Tuesday, April 23, 2024
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PFI केस: ED ने लखनऊ कोर्ट में दाखिल की चार्जशीट

कोर्ट में दायर चार्जशीट के मुताबिक, केए राउफ शरीफ ने बताया कि उसने साल 2013-2014 में सीएफआई जॉइन की थी लेकिन उसके बाद साल 2015-2016 में वह पीएफआई का मेंबर बन गया था और 2017-2018 तक रहा।

Atul Bhatia Reported by: Atul Bhatia @atul_bhatia1
Published on: March 10, 2021 23:10 IST
PFI केस: ED ने लखनऊ कोर्ट में दाखिल की चार्जशीट- India TV Hindi
Image Source : PTI/FILE PFI केस: ED ने लखनऊ कोर्ट में दाखिल की चार्जशीट

लखनऊ/नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने लखनऊ कोर्ट में PFI मामले में चार्जशीट दाखिल की है। कोर्ट में दायर चार्जशीट के मुताबिक, केए राउफ शरीफ ने बताया कि उसने साल 2013-2014 में सीएफआई जॉइन की थी लेकिन उसके बाद साल 2015-2016 में वह पीएफआई का मेंबर बन गया था और 2017-2018 तक रहा। 2019 जनवरी में वो फिर से सीएफआई में गया और नेशनल जनरल सेक्रेटरी का पद संभाला। राउफ ने बताया जी वो सीएफआई और पीएफआई दोनों में 2015-16 से 2017-18 तक मेंबर रहा है।

राउफ ने बताया कि वो पीएफआई के मेंबर और आफिस पदाधिकारियों के संपर्क में था, जिनमें पूर्व केरल स्टेट प्रेजिडेंट और मौजूदा पीएफआई के नेशनल सेक्रेटरी वीपी नसरुद्दीन, पूर्व पीएफआई नेशनल सेरेक्टरी और मौजूदा पीएफआई जनरल सेक्रेट्री अनीस अहमद, पीएफआई एनइसी मेंबर केएम शरीफ, पूर्व पीएफआई चेयरमैन और मौजूदा पीएफआई एनईसी मेंबर पी कोया, पीएफआई एनईसी मेंबर अधिवक्ता मोहम्मद यूसुफ, पूर्व पीएफआई चेयरमैन और मौजूदा पीएफआई एनईसी ई अबूबकर और एएस इस्माइल के संपर्क में था।

इससे साबित होता है कि वो पीएफआई की टॉप लीडरशिप के संपर्क में था, उसका इनसे लिंक साबित होता है। राउफ ने आगे बताया कि सीएफआई, पीएफआई की स्टूडेंट संगठन है, जिसके चलते सीएफआई के प्रेजिडेंट का चुनाव पीएफआई की नेशनल बॉडी करती है। ये बात पीएफआई और सीएफआई के लिंक को साबित करती है और इससे ये साबित होता है कि पीएफआई का सीएफआई पर पूरा कंट्रोल है।

राउफ पिछले 7 साल से CFI और PFI का एक्टिव वर्कर है और इसी के चलते CFI के 50 से 60 हजार मेंबर में से उसे 2018 में CFI की नेशनल कमेटी में सेलेक्ट किया गया और उसके बाद उसे CFI का नेशनल जनरल सेक्रेटरी बनाया गया। जांच में पता चला और ये राउफ का कबूलनामा भी है कि वो दिसंबर 2018 में ओमान गया था और जनवरी 2019 में रेस इंटर नेशनल LLC को बतौर जरनल मैनेजर जॉइन भी किया।

अपने कबूलनामे में राउफ ने बताया कि ये नौकरी उसे नोफाल शरीफ ने ओमान की सल्तनत के जरिये दिलवाई थी। नोफाल शरीफ ओमान में PFI का मेंबर है। नोफाल को ये अपने एक दोस्त, जो CFI का ओमान में एक मेंबर फरहाद के जरिये जानता है। राउफ ने अपनी स्टेटमेंट में ये भी बताया कि उन्होंने गल्फ़ देशों से PFI के लिए मोटा फंड भी इकठ्ठा किया था। ये पूरा फंड कैश में इकठ्ठा किया गया था।

