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बंदरों के आतंक की वजह से मजबूर हुए जम्मू-कश्मीर के किसान, चावल-गेहूं की जगह अब इसकी कर रहे खेती

जम्मू और कश्मीर के चिनाब क्षेत्र में 3,000 से अधिक किसान पहले से ही जड़ी-बूटियों और सुगंधित पौधों की खेती कर रहे हैं, जिनमें से 2,500 अकेले भद्रवाह में स्थित हैं।

Alok Kumar Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published on: May 27, 2023 15:20 IST
जम्मू-कश्मीर के किसान- India TV Paisa
Photo:PTI जम्मू-कश्मीर के किसान

जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के किसान, बंदरों से अपने खेत को बचाने के लिए चावल, मक्का और गेहूं जैसी फसलों की बजाय औषधीय पौधों की खेती करने को मजबूर हो गए हैं। वनों की कमी ने इन बंदरों को भोजन की तलाश में खेतों पर धावा बोलने के लिए मजबूर किया है, जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है। इसके निपटने के लिये, आयुष मंत्रालय के कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को चावल, गेहूं और मक्का जैसी पारंपरिक फसलों के बजाय जड़ी-बूटियां उगाने की सलाह दी है, क्योंकि इससे न केवल उनकी फसलों की सुरक्षा होगी बल्कि अधिक मुनाफा भी होगा। 

इन फसलों की कर रहे खेती

डोडा में वन क्षेत्रों के पास स्थित गांवों के कई किसानों ने इस समाधान को अपनाया है और अब सुगंधित पौधों जैसे लैवेंडर और टैगेटस मिनुटा के साथ-साथ ट्रिलियम (नाग-चत्री), सोसुरिया कोस्टस (कुथ), इनुला (मन्नू), सिंहपर्णी (हांध), जंगली लहसुन और बलसम सेब (बान-काकरी) जैसे औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि इन पौधों का स्वाद कड़वा होता है और इनमें तेज तीखी गंध होती है, जिससे ये बंदरों के लिए अनुपयुक्त हो जाते हैं। एक स्थानीय उद्यमी तौकीर बागबान ने कहा कि औषधीय और व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद बनाने वाली घरेलू कंपनियों की जड़ी-बूटियों की बढ़ती मांग के कारण किसान अब बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं। बागबान ने कहा, ‘‘आयुष मंत्रालय के अधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों में मिट्टी, पानी और हवा की स्थिति के आधार पर उपयुक्त फसलों की खेती के लिए किसानों को शिक्षित कर रहे हैं। वे खेती के इस बदलाव को अंजाम देने में मदद करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और रोपण सामग्री भी प्रदान करते हैं।’’

दरों को दूर रखना मुश्किल

अधिकारी ने कहा कि औषधीय पौधों की खेती के इस बदलाव ने किसानों के खेतों को पुनर्जीवित कर दिया है और समुदाय के बीच आशा की नयी किरण पैदा की है। जम्मू और कश्मीर के चिनाब क्षेत्र में 3,000 से अधिक किसान पहले से ही जड़ी-बूटियों और सुगंधित पौधों की खेती कर रहे हैं, जिनमें से 2,500 अकेले भद्रवाह में स्थित हैं। सरतिंगल गांव के किसान नवीद बट ने कहा, ‘‘इससे पहले, हमने बंदरों को डराने के लिए कुत्तों का उपयोग किया और यहां तक कि एयर गन का भी इस्तेमाल किया था।’’ बट ने कहा, ‘‘लेकिन बंदरों को दूर रखना मुश्किल था और हम खेती छोड़ने वाले थे। लेकिन पिछले दो वर्षों से पारंपरिक मक्का से औषधीय पौधों की खेती की ओर जाने के बाद इन बंदरों को दूर रखा है। इसके अलावा, हम अच्छे लाभ की उम्मीद कर रहे हैं।’’ केंद्र सरकार के वर्ष 1978 में जैव चिकित्सा अनुसंधान के लिए उनके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद से बंदरों की आबादी में वृद्धि हुई है।

फसल की चौबीसों घंटे रखवाली करना एक चुनौती 

कई लोगों के बंदरों की पूजा और भोजन देने से समस्या और बढ़ जाती है। हालांकि, इन बंदरों का प्रभाव जम्मू- कश्मीर में चिनाब क्षेत्र जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में वन क्षेत्र के घटने के कारण सबसे अधिक महसूस किया जाता है। काही गांव की एक किसान शबनम बेगम (52 वर्ष) ने कहा, ‘‘फसल की चौबीसों घंटे रखवाली करना एक चुनौती है, खासकर जब हमारे खेत घर के करीब नहीं होते हैं।’’ औषधीय पौधों की ओर रुख करके हमें एक नई उम्मीद मिली है। आयुष ने हमें एक नई उम्मीद दी है।’’ 

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