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Olympics History: ओलंपिक में जब पदक जीतते जीतते चूक गए भारतीय एथलीट, आखिर में निराशा लगी हाथ

Olympics: साल 1956 से लेकर 2020 तक ऐसे कितने ही मौके आए, जब भारतीय एथलीट मेडल जीतने से चूक गए। उन एथलीट के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। चलिए जरा उन पर एक नजर डाली जाए।

Written By: Pankaj Mishra @pankajplmishra
Published : Jul 19, 2024 17:21 IST, Updated : Jul 19, 2024 17:21 IST
milka singh - India TV Hindi
Image Source : GETTY ओलंपिक में जब पदक जीतते जीतते चूक गए भारतीय एथलीट

Olympics Indian History: साल 1900 से खेले जा रहे ओलंपिक में भारत अब तक कुल 35 मेडल अपने नाम करने में कामयाब रहा है। हालांकि अगर आजादी के बाद यानी साल 1947 के बाद की बात करें तो तब से लेकर अब तक भारत ने 30 पदक अपने नाम किए हैं। इस दौरान कुल 19 ओलंपिक खेले गए हैं। इस बार उम्मीद की जानी चाहिए जो पदकों की संख्या 35 पर है, उसमें और भी बढ़ोत्तरी होगी। हम आपको इंडिया टीवी में लगातार उन खिलाड़ियों के बारे में तो बताते रहे हैं, जिन्होंने भारत के लिए ओलंपिक में मेडल जीतने का काम किया है। लेकिन कितने ही एथलीट ऐसे भी हैं, जो पदक जीतने से बाल बाल चूक गए। यानी पदक बिल्कुल करीब था, लेकिन फिर भी हाथ से निकल गया। चलिए जरा उनके बारे में भी आपको बताते हैं। 

ओलंपिक में मोटे तौर पर टॉप 3 में रहने वाले एथलीट पदक अपने नाम करते हैं। पहले नंबर पर गोल्ड होता है, इसके बाद सिल्वर और तीसरे नंबर पर ब्रॉज मेडल आता है। लेकिन चौथे नंबर के ए​थलीट को कुछ भी नहीं मिलता। जबकि वो जरा सा ही अपने लक्ष्य ये चूकता है। चौथे स्थान पर रहने वाले खिलाड़ी को पदक से चूकने की टीस रहती है। भारतीय खिलाड़ी कई बार बेहद करीब से ओलंपिक पदक जीतने से चूके हैं। 

मेलबर्न ओलंपिक 1956 

भारतीय फुटबॉल टीम ने क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 4-2 से हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई। इस मैच में ही नेविल डिसूजा ओलंपिक में हैट्रिक गोल करने वाले पहले एशियाई बने थे। नेविल ने सेमीफाइनल में यूगोस्लाविया के खिलाफ टीम को बढ़त दिला कर अपने प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश की, लेकिन यूगोस्लाविया ने दूसरे हाफ में जोरदार वापसी करते हुए मुकाबले को अपने पक्ष में कर लिया। कांस्य पदक मुकाबले में भारत बुल्गारिया से 0-3 से हार गया। भारत के महान खिलाड़ी पीके बनर्जी अक्सर अपनी इस पीड़ा को साझा करते थे। 

रोम ओलंपिक, 1960 

महान मिल्खा सिंह 400 मीटर फाइनल में पदक के दावेदार थे, लेकिन वह सेकंड के 10वें हिस्से से कांस्य पदक जीतने से चूक गए। विभाजन के बाद अपने माता-पिता को खोने के बाद इसे उनकी सबसे बुरी याद के रूप में याद किया जाएगा। इस हार के बाद मिल्खा सिंह ने खेल लगभग छोड़ ही दिया था। उन्होंने इसके बाद 1962 के एशियाई खेलों में दो स्वर्ण पदक जीते, लेकिन ओलंपिक पदक चूकने की टीस हमेशा बनी रही। 

मास्को ओलंपिक, 1980 

नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और ग्रेट ब्रिटेन जैसे हॉकी देशों ने अफगानिस्तान पर तत्कालीन सोवियत संघ के आक्रमण पर मास्को खेलों का बहिष्कार किया था, भारतीय महिला हॉकी टीम के पास अपने पहले प्रयास में ही पदक जीतने का बड़ा मौका था। टीम को हालांकि पदक से चूकने की निराशा का सामना करना पड़ा। टीम अपने आखिरी मैच में सोवियत संघ से 1-3 से हारकर चौथे स्थान पर रही। 

