Friday, April 26, 2024
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ओलंपिक से पहले भारतीय हॉकी को लेकर बोले धनराज पिल्लई- नई टीमों के उभरने से प्रतिस्पर्धा हुई कड़ी

महिला टीम टोक्यो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने में सफल रही है। महिला टीम ने तो सिर्फ अभी तक दो बार ओलम्पिक खेला है। पहली बार 1980 में और दूसरी बार 2016 रियो में।

IANS Reported by: IANS
Updated on: January 16, 2020 12:26 IST
ओलंपिक से पहले भारतीय...- India TV Hindi
Image Source : @THEHOCKEYINDIA/TWITTER ओलंपिक से पहले भारतीय हॉकी को लेकर बोले धनराज पिल्लई- नई टीमों के उभरने से प्रतिस्पर्धा हुई कड़ी

नई दिल्ली। एक दौर था जब भारतीय हॉकी का ओलम्पिक खेलों में दबदबा होता था। टीम से हर ओलम्पिक में पदक की उम्मीद होती थी और टीम निराश भी नहीं करती थी। लेकिन भारतीय पुरुष हॉकी टीम का यह स्वर्ण काल अब गुजरे जमाने की बात हो गया है क्योंकि टीम ने 1980 के बाद से खेलों के महाकुम्भ में कभी भी पोडियम हासिल नहीं किया।

भारतीय पुरुष हॉकी टीम को आखिरी स्वर्ण पदक 1980 में मास्को ओलम्पिक खेलों में मिला था। तब से जो पदक का सूखा छाया है वो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। 39 साल से भारत बिना ओलम्पिक पदक के है। इन वर्षो में भारतीय हॉकी को बुरे दौर से भी गुजरना पड़ा। इसी बुरे दौर में शामिल है बीजिंग ओलम्पिक-2008 जब भारत ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाया था।

1980 के बाद से देखा जाए तो भारतीय हॉकी का ग्राफ ओलम्पिक में गिरता ही रहा है। 1980 के बाद से एक भी टीम शीर्ष-4 में रहते हुए खेलों का अंत नहीं कर सकी। 1984 में टीम पांचवें स्थान पर रही थी और यहां से भी टीम अपने स्थान से नीचे ही गई है।

लंदन ओलम्पिक-2012 में तो आलम यह था कि टीम 12वें स्थान पर रही थी। रियो में 2018 में खेले गए ओलम्पिक में भारत की फिजा काफी बनी थी लेकिन टीम आठवें स्थान पर रही थी।

हॉकी का स्वर्णकाल खत्म हुए जमाना हो गया है और टीम अभी भी उस दौर को वापस नहीं ला पाई है। इसका कारण जानने के लिए जब आईएएनएस ने भारतीय टीम के पूर्व कप्तान धनराज पिल्लई से बात की तो उन्होंने कहा कि बीते वर्षो में कई नई टीमें उभर के आई हैं और प्रतिस्पर्धा कड़ी हो गई है।

धनराज ने कहा, "हम हर ओलम्पिक में उम्मीद लेकर चलते हैं और हर बार हमारा प्रदर्शन अच्छा रहता है, लेकिन देखना यह भी है कि सामने वाली टीम कैसी है। हम सबसे पहले 1928 में पदक जीते थे। उस जमाने में हॉकी बहुत कम होती थी। उस जमाने में हॉकी में कॉम्पटीटर बहुत कम थे। आज की तारीख में आप देखोगे तो हर देश हॉकी खेल रहा है। ऐसा नहीं है कि ओलम्पिक में जाकर हमारा प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। हमने अच्छा किया है लेकिन हम गलती कर जाते हैं।"

उन्होंने कहा, "मैं यही नहीं कह सकता कि 1980 के बाद डाउनफॉल आया है। मैं यह कह सकता हूं कि इस दौरान बहुत सारे देश उभर के निकले हैं। हमारी हॉकी जैसी थी वैसी ही है। बीते 20 साल में दोखोगे तो कॉम्पटीशन बढ़ गया है।"

भारत ने टोक्यो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई कर लिया है लेकिन उसके सामने एक बार फिर दशकों पुरानी चुनौती है। भारत को पदक दिला उसकी विरासत को दोबारा जिंदा करने की। इस कश्मकश में कोच ग्राहम रीड की टीम कितनी सफल हो पाती है यह जो वक्त ही बताएगा लेकिन टीम के कप्तान मनप्रीत 1980 के बाद से टीम के अब तक के सबसे अच्छे प्रदर्शन को लेकर आश्वस्त दिखते हैं।

मनप्रीत ने कुछ दिन पहले एक बयान में कहा था, "टीम को बहुत विश्वास है कि हम टोक्यो ओलम्पिक में शीर्ष-4 में प्रवेश कर सकते हैं और एक बार जब हम सेमीफाइनल में पहुंच गए तो यह किसी का भी मैच हो सकता है।"

मनप्रीत की बात को भारतीय टीम के पूर्व खिलाड़ी जफर इकबाल से भी बल मिलता है। इकबाल ने आईएएनएस से कहा, "इस बार टीम अच्छी है, उन्हें अच्छी ट्रेनिंग दी जा रही है। इसलिए मुझे लगता है कि टीम अच्छा करेगी। टीम के पास अच्छे खिलाड़ी भी हैं जिनके पास अनुभव है। इस समय हमारी रैंकिंग भी अच्छी है इसलिए मुझे लगता है कि इस बार टीम अच्छा करेगी, इस बात की उम्मीद की जा सकती है।"

वहीं अगर महिला टीम की बात करें तो वह भी टोक्यो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने में सफल रही है। महिला टीम ने तो सिर्फ अभी तक दो बार ओलम्पिक खेला है। पहली बार 1980 में और दूसरी बार 2016 में रियो में। मास्को में टीम तीसरे स्थान पर रही थी तो वहीं रियो में टीम को 12वां स्थान मिला था। यह तीसरा मौका होगा जब महिला टीम ओलम्पिक में कदम रखेगी। अब देखना होगा कि रानी रामपाल की कप्तानी वाली टीम देश को महिला हॉकी में पहला पदक दिला पाती है या नहीं।

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