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बिहार में 'एमवाई' समीकरण के टूटने की आहट! RJD रणनीति में कर सकती है बदलाव

बिहार में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद राष्ट्रीय जनता दल को अपने माई (MY) समीकरण के टूटने की आहट हुई है जिसके चलते पार्टी अब रणनीति में बदलाव कर सकती है।

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published : Jun 22, 2024 13:26 IST, Updated : Jun 22, 2024 13:58 IST
Tejashwi yadav- India TV Hindi
Image Source : FILE तेजस्वी यादव

पटना: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने हाल में ही संपन्न लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर मुस्लिम-यादव वोट बैंक के खिसकने की आहट के बाद अब रणनीति में बदलाव का मन बना लिया है। पिछले दो दिन की समीक्षा बैठक के बाद यह साफ हो गया है कि कई सीटों पर आपसी खींचतान के कारण पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली। 

कई सीटों पर विरोधी सेंध लगाने में कामयाब

आरजेडी की समीक्षा बैठक में यह बात सामने आई है कि नवादा, उजियारपुर, अररिया, पूर्णिया और सिवान जैसी कई सीटों पर पार्टी के वोट बैंक में विरोधी सेंध लगाने में कामयाब हो गए। समीक्षा बैठक में पार्टी ने सर्वसम्मति से अभय कुशवाहा को लोकसभा में संसदीय दल का नेता भी चुना। कुशवाहा इस बार औरंगाबाद लोकसभा सीट से जीते हैं। जहानाबाद लोकसभा से नव निर्वाचित सांसद सुरेंद्र यादव को लोकसभा में मुख्य सचेतक बनाया गया है जबकि राज्यसभा में फैयाज अहमद को मुख्य सचेतक के रूप में चुनकर राजद ने साफ संकेत दिया कि उसकी नजर 'एमवाई' के साथ 'के' पर भी है।

आधार विस्तार का प्रयास 

लोकसभा चुनाव में भी आरजेडी ने कुशवाहा वोट को साधने के लिए कुशवाहा जाति से आने वाले सात प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था। कई सीटों पर इसका लाभ भी महागठबंधन को मिला। इस बीच, संसदीय दल के नेता पद पर अभय कुशवाहा के चयन को आरजेडी के आधार विस्तार का प्रयास माना जा रहा है। आरजेडी  के अभय कुशवाहा के अलावा भाकपा माले के राजाराम सिंह की जीत हो गई। दूसरी तरफ एनडीए के बड़े नेता उपेंद्र कुशवाहा चुनाव हार गए। लोकसभा में राजद की ओर से किया गया यह प्रयोग सफल माना गया। अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में इसे विस्तार देने के प्रयास के रूप में ही अभय कुशवाहा के चयन को देखा जा रहा है। कुशवाहा तीन महीने पहले ही आरजेडी में शामिल हुए थे।

कुशवाहा समाज को साथ जोड़ने की कवायद

राजनीति के जानकार अजय कुमार भी कहते हैं कि बिहार में कुशवाहा की आबादी चार प्रतिशत से अधिक है। भाजपा ने सम्राट चौधरी को प्रदेश की जिम्मेदारी देकर इसी वोट बैंक पर फोकस करने के संकेत दिए थे। चुनाव नतीजों ने संकेत दिया है कि कुशवाहा समाज में आरजेडी को लेकर सोच बदल रही है। पार्टी अध्यक्ष लालू यादव और तेजस्वी यादव को इस बार के नतीजों के बाद लगता है कि थोड़ा तवज्जो देकर और मेहनत कर कुशवाहा समाज को वे अपने साथ जोड़ सकते हैं। यही कारण है कि कुछ दिन पहले ही राजद में आये अभय कुशवाहा को पार्टी ने बड़ी जिम्मेदारी दे दी।

आरजेडी जाति की नहीं जमात की पार्टी

इधर, आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने जाति की राजनीति को सिरे से नकारते हुए कहा कि आरजेडी जाति की नहीं, जमात की राजनीति करती है, गरीबों के हक की लड़ाई लड़ती है। कुशवाहा को संसदीय दल का नेता बनाया गया है, इसमें किसी को क्या परेशानी हो सकती है।उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में 23 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली आरजेडी केवल चार सीटें जीत पाई। हालांकि, 2019 के मुकाबले इस बार के परिणाम को अच्छा कहा जा सकता है, क्योंकि तब उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। आरजेडी  को इस चुनाव में 22.14 फीसद वोट मिले जबकि 2019 में उसे 15.7 फीसदी वोट मिले थे। ( इनपुट-आईएएनएस)

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