लास एंजिलिस ओलंपिक, 1984

लास एंजिलिस ओलंपिक ने मिल्खा सिंह की रोम ओलंपिक की यादें फिर से ताजा कर दीं। जब पीटी उषा 400 मीटर बाधा दौड़ में सेकंड के 100वें हिस्से से कांस्य पदक से चूक गईं। इससे यह किसी भी प्रतियोगिता में किसी भारतीय एथलीट के लिए अब तक की सबसे करीबी चूक बन गई। पय्योली एक्सप्रेस के नाम से मशहूर उषा रोमानिया की क्रिस्टीना कोजोकारू के बाद चौथे स्थान पर रहीं। वह हालांकि अपनी इस साहसिक प्रयास के बाद घरेलू नाम बन गई। 

एथेंस ओलंपिक 2004 

दिग्गज लिएंडर पेस और महेश भूपति की टेनिस में भारत की संभवतः सबसे महान युगल जोड़ी एथेंस खेलों में पुरुष युगल में पोडियम पर पहुंचने से चूक गई। पेस और भूपति क्रोएशिया के मारियो एनसिक और इवान ल्युबिसिक से मैराथन मैच में 6-7, 6-4, 14-16 से हारकर कांस्य पदक से चूक गए और चौथे स्थान पर रहे। इस जोड़ी को इससे पहले सेमीफाइनल में निकोलस किफर और रेनर शटलर की जर्मनी की जोड़ी से सीधे सेटों में 2-6, 3-6 से हार का सामना करना पड़ा था। इन खेलों में कुंजारानी देवी महिलाओं की 48 किग्रा भारोत्तोलन प्रतियोगिता में चौथे स्थान पर रहीं, लेकिन वह वास्तव में पदक की दौड़ में नहीं थीं। वह क्लीन एवं जर्क वर्ग में 112.5 किग्रा वजन उठाने के अपने अंतिम प्रयास में अयोग्य घोषित कर दी गईं। कुंजारानी 190 किग्रा के कुल प्रयास के साथ कांस्य पदक विजेता थाईलैंड की एरी विराथावोर्न से 10 किग्रा पीछे रही। 

लंदन ओलंपिक, 2012 

निशानेबाज जॉयदीप करमाकर ने कांस्य पदक विजेता से एक स्थान पीछे रहने के निराशा का अनुभव किया। करमाकर पुरुषों की 50 मीटर राइफल प्रोन स्पर्धा के क्वालिफिकेशन राउंड में सातवें स्थान पर रहे थे और फाइनल में वह कांस्य पदक विजेता से सिर्फ 1.9 अंक पीछे रहे। 

रियो ओलंपिक, 2016 

दीपा करमाकर ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बनीं। महिलाओं की वॉल्ट स्पर्धा के फाइनल में जगह बनाने के बाद, वह महज 0.150 अंकों से कांस्य पदक से चूक गईं। उन्होंने 15.066 के स्कोर के साथ  चौथा स्थान हासिल किया। इसी ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा का शानदार करियर एक परीकथा जैसे समापन की ओर बढ़ रहा था, लेकिन वह भी मामूली अंतर से पदक जीतने से चूक गये। बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण जीतने वाले बिंद्रा कांस्य पदक से मामूली अंतर से पिछड़ गये। बोपन्ना को 2004 के बाद एक बार फिर से ओलंपिक पदक जीतने से दूर रहने की निराशा का सामना करना पड़ा जब उनकी और सानिया मिर्जा की भारतीय मिश्रित युगल टेनिस जोड़ी को सेमीफाइनल और फिर कांस्य पदक मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा। इस जोड़ी को कांस्य पदक मैच में लुसी ह्रादेका और रादेक स्तेपानेक से हार का सामना करना पड़ा था। 

टोक्यो आंलंपिक, 2020 

मास्को खेलों के चार दशक के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम को एक बार फिर करीब से पदक चूकने का दंश झेलना पड़ा। भारतीय टीम तीन बार की ओलंपिक चैम्पियन ऑस्ट्रेलिया को हराकर सेमीफाइनल में पहुंची, लेकिन उसे अंतिम चार मैच में अर्जेंटीना से 0-1 से हार का सामना करना पड़ा। रानी रामपाल की अगुवाई वाली टीम को इसके बार कांस्य पदक मैच में ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ 3-2 की बढ़त को बरकरार नहीं रख सकी और 3-4 से हार गयी। इसी ओलंपिक में अदिति अशोक ऐतिहासिक पदक जीतने से चूक गयी। विश्व रैंकिंग में 200 वें स्थान पर काबिल इस खिलाड़ी ने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को टक्कर दी लेकिन बेहद मामूली अंतर से पदक नहीं जीत सकी।

(pti inputs)

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