्वीकृत) जैसे आधुनिक विमानों का जुड़ना आधुनिकीकरण में प्रगति को दर्शाता है।
2047 तक कितने स्क्वाड्रन का लक्ष्य?
2047 तक 60 स्क्वाड्रन तक पहुंचने के भारतीय वायुसेना का लक्ष्य हासिल होने पर लगभग 1,080 से 1,200 लड़ाकू विमानों का बेड़ा होगा, जो इसके वर्तमान आकार का लगभग दोगुना है। यह लक्ष्य मुख्य रूप से बढ़ते क्षेत्रीय खतरों से निपटने की जरूरतों पर आधारित है। 60 स्क्वाड्रन के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए भारतीय वायुसेना को अगले दो दशकों में लगभग 500-600 नए लड़ाकू विमान जोड़ने होंगे। भारतीय वायुसेना की योजना का एक प्रमुख घटक घरेलू स्तर पर निर्मित विमानों पर ध्यान केंद्रित करना है। परिवहन विमानों और हेलिकॉपटर्स की रेंज में भी वायुसेना अहम बदलाव करके अपनी ताकत को और बढ़ाएगी। इसके अलावा पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ लड़ाकू विमान भी आने वाले समय में भारतीय वायुसेना में शामिल होकर उसकी ताकत को बढ़ाएगा।

दरअसल, डोम मिसाइल सिस्टम एक खास किस्म का एयर डिफेंस सिस्टम है। इसमें इजरायल द्वारा विकसित आयरन डोम सिस्टम की पूरी दुनिया में चर्चा होती है। यह सिस्टम बैलिस्टिक मिसाइलों और अन्य हवाई खतरों से बचाव के लिए डिज़ाइन की गई है। यह एक मोबाइल एयर डिफेंस सिस्टम है, जो दुश्मन के रॉकेट, तोपखाने के गोले, मोर्टार और छोटी दूरी की मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर देता है। यह सिस्टम 2011 से सक्रिय है और ईरान-इजरायल तनाव या गाजा संघर्ष में कई बार प्रभावी सिद्ध हुआ है। वहीं भारत के एयर डिफेंस सिस्टम की बात करें तो आकाशतीर सिस्टम को देसी आयरन डोम कहा जा सकता है। क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इसकी भूमिका अहम रही है। इसने दुश्मन के हमलों को निष्प्रभावी कर दिया।

भारत के कुछ प्रमुख एयर डिफेंस सिस्टम
- एस-400 ट्रायम्फ: यह रूस से खरीदी गई अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम है। यह 400 किलोमीटर की दूरी तक के टरगेट को भेदने की क्षमता से लैस है। इसकी मदद से भारत अपनी वायु रक्षा क्षमता को मजबूत कर रहा है।
- अकाश मिसाइल सिस्टम: यह भारत में विकसित एक शॉर्ट-रेंज एयर डिफेंस सिस्टम है, जो 30 किलोमीटर की दूरी तक के लक्ष्यों को भेद सकती है। यह सिस्टम भारत की वायु रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- बराक-8 मिसाइल सिस्टम: यह इज़राइल के साथ संयुक्त रूप से विकसित एक मध्यम-श्रेणी की एयर डिफेंस सिस्टम है, जो 70 किलोमीटर की दूरी तक के लक्ष्यों को भेद सकती है।
- प्रोजेक्ट कुशा: यह भारत का एक उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम है, जो लंबी दूरी के लक्ष्यों को भेदने में सक्षम होगा। इसकी मारक क्षमता 350 किलोमीटर तक है।
- मिशन सुदर्शन चक्र: यह भारत का एक महत्वाकांक्षी एयर डिफेंस प्रोजेक्ट है, जिसका उद्देश्य देश की वायु रक्षा क्षमता को और मजबूत करना है। यह सिस्टम इज़राइल के आयरन डोम की तरह काम करेगा।
- अक्षतीर एयर डिफेंस सिस्टम: यह एक उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम है, जो स्वदेशी तकनीक से विकसित किया गया है। यह सिस्टम एयर डिफेंस के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- रक्षा कवच: यह एक बहुस्तरीय सुरक्षा प्रणाली है, जो सैनिकों और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए डिज़ाइन की गई है। इसमें बैलिस्टिक, ब्लास्ट और इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा शामिल है।