PFI के ठिकानों पर तीन दिसंबर 2020 को रेड्स के दौरान जो कागजात बरामद हुए थे, उनमें गल्फ़ देशों में मौजूद मेंबर्स के नाम और उनकी डिटेल्स लिखी हुई थी। उस लिस्ट में गल्फ़ देशों में PFI की डिस्ट्रिक्ट एक्सिक्यूटिव कमेटी के ओमान में सेक्रेटरी नोफाल का भी नाम था। रेड में एक और कागज़ बरामद हुआ था, जिसमें लिखा हुआ था कि गल्फ़ देशों में मौजूद अपने सदस्यों को फंड इकठ्ठा करने का बाकायदा टारगेट दिया गया था, जिसमें लिखा था कि आबू धाबी से कम से कम AED 12.5 लाख इकठ्ठा करने है, जिसका चार परसेंट यानी AED 50 हज़ार सात अगस्त 2020 तक इकठ्ठा हो चुका था।

चार्जशीट में ED ने दावा किया है कि PFI गल्फ़ देशों से, जिनमें UAE, कतर, सऊदी अरेबिया, ओमान, कुवैत, बहरीन आदि का नाम शामिल है, फंड इकठ्ठा कर रही थी। राउफ ने अपने बयान में बताया कि PFI की भारत की कमेटी में कुछ लीडर्स गल्फ़ देशों में मौजूद डिस्ट्रिक्ट एक्सिक्यूटिव कमेटी को कोआर्डिनेट करते थे और साथ ही PFI ने अकाउंटेंट की एक फ़ौज भी रखी हुई थी, जिनका जिम्मा था कि गल्फ़ देशों से आ रहे फंड को कैसे जायज़ ठहराना है। जांच के दौरान ये भी पता चला था कि विदेशों से आ रहा ये पैसा PFI के किसी भी बैंक एकाउंट में जमा नहीं किया जाता था। 

जांच में यह भी पाया गया कि यह सारा फंड विदेशों से हवाला और बाकि दूसरे अवैध नेटवर्क के जरिए हिंदुस्तान में लाया गया। राउफ के कबूलनामे और रेड्स के दौरान मिले कागजातों से ये स्थापित होता है कि विदेशों में मौजूद PFI मेंबर्स के द्वारा जो फंड इकठ्ठा किया गया वो हिंदुस्तान में अवैध तरीके से भेजा गया। अभी तक कि जांच में ये पता चला है कि दिसंबर 2018 से जनवरी 2019 के बीच राउफ ने ओमान में अपने बेहद करीबी नोफाल के साथ मिलकर इंटरनेशनल ट्रेड के नाम पर जो फंड हिंदुस्तान भेजा वो दरअसल देश विरोधी गतिविधियों, प्रोपेगैंडा, रेडिकल और आतंकी साजिशों में इस्तेमाल किया गया।

राउफ ने बताया कि साल 2020 से 21 के बीच कोरोना काल में मास्क के बिज़नेस डील में उसने नोफाल 24 लाख 26 हज़ार 500 रुपये अपने ICICI बैंक के एकाउंट में जमा करवाये थे। हालांकि, राउफ का कहना था कि ये पैसा मास्क की बिज़नेस डील में आया था लेकिन वो इसे साबित नहीं कर पाया। वहीं, राउफ की पेन ड्राइव से कुछ डाक्यूमेंट्स बरामद हुए जिनका टाइटल था "Mask Trading From Rauf Shareef", इस डॉक्यूमेंट के हिसाब से जो सप्लायर था वो राउफ था और रिसीवर नोफाल था। इस कागजात के बारे में राउफ ने पूछताछ में बताया कि ये उन मास्क की डिटेल्स है जोकि नोफाल ने ओमान में बेचे थे लेकिन जया मोहन की वजह से कन्साइनमेंट को पहुँचने में देरी हो गयी थी।

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