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Mahakumbh 2025: अघोरी बनने के लिए देनी होती हैं ये 3 कठिन परीक्षाएं, मृत्यु और जीवन दोनों लगते हैं दांव पर

Mahakumbh 2025: अघोरी साधु बनने से पहले कई कठिन परीक्षाएं देनी होती हैं। आज हम आपको इसी के बारे में अपने इस लेख में जानकारी देंगे।

Written By: Naveen Khantwal
Published : Jan 17, 2025 9:05 IST, Updated : Jan 17, 2025 10:17 IST
Mahakumbh 2025
Image Source : INDIA TV अघोरी साधु

Mahakumbh 2025: अघोरी साधु शिव, शव और श्मशान की साधना करते हैं। नागा साधुओं की तरह ये भी महाकुंभ के आकर्षण का केंद्र हैं, लेकिन अघोरियों के दल बहुत बड़े नहीं होते और ज्यादातर अघोरी अकेले ही जीवन जीते हैं। श्मशान में साधना करने वाले ये साधु भगवान शिव को अघोर पंथ का प्रणेता (रचयिता) मानते हैं। अघोरी साधु मुख्य रूप से तंत्र साधना करते हैं और इससे कई तरह की सिद्धियां भी इन्हें प्राप्त होती हैं। अघोर का शाब्दिक अर्थ होता है जो घोर नहीं है यानि सरल और सौम्य है। माना जाता है कि, अघोरी साधु भले ही दिखने में बहुत विचित्र लगें लेकिन दिल से ये बच्चे की तरह होते हैं। हालांकि इनकी साधना और दीक्षा बहुत कठिन होती है। ऐसे में आज हम आपको एक अघोरी बनने की शुरुआती प्रक्रिया के बारे में जानकारी देंगे।

अघोरपंथ 

अघोरी साधुओं को लेकर कई तरह की बातें समाज में चलती हैं। जिनमें बहुत सी बातें नकारात्मक भी होती हैं। हालांकि, अघोर पंथ संदेश देता है कि हर एक के प्रति समान भाव रखना चाहिए। अघोरी साधु भले ही तांत्रिक साधना करते हों, लेकिन इसका उद्देश्य भी लोक कल्याण ही होती है। सच्चा अघोरी उसे ही कहा जाता है जो अपने-पराए का भाव भूलकर सबको एक समान देखे। इनकी कठोर साधना और नियम इन्हें कठोर नहीं निर्मल बनाने के लिए होते हैं। 

अघोरी बनने की ये है प्रारंभिक प्रक्रिया

पहली परीक्षा

किसी भी व्यक्ति को अघोरी साधु बनने के लिए सबसे पहले एक योग्य गुरु की तलाश करनी होती है। गुरु के मिल जाने पर गुरु के प्रति पूरी तरह से समर्पित होना पड़ता है। यानि गुरु की बताई हर बात शिष्य के लिए पत्थर की लकीर होती है। इसके बाद गुरु शिष्य को एक बीज मंत्र देता है, जिसकी साधना शिष्य के लिए परम आवश्यक होती है। गुरु द्वारा बीज मंत्र देने की इस प्रक्रिया को अघोरपंथ में हिरित दीक्षा कहा जाता है। हिरित दीक्षा की परीक्षा को पार करने के बाद गुरु शिष्य को अगले चरण में ले जाते हैं। 

दूसरी परीक्षा
हिरित दीक्षा के बाद गुरु शिष्य को शिरित दीक्षा देते हैं। इस दीक्षा में गुरु शिष्य के हाथ, गले और कमर पर एक काला धागा बांधते हैं और शिष्य को जल का आचमन दिलाकर कुछ जरूरी नियमों की जानकारी देते हैं, साथ ही शिष्य से वचन भी लेते हैं। इन नियमों का पालन शिष्य को करना होता है और अगर इनमें शिष्य सफल न हो पाया तो दीक्षा आगे नहीं बढ़ती। अगर शिष्य इन नियमों का पालन कर लेता है तो आगे की प्रक्रिया जारी रहती है। 

तीसरी परीक्षा
हिरित दीक्षा के बाद अघोरी की असली परीक्षा शुरू होती है। अब शिष्य को रंभत दीक्षा गुरु के द्वारा दी जाती है। इस दीक्षा के शुरू होने से पहले शिष्य को अपने जीवन और मृत्यु का पूरा अधिकार गुरु को देना पड़ता है। अगर रंभत दीक्षा देते समय गुरु शिष्य से प्राण भी मांग ले तो शिष्य को देने होते हैं। हालांकि रंभत दीक्षा देने से पहले भी गुरु शिष्य की कई कठोर परीक्षाएं लेता है। इन परीक्षाओं में सफल होने के बाद ही रंभत दीक्षा गुरु द्वारा दी जाती है। गुरु ज्यादातर रंभत दीक्षा उसी शिष्य को देते हैं जिसे वो अपना योग्य अधिकारी मानते हैं। रंभत दीक्षा में सफल हुए शिष्य को गुरु अघोरपंथ के गहरे रहस्यों के बारे में जानकारी देते हैं। साथ ही गुरु के द्वारा कई तरह की सिद्धियां भी शिष्य को दी जाती हैं। 

अघोरियों की साधना 

अघोरी श्मसान में साधना करते हैं। भगवान शिव की साधना में ये अक्सर लीन रहते हैं। इसके साथ ही तांत्रिक क्रियाओं को सिद्ध करने के लिए ये शव के ऊपर बैठकर तो कभी खड़े होकर भी साधना करते हैं। शव साधना के दौरान ये शव को भोग भी लगाते हैं। श्मशान की साधना करना भी अघोरियों के लिए अति आवश्यक होता है। अघोरियों के प्रमुख साधना स्थान- कामाख्या पीठ के श्मशान, त्र्यम्बकेश्वर के श्मशान और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्मशान हैं। तंत्र साधनाएं पूर्ण करके इन्हें कई तरह की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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