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FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर आ सकता है मॉरिशस, जानिये भारत में निवेश प्रवाह पर क्या होगा असर

2020-21 में भारत में मॉरिशस के जरिये आया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कुल निवेश का 9 प्रतिशत रहा है। हालांकि साल 2018-19 में ये हिस्सा 32 प्रतिशत था। बीते 2 साल से इसमें गिरावट है।

India TV Paisa Desk Edited by: India TV Paisa Desk
Updated on: October 19, 2021 16:18 IST
मॉरिशस की FATF की ग्रे...- India TV Paisa
Photo:PTI

मॉरिशस की FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर आने की उम्मीद

नई दिल्ली। भारत में विदेशी निवेश के एक प्रमुख स्रोत देश मॉरिशस इस महीने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) से राहत पा सकता है। दरअसल एफएटीएफ मॉरिशस की रीरेटिंग पर विचार कर रहा है, और सूत्रों की मानें तो ग्रे लिस्ट में रहने के दौरान मॉरिशस के द्वारा कानूनी , रेग्युलेटरी, ऑपरेशंस से जुड़े बदलावों को सफलतापूर्वक लागू करने के बाद अब एफएटीएफ मॉरिशस को ग्रे लिस्ट से निकाल सकता है। अगर ऐसा होता है तो मॉरिशस एक बार फिर दुनिया भर के निवेशकों के लिये निवेश का बड़ा माध्यम बन सकता है।  

क्यों ग्रे लिस्ट में आया मॉरिशस 

मॉरिशस को एफएटीएफ ने जनवरी 2020 में ग्रे लिस्ट (Jurisdictions under Increased Monitoring) में शामिल किया था।  टास्क फोर्स ने पाया था कि एंटी मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकियों को धन मुहैया कराने के खिलाफ लड़ाई में मॉरिशस के न्याय अधिकार क्षेत्र  में कुछ गंभीर कमियां थी, जिसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। ये कमियां खास तौर पर डेजिगनेटेड नॉन फाइनेंशियल बिजनेस एंड प्रोफेशन (DNFBPs) और नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन (एनएफओ) सेक्टर में थीं। इसी को देखते हुए मॉरिशस को एक एक्शन प्लान दिया गया था जिसमें रिस्क बेस्ड सुपरविजन , कंपनियों की मालिकाना हक की लगातार जानकारी साझा करना  और जांच एजेंसियों को ऐसे अपराधों की पहचान के लिये ट्रेनिंग देना आदि शामिल थे।  सूत्रों के मुताबिक बीते 20 महीनों में मॉरिशस के द्वारा उठाये गये कदमों से उम्मीद बनी है कि मॉरिशस ग्रे लिस्ट से बाहर आ सकेगा। लिस्ट से बाहर आने पर रिजर्व बैंक सहित दुनिया भर के प्रमुख वित्तीय संस्थान मॉरिशस के रास्ते निवेश पर प्रतिबंधों में नरमी ला सकते हैं। 

क्या होगा भारत पर असर  
एस्कॉर्टस सिक्योरिटी के रिसर्च हेड आसिफ इकबाल के मुताबिक ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने या न निकलने के फैसले का ज्यादा असर मॉरिशस की अपनी सेहत पर ही दिखेगा। जहां तक भारतीय बाजारों में निवेश का सवाह है तो इसमें निवेश का प्रवाह लगातार बना हुआ है। उनके मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था के आकर्षक होने की वजह से विदेशी निवेशक लगातार निवेश बढ़ा रहे हैं, और अगर मॉरिशस के ग्रे लिस्ट में जाने पर असर भी पड़ा होगा तो पूरी संभावना है कि निवेशकों ने इसके विकल्प तलाश लिये होंगे। इसके अलावा आसिफ संकेत देते हैं कि मॉरिशस के रास्ते आने वाले निवेश का बड़ा हिस्सा इक्विटी मार्केट में होता है और बीते एक साल के दौरान बाजार में बढ़ रहे विदेशी निवेश और कंपनियों के सौदौं में बढ़त से पता चलता है कि विदेशी निवेशक की घरेलू बाजारों तक पहुंच पर कोई असर नहीं पड़ा है। 

क्या रहा बीते सालों में विदेशी निवेश के संकेत
आसिफ की बात को आंकड़े भी समर्थन देते हैं। भारत सरकार के द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में अमेरिका ने मॉरीशस को भारत में निवेश करने वाले विदेशी निवेशकों की लिस्ट में पीछे छोड़कर दूसरा स्थान हासिल कर लिया। आंकड़ों के मुताबिक भारत में इस अवधि के दौरान आये विदेशी निवेश में सबसे बड़ा हिस्सा सिंगापुर का रहा जहां से कुल 17.42 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत आया। वहीं अमेरिका से 13.82 अरब डॉलर और मॉरिशस से 5.64 अरब डॉलर का एफडीआई भारत आया। मॉरिशस के रास्ते भारत आया एफडीआई कुल रकम का 9 प्रतिशत रहा है। हालांकि एक साल पहले यानि 2019-20 में मॉरिशस से 8.24 अरब डॉलर का निवेश आया था। वहीं साल 2018-19 में मॉरिशस भारत में एफडीआई प्रवाह का सबसे बड़ा सोर्स था। और इसका हिस्सा 32 प्रतिशत था। इसी अवधि में अमेरिका से निवेश 2.55 अरब डॉलर से बढ़कर 13.82 अरब डॉलर हो गया है। जानिये क्या रहा बीते 3 साल में भारत में FDI का प्रवाह अ

 देश  2020-21 2019-20 2018-19
सिंगापुर 17.42 14.67 8.29
मॉरिशस 5.64  8.24 13.44
अमेरिका 13.82 4.22 2.55

(अरब डॉलर)

क्या है एफएटीएफ और उसकी ग्रे लिस्ट
एफएटीएफ यानि  फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स जो दुनिया भर में मनी लॉन्ड्रिंग और टैरर फंडिंग के मामलों पर नजर रखती है और ऐसे देशों की पहचान करती है जो या तो इन आर्थिक अपराधों में जुड़े हैं या तो वो अपने देश में ऐसे कार्यों में लगे हुए तत्वों को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे देश की पहचान होने पर टास्क फोर्स उन्हें दो लिस्ट में शामिल करती है। पहली लिस्ट ग्रे लिस्ट होती है जिसमें सेफ हैवेन जैसे देश शामिल किये जाते हैं जो या जहां से टैरर फाइनेंसिंग या मनी लॉन्ड्रिंग को मदद मिल रही हो। ऐसे देशों को चेतावनी दी जाती है और एक खास समय में खास एक्शन प्लान लागू करने को कहा जाता है। वहीं दूसरी लिस्ट ब्लैक लिस्ट होती है, इसमें वो देश शामिल किये जाते हैं जो या तो आतंकी देश घोषित हैं, या जो ग्रे लिस्ट में रहने के दौरान एक्शन प्लान को लागू करने में असफल रहे हैं। 

क्या होता है ग्रे या ब्लैक लिस्ट में आने का असर
ऐसे देशों पर आईएमएफ, वर्ल्डबैंक या एडीबी जैसे अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान के द्वारा आर्थिक प्रतिबंध लगाये जाते हैं। वहीं इन संस्थानों से कर्ज लेने के लिये कई कठोर शर्तों का पालन करना पड़ता है। वहीं अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार पर भी प्रतिबंध लगाये जाते हैं। दुनिया भर के देश भी इन देशों से आर्थिक संबंध कड़े कर लेते हैं।

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