Friday, April 26, 2024
Advertisement

World Radio Day: कभी था सुनहरा दौर, बदलते वक्त के साथ मंद होने लगी रेडियो की आवाज

आज दुनियाभर में विश्व रेडियो दिवस मनाया जा रहा है। वो रेडियो जो लोगों को सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का सबसे अहम माध्यम हुआ करता था, यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि आज वो बदलते दौर में कहां खड़ा है।

Deepak Vyas Written by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Updated on: February 13, 2022 19:02 IST
World Radio Day- India TV Hindi
Image Source : @AKASHWANIAIR World Radio Day

Highlights

  • सैकड़ों टीवी चैनल और ओटीटी प्लेटफॉर्म के कारण खतरे में अस्तित्व
  • कभी सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का अहम माध्यम हुआ करता था रेडियो
  • एफएम रेडियो चैनल, कम्यूनिटी रेडियो हैं भविष्य की संभावनाएं

World Radio Day:आज दुनियाभर में विश्व रेडियो दिवस मनाया जा रहा है। वो रेडियो जो लोगों को सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का सबसे अहम माध्यम हुआ करता था, यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि आज वो बदलते दौर में कहां खड़ा है। रेडियो की भूमिका और प्रासंगिकता पर प्रश्न भी उठते हैं। दरअसल, अब आपके हाथ में आज सैकड़ों टीवी चैनलो का रिमोट कंट्रोल है। और तो और, अब  तो ओटीटी प्लेटफॉर्म की आमद हो गई है। लोगों के पास मनोरंजन सूचना और शिक्षा के माध्यमों की बहुतायत हो गई है। ऐसे में आज रेडियो की सुरीली धड़कन लोगोंं के कितने करीब है यह रेडियो दिवस के बहाने जानना बहुत आवश्यक है। हां, ये बात और है कि अब एफएम रेडियो चैनलों ने बदलती हवा में रेडियो को एक नए स्वरूप में ला खड़ा कर दिया है। 

कब से मनाना शुरू हुआ विश्व रेडियो-डे

वर्ष 2011 में यूनेस्को ने अपने 36वें सम्मेलन में इस विश्व रेडियो दिवस मनाने की घोषणा की थी। विश्व रेडियो दिवस का मकसद आम लोगों और मीडिया में रेडियो की अहमियत के बारे में अधिक से अधिक जागरुकता प्रचारित-प्रसारित करना है। 

समृद्ध अतीत का वो जमाना याद है...!
एक समय था जब रेडियो किसानों के लिए खेती की बातें करता था, श्रमिकों की आवाज हुआ करता था, गृहिणियों के दिन का कामकाज रेडियो के मधुर गीतों और उद्घोषकों की आवाज सुने बिना पूरा नहीं होता था। गर्मी की दोपहर में पसरे सन्नाटे के बीच रेडियो के ये सदाबहार गीत ही थे, जो लोगों के दिलों में सुकून पहुंचाते थे और अकेलापन महसूस नहीं होने देते थे। फरमाइशी गीतों की चिट्ठियां आया करती थी। लेकिन वक्त के साथ सबकुछ बदलता गया।  

जानिए 5 कारण कि रेडियो आखिर कहां और क्यों पिछड़ गया?

1. आकाशवाणी के श्रोता अनुसंधान एकांश से जुड़े एक बड़े अधिकारी की मानें तो अब लोगों का लिसनिंग पैटर्न बदल चुका है।अब श्रोताओं की पसंद पहले जैसी नहीं रही है।

2. विविध भारती की ही बात करें तो अब लोग भूले बिसरे गीत सुनने के लिए सुबह का इंतजार नहीं करते, नए गाने सुनने के लिए चित्रलोक कार्यक्रम का इंतजार नहीं करते। क्योंकि अब सोशल मीडिया और इंटरनेट पर हर गाने उपलब्ध हैं, वो गाने भी जो शायद रेडियो की लाइब्रेरी में भी न हों। 

3. पहले फिल्मी गानों के एलपी और सीडी व दूसरे बड़े सेलिब्रिटीज का साक्षात्कार केवल रेडियो के पास ही हुआ करते थे। अब श्रोता गीत-संगीत सुनने के लिए रेडियो के कार्यक्रमों का इंतजार नहीं करता। केवल वही पुराने श्रोता रेडियो सुनते हैं, जिन्हें रेडियो का नशा है। लेकिन ऐसे श्रोताओं की तादाद अब कम रह गई है।

