Friday, April 26, 2024
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मीडिया द्वारा खबरों को साम्प्रदायिकता का रंग देने से देश की छवि खराब हो रही है: उच्चतम न्यायालय

गौरतलब है कि, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में निजामुद्दीन स्थित मरकज में धार्मिक सभा से संबंधित ‘‘फर्जी खबरें’’ फैलाने से रोकने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: September 02, 2021 16:49 IST
मीडिया द्वारा खबरों को साम्प्रदायिकता का रंग देने से देश की छवि खराब हो रही है: उच्चतम न्यायालय- India TV Hindi
Image Source : PTI FILE PHOTO मीडिया द्वारा खबरों को साम्प्रदायिकता का रंग देने से देश की छवि खराब हो रही है: उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोशल मीडिया मंचों और वेब पोर्टल्स पर फर्जी खबरों पर गुरुवार को गंभीर चिंता जतायी और कहा कि मीडिया के एक वर्ग में दिखायी जाने वाली खबरों में साम्प्रदायिकता का रंग होने से देश की छवि खराब हो रही है। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ फर्जी खबरों के प्रसारण पर रोक के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। 

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दाखिल की याचिका

गौरतलब है कि, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में निजामुद्दीन स्थित मरकज में धार्मिक सभा से संबंधित ‘‘फर्जी खबरें’’ फैलाने से रोकने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। पीठ ने कहा, ‘‘समस्या यह है कि इस देश में हर चीज मीडिया के एक वर्ग द्वारा साम्प्रदायिकता के पहलू से दिखायी जाती है। आखिरकार इससे देश की छवि खराब हो रही है। क्या आपने (केन्द्र) इन निजी चैनलों के नियमन की कभी कोशिश भी की है।’’

सोशल मीडिया केवल ‘‘शक्तिशाली आवाजों’’ को सुनता है- उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय सोशल मीडिया तथा वेब पोर्टल्स समेत ऑनलाइन सामग्री के नियमन के लिए हाल में लागू सूचना प्रौद्योगिकी नियमों की वैधता के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों से लंबित याचिकाओं को सर्वोच्च अदालत में स्थानांतरित करने की केंद्र की याचिका पर छह हफ्ते बाद सुनवाई करने के लिए भी राजी हो गया। केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘‘न केवल साम्प्रदायिक बल्कि मनगढ़ंत खबरें भी हैं और वेब पोर्टल्स समेत ऑनलाइन सामग्री के नियमन के लिए आईटी नियम बनाए गए हैं।’’ उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि सोशल मीडिया केवल ‘‘शक्तिशाली आवाजों’’ को सुनता है और न्यायाधीशों, संस्थानों के खिलाफ बिना किसी जवाबदेही के कई चीजें लिखी जाती हैं।

कोई भी यूट्यूब पर चैनल शुरू कर सकता है- सीजेआई रमण

सीजेआई रमण ने कहा, ‘‘मुझे यह नहीं पता चला कि ये सोशल मीडिया, ट्वीटर और फेसबुक आम लोगों को कहां जवाब देते हैं। वे कभी जवाब नहीं देते। कोई जवाबदेही नहीं है। वे खराब लिखते हैं और जवाब नहीं देते तथा कहते हैं कि यह उनका अधिकार है। वे केवल शक्तिशाली लोगों की परवाह करते हैं और न्यायाधीशों, संस्थानों या आम आदमी की नहीं, हमने यही देखा है। हमारा यही अनुभव है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वेब पोर्टल्स और यूट्यूब चैनलों पर फर्जी खबरों तथा छींटाकशीं पर कोई नियंत्रण नहीं है। अगर आप यूट्यूब देखेंगे तो पाएंगे कि कैसे फर्जी खबरें आसानी से प्रसारित की जा रही हैं और कोई भी यूट्यूब पर चैनल शुरू कर सकता है।’’ 

शीर्ष न्यायालय ने जमीयत को अपनी याचिका में संशोधन की अनुमति दी

शीर्ष न्यायालय ने जमीयत को अपनी याचिका में संशोधन की अनुमति दी और उसे सॉलिसिटर जनरल के जरिए चार हफ्तों में केंद्र को देने को कहा जो उसके बाद दो सप्ताह में जवाब दे सकते हैं। सुनवाई शुरू होने पर मेहता ने याचिकाओं पर सुनवाई से दो हफ्तों का स्थगन मांगा। पिछले कुछ आदेशों का जिक्र करते हुए पीठ ने केंद्र से पूछा कि क्या उसने सोशल मीडिया पर ऐसी खबरों के लिए कोई नियामक आयोग गठित किया हे। एक मुस्लिम संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने ऑनलाइन सोशल मीडिया के नियमन के लिए बनाए नए नियमों पर कानून अधिकारी की दलीलों से सहमति जतायी। 

पीठ ने मेहता की उस याचिका पर संज्ञान लिया कि कुछ उच्च न्यायालयों ने नए आईटी नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर निर्णय नहीं दिया है तथा इन्हें उच्चतम न्यायालय को स्थानांतरित किया जाए। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह याचिकाओं को स्थानांतरित करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर मौजूदा याचिकाओं के साथ सुनवाई करेगा। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने निजामुद्दीन स्थित मरकज में एक धार्मिक सभा से संबंधित ‘‘फर्जी खबरों’’ को फैलाने से रोकने के लिए केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध करते हुए याचिका दायर की है। जमीयत ने आरोप लगाया कि तबलीगी जमात की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल पूरे मुस्लिम समुदाय को ‘‘बुरा दिखाने’’ तथा कसूरवार ठहराने के लिए किया जा रहा है तथा उसने मीडिया को ऐसी खबरें प्रकाशित/प्रसारित करने से रोकने का भी अनुरोध किया। 

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