Friday, April 26, 2024
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उग्रवादियों को बंदूकें सप्लाई करने वाली लड़की ने कॉमनवेल्थ में कैसे जीता पदक, होश उड़ा देगी ये कहानी

भारत की एथलीट ने इस बात का खुलासा किया है कि वह खेलों के कारण उग्रवादी बनने से बच गईं।

Rishikesh Singh Written By: Rishikesh Singh
Published on: February 07, 2023 23:56 IST
Commonwealth Games- India TV Hindi
Image Source : FILE Representative Image

पान सिंह तोमर एक ऐसा नाम जिसे भारत का हर नागरिक जानता होगा। पान सिंह तोमर की कहानी कुछ ऐसी है जो हर किसी को हिला कर रख दे। आर्मी में सेवा देने वाले पान सिंह तोमर ने खेल जगत में खुब नाम कमाया। उन्होंने टोक्यो, जापान में 1958 एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। खेलों में अच्छा करने वाले पान सिंह के जीवन ने अचानक से एक मोड़ लिया और वह डाकू बन गए। ऐसी ही कहानी भारत की स्टार मुक्केबाज लैशराम सरिता देवी की रही है। उन्होंने भारत के लिए साल 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीता था। हालांकि वह इसी खेल के कारण नक्सली बनने से बच गई। 

क्या है पूरी कहानी

भारत में किसी खेल में अच्छा कर पाना कोई आसान काम नहीं है। नाजाने इस देश में कितने खिलाड़ी छोटे कस्बे और गांव से बाहर निकलकर भारत का नाम रौशन कर चुके हैं। उनमें से एक नाम सरिता देवी का है। सरिता देवी ने मंगलवार को एक इवेंट के दौरान कहा कि एक बार वह नक्सली बनने की तरफ बढ़ रही थी लेकिन वह खेलों के कारण बच गई। उन्होंने कहा, ‘‘मैं उग्रवादियों से प्रभावित होकर उग्रवाद की तरफ बढ़ रही थी। मैं उनके लिए हथियार मुहैया कराती थी, लेकिन खेलों ने मुझे बदल दिया और मुझे अपने देश का गौरव बढ़ाने के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया।’’ सरिता ने कहा,‘‘मैं एक छोटे से गांव में रहती थी और जब मैं 12-13 साल की थी तो हर दिन उग्रवादियों को देखती थी। घर पर रोजाना लगभग 50 उग्रवादी आते थे। मैं उनकी बंदूकें देखती थी और उनके जैसा बनना चाहती थी। मैं उग्रवाद की तरफ बढ़ रही थी।’’

सरिता देवी ने आगे कहा कि, ‘‘मैं उनके जैसा बनने का सपना देखती थी और मुझे बंदूकों से खेलना बहुत पसंद था। मुझे नहीं पता था कि खेलों से आप खुद को और देश को प्रसिद्धि दिला सकते हैं।’’ एक दिन उनके भाई ने उनकी पिटाई की जिसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई। सरिता ने कहा, ‘‘मैं खेलों से जुड़ी और फिर मैंने 2001 में पहली बार बैंकॉक में एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और रजत पदक जीता। चीन की मुक्केबाज ने स्वर्ण पदक जीता था। उनका राष्ट्रगान बजाया गया और सभी ने उसे सम्मान दिया। यही वह क्षण था जब मैं भावुक हो गई थी।’’ उन्होंने कहा,‘‘इसके बाद मैंने कड़ी मेहनत की और 2001 से 2020 तक कई प्रतियोगिताओं में भाग लेकर ढेरों पदक जीते। खेलों ने मुझे बदल दिया। मैं अपने देश के युवाओं में इसी तरह का बदलाव देखना चाहती हूं।’’

पान सिंह ने थामा बंदूक

पान सिंह तोमर से उनकी कहानी थोड़ी बहुत मिलती है। लेकिन तोमर में बंदूक का हाथ थामा, वहीं सरिता देवी ने खेल का। पान सिंह को पहले स्टीपलचेज में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन सेना में आने के बाद इसमें उनकी दिलचस्पी बढ़ गई। वह सात साल तक स्टीपलचेजिंग के राष्ट्रीय चैंपियन बने। 3000 मीटर स्टीपलचेज इवेंट में 9 मिनट और 2 सेकंड का उनका राष्ट्रीय रिकॉर्ड 10 साल तक अटूट रहा। सेना ने उन्हें 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़ने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि खेल में वह काफी ज्यादा अच्छा कर रहे थे। लेकिन खेलों के बाद उन्होंने डाकू बनने का फैसला कर लिया।

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