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इधर से कूड़ा डाला उधर से बिजली निकली, कचरे का सही इस्तेमाल इंडिया को बना देगा पावर हब

High Electricity: भारत अभी भी बिजली पैदा करने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल कोयले का करता है। अगर कोयले से निर्भरता कम हो जाती है तो इससे प्रदूषण को कम करने में भी मदद मिलेगी।

Edited By: Vikash Tiwary @ivikashtiwary
Published : Aug 17, 2023 20:23 IST, Updated : Aug 17, 2023 20:23 IST
Waste Material- India TV Paisa
Photo:FILE Waste Material

Waste Material: कचरा का सही इस्तेमाल देश की संपूर्ण बिजली की समस्या को काफी हद तक ठीक कर सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अभी बिजली के लिए कोयले पर निर्भर है। अगर कचरे से बिजली पैदा करने में हमें पूर्ण रूप से कामयाबी मिल जाती है, यानि की पर्याप्त मात्रा में उत्पादन शुरू हो जाता है तो इससे हमारी निर्भरता कोयले से कम या खत्म हो सकती है। देशभर में कचरे का उपयोग कर सालाना 65,000 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है। यह 2030 तक 1.65 लाख मेगावाट और 2050 तक 4.36 लाख मेगावाट तक पहुंच सकता है। विशेषज्ञों ने यह बात कही है। हाल में आयोजित वेस्ट मैनेजमेंट से जुड़े विशेषज्ञों की दो दिन की कार्यशाला में श्वेत पत्र तैयार किया गया। इसमें कहा गया है कि देश में हर साल 6.5 करोड़ टन कचरा पैदा होता है और इसके 2030 तक बढ़कर 16.5 करोड़ टन तथा 2050 तक 43.6 करोड़ टन होने का अनुमान है। 

क्या कहते हैं आंकड़ें?

दस्तावेज के अनुसार, नगरपालिका क्षेत्र में लगभग 75-80 प्रतिशत कचरे को एकत्र किया जाता है और इसमें से केवल 22 से 28 प्रतिशत को रिसाइकल किया जाता है और दूसरे कार्यों में उपयोग में लाया जाता है। कार्यशाला में इंटरनेशनल क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबिलिटी एक्शन फाउंडेशन, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, आईएसएम (धनबाद), टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) के विशेषज्ञों और उद्योग के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस दौरान विशेषज्ञों ने कूड़ा डालने के स्थान पर बढ़ते कचरे के निपटान के लिये तौर-तरीकों पर चर्चा की। श्वेत पत्र में कहा गया है कि भारत में कूड़ा डालने के लिये 3,159 स्थान हैं। ये देश के लगभग 20 प्रतिशत मीथेन उत्सर्जन के लिये जिम्मेदार हैं। दूसरी तरफ, यह पुनर्चक्रण, अपशिष्ट-से-ऊर्जा रूपांतरण और हरित नौकरियों के सृजन का अवसर भी प्रदान करता है। 

इसमें कहा गया है कि एक किलोवाट बिजली पैदा करने के लिये एक टन कचरा पर्याप्त है। हालांकि, वास्तविक उत्पादन कचरे की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के विशेष कार्याधिकारी राकेश कुमार ने विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न कचरे को अलग करने और मीथेन प्रबंधन के लिये कृत्रिम मेधा के उपयोग की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिक गतिविधियों से हमारे यहां ठोस अपशिष्ट का उत्पादन अधिक है। लैंडफिल पर नगरपालिका और औद्योगिक कचरे का ढेर तेजी से बढ़ने की आशंका है। कचरा प्रबंधन के जरिये हम पर्यावरण को बेहतर बना सकते हैं। 

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