Tuesday, May 14, 2024
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संथाल आदिवासी समाज में है अनूठी परंपरा, 'लड़की पर रंग डाला तो शादी करो या जुर्माना भरो'

यदि किसी भी युवक ने किसी कुंवारी लड़की पर रंग डाला तो समाज की पंचायत लड़की से उसकी शादी करवा देती है। अगर लड़की को शादी का प्रस्ताव मंजूर नहीं हुआ तो समाज रंग डालने के जुर्म में युवक की सारी संपत्ति लड़की के नाम करने की सजा सुना सकता है।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: March 16, 2022 19:02 IST
holi colours- India TV Hindi
Image Source : PTI A vendor sells colours

रांची: हिंदुओं की परंपरा के अनुसार होली इस बार 18-19 मार्च को मनेगी, लेकिन लेकिन झारखंड के संथाल आदिवासी समाज में पानी और फूलों की होली लगभग एक पखवाड़ा पहले से शुरू हो गई है। संथाली समाज इसे बाहा पर्व के रूप में मनाता है। यहां की परंपराओं में रंग डालने की इजाजत नहीं है। इस समाज में रंग-गुलाल लगाने के खास मायने हैं। अगर किसी युवक ने समाज में किसी कुंआरी लड़की पर रंग डाल दिया तो, उसे या तो लड़की से शादी करनी पड़ती है या भारी जुर्माना भरना पड़ता है।

बाहा पर्व का सिलसिला होली के पहले ही शुरू हो जाता है। अलग-अलग गांव में अलग-अलग तिथियों पर बाहा पर प्रकृति पूजा का विशेष आयोजन होता है, बाहा का मतलब है फूलों का पर्व। इस दिन संथाल आदिवासी समुदाय के लोग तीर धनुष की पूजा करते हैं। ढोल-नगाड़ों की थाप पर जमकर थिरकते हैं और एक-दूसरे पर पानी डालते हैं। बाहा के दिन पानी डालने को लेकर भी नियम है। जिस रिश्ते में मजाक चलता है, पानी की होली उसी के साथ खेली जा सकती है।

यदि किसी भी युवक ने किसी कुंवारी लड़की पर रंग डाला तो समाज की पंचायत लड़की से उसकी शादी करवा देती है। अगर लड़की को शादी का प्रस्ताव मंजूर नहीं हुआ तो समाज रंग डालने के जुर्म में युवक की सारी संपत्ति लड़की के नाम करने की सजा सुना सकता है। यह नियम झारखंड के पश्चिम सिंहभूम से लेकर पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी तक के इलाके में प्रचलित है। इसी डर से कोई संथाल युवक किसी युवती के साथ रंग नहीं खेलता। परंपरा के मुताबिक पुरुष केवल पुरुष के साथ ही होली खेल सकता है।

पूर्वी सिंहभूम जिले में संथालों के बाहा पर्व की परंपरा के बारे में देशप्राणिक मधु सोरेन बताते हैं कि हमारे समाज में प्रकृति की पूजा का रिवाज है। बाहा पर्व में साल के फूल और पत्ते समाज के लोग कान में लगाते हैं। उन्होंने बताया कि इसका अर्थ है कि जिस तरह पत्ते का रंग नहीं बदलता, हमारा समाज भी अपनी परंपरा को अक्षुण्ण रखेगा। बाहा पर्व पर पूजा कराने वाले को नायकी बाबा के रूप में जाना जाता है। पूजा के बाद वह सुखआ, महुआ और साल के फूल बांटते हैं। इस पूजा के साथ संथाल समाज में शादी विवाह का सिलसिला शुरू होता है। संथाल समाज में ही कुछ जगहों पर रंग खेलने के बाद वन्यजीवों के शिकार की परंपरा है। शिकार में जो वन्यजीव मारा जाता है उसे पका कर सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है।

(इनपुट- एजेंसी)

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