Wednesday, April 24, 2024
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Shinzo Abe: जापान में काफी ताकतवर रहा है शिंजो आबे का खानदान, नाना के नाम से आज भी सिहर उठता है चीन

Shinzo Abe: जापान के पूर्व पीएम शिंजो आबे (Shinzo Abe) का निधन हो गया है। शुक्रवार की सुबह भाषण के दौरान उन्हें गोली मारी गई थी। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया गया था। जहां बाद में डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

Pankaj Yadav Written By: Pankaj Yadav
Updated on: July 09, 2022 16:16 IST
Shinzo Abe's Family- India TV Hindi
Shinzo Abe's Family

Highlights

  • जापान के पूर्व पीएम शिंजो आबे का निधन
  • भाषण के दौरान हमलावर ने मारी गोली
  • पूरी दुनिया के शीर्ष नोताओं ने हमले की कड़ी निंदा की

Shinzo Abe: जापान के पूर्व पीएम शिंजो आबे अब इस दुनिया में नहीं रहें। शुक्रवार को नारा शहर में भाषण देने के दौरान हमलावर ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। शिंजो आबे जापान के लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। वह 4 बार जापान के प्रधानमंत्री रहें। शिंजो दुनिया के टॉप लीडर्स में गिने जाते थे। आबे ने अपना पूरा जीवन जापान के विकास में लगा दिया। इतनी मजबूत शख्सियत को खोना पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति है। आइए जानते हैं इस दमदार पर्सनैलिटी के दो पीढ़ियों के बारे में।

वर्ल्ड वार-2 में पिता सुसाइड अटैकर बनने गए थे

शिंजो आबे के पिता शिनतारो आबे World War-2 में सुसाइड अटैकर बनने के लिए नेवल एविएशन स्कूल में दाखिला लिए थे। तब तक जापान ने विश्व युद्ध में सरेंडर कर दिया था। उसके बाद शिनतारो आबे को वह मौका नहीं मिल पाया। उसके बाद शिनतारो आबे एक पॉलिटिकल रिपोर्टर बन गए। जब पत्रकारिता से मन भर गया तो वह राजनेता बनें बाद में उन्होंने 1982 से 1986 तक जापान के विदेश मंत्री के तौर पर काम किया। बता दें कि वर्ल्ड वॉर-2 में जापानी सेना ने युद्ध करने के लिए एक रणनीति बनाई थी। दरअसल जापान के पायलट दुश्मनों के ठिकानों को निशाना बनाते हुए खुद के प्लेन को क्रैश कर देते थे और शहीद हो जाते थे।

नाना नोबुसुके किशी चीनियों के यमदूत थे

शिंजो आबे के नाना नोबुसुके किशी से चीनी इतना डरते थे कि उनके मौत के बाद वे उन्हें शैतान बुलाने लगे। चीनी लेखक वांग क्विजियांग ने लिखा है- उनके अपराधों का ढेर स्वर्ग तक लगा है, वह सच में शैतान हैं। शिंजो आबे के नाना का नाम चीनियों पर अत्याचार के लिए लिया जाता है। 1931 में नोबुसुके किशी ने चीन के मंचूरिया पर कब्जा पाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। बाद में उन्हें इसका ईनाम भी मिला। चीनी इतिहासकारों का मानना है कि किशी चीनीयों से वेश्यवृत्ति करवाते थे। उन्हें बिना अपराध के लिए फांसी पर लटका देते थे और उन पर केमिकल एक्सपेरिमेंट्स भी करते थे। जापान की डेवलपमेंट के लिए वह चीनीयों से खूब मेहनत करवाते थे और उन्हें गुलाम की तरह रखते थे। कहा जाता है कि शिंजो आबे के नाना चीन के लोगों से फुशन कोल माइन में काम करवाते थे। उस माइन में 40 हजार लोग काम करते थे लेकिन हर साल उनमें से 25 हजार लोगों को रिप्लेस कर दिया जाता था क्यों कि वहां जो लोग काम करते थे उनमें सो बस कुछ लोग ही जिंदा बचते थे। किशी चीनी लोगों के प्रति इस कदर निर्दयी थे कि उन्हें 'रोबोट गुलाम' कहते थे।

नोबुसुके किशी का राजनीतिक सफर

शिंजो आबे के नाना को 1939 में तत्कालिन सरकार ने जापान बुलाकर 1940 में मंत्री बना दिया। उस वक्त जापान के प्रधानमंत्री फुमिमारो कोने थे। 1942 में नोबुसुके किशी को निचले सदन का नेता चुना गया। 1945 में किशी को दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद 3 साल के लिए जेल भेज दिया गया। 1948 में वह रिहा होकर वापस लौटे और 1955 में उन्होंने लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी LDP की स्थापना की। 1957 से 1960 तक जापान के प्रधानमंत्री रहें। 7 अगस्त 1987 को उनकी मौत हो गई।

दादा थे जमींदार

शिंजो आबे के दादा कान आबे एक जमींदार थे। कान आबे का जन्म जापान के यामागुची प्रांत के एक प्रभावशाली जमींदार परिवार में 1894 में हुआ था। बाद में वह राजनीति से भी जुड़ गए। 51 साल की उम्र में 30 जनवरी 1946 को उनका निधन हो गया।

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