4. रेडियो के लिए रॉयल्टी नियमों का पालन करना भी मजबूरी ही रहा है। वहां हर गाने की रॉयल्टी बाकायदा दी जाती है, इसके लिए हर गाने की लॉगबुक में आज भी एंट्री होती है, इस लिखा—पढ़ी के कारण रेडियो खासकर आकाशवाणी और विविध भारती सोशल मीडिया पर उपलब्ध गीत-संगीत की एप्लीकेशंस से काफी तगड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं। 

5. अब इंटरनेट क्रांति और 4जी की आमद के बाद अपनी पसंद के हर गाने, साक्षात्कार, भेंटवार्ताएं, रेडियो डॉक्यूमेंट्री इंटरनेट के माध्यम से मोबाइल फोन में आसानी से अवेलेबल हैं। यहां तक कि आज दूर-दराज के गांवों में भी मोबाइल और इंटरनेट पहुंच चुका है। इसलिए पहले मेट्रोपोलिटन सिटी से रेडियो की लिसनिंग कम हुई, इसके बाद अब गांवों कस्बों से भी रेडियो की लिसनिंग कम हो रही है। क्योंकि हर हाथ में मोबाइल और इंटरनेट है।

क्या हैं रेडियो के लिए नई संभावनाएं?
रेडियो को श्रोताओं तक अपनी पहुंच बनाने के लिए अब स्थानीय स्तर पर तैयार होना चाहिए। जिस तरह स्थानीय न्यूज चैनल सक्सेस रहे हैं, वैसे ही स्थानीय मुद्दों और स्थानीय पर्व-त्योहार व संस्कृति को लोगों तक प्रसारित करने के लिए स्थानीय स्तर पर रेडियो चैनल खोलना चाहिए। 100 वॉट के ट्रांसमीटर दूर-दराज के कस्बाई इलाकों में लगाए जाएं, जिससे कि शहर के बाहर भी विविध भारती और आकाशवाणी के स्थानीय चैनलों के कार्यक्रम लोगों तक मजबूती से पहुंच सकें। मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्र झाबुआ और नीमच इसका एक अच्छा उदाहरण हैं। झाबुआ, नीमच में ऐसे ट्रांसमीटर टॉवर लगाए जो 15 बीस किलोमीटर का दायरा कवर करता है। 
कम्यूनिटी रेडियो ने बंधाई उम्मीद, लिख सकता है नए दौर की कहानीआज जहां परंपरागत रेडियो दम तोड़ रहा है, वहीं कम्यूनिटी रेडियो ने सफलता का एक नया अध्याय रच दिया है। साथ ही रेडियो को उम्मीद की एक किरण भी दिखाई है। मध्यप्रदेश के चंदेरी में कम्यूनिटी रेडियो का कॉन्सेप्ट सफल रहा है। यहां लोग स्थानीय स्तर पर कार्यक्रम तैयार करके प्रसारित करते हैं। सरकार भी कम्यूनिटी रेडियो के लिए नियमानुसार अनुदान देती है और लाइसेंस भी देती है। ये कॉन्सेप्ट भारत के पूर्वी तटवर्ती इलाकों में भी सफल रहा है, जहां समुद्री चक्रवातों की जानकारी भी कम्यूनिटी रेडियो के माध्यम से प्रसारित कर दी जाती है। अब तो लोगों ने अपने खुद के निजी एफएम रेडियो चैनल खोल लिए हैं, जो 24 घंटे गाने प्रसारित करते हैं और एप के माध्यम से जिन्हें विश्व में कहीं भी सुना जा सकता है।

निजी एफएम रेडियो चैनल लिख रहे नई इबारत, लेकिन चुनौती कम नहीं
2000 के दशक में यानी नई शताब्दी की शुरुआत के साथ नए प्राइवेट एफएम रेडियो चैनलों का कॉन्सेप्ट आया। इन रेडियो चैनलों ने आज कई बड़े शहरों को अपना मुरीद बना लिया। खासकर देश की युवा जनरेशन ने इसे हाथों​हाथ लिया। लेकिन इसकी लिसनिंग सिर्फ 50 किमी के दायरे में होने के कारण भारत के बड़े शहरों तक ही यह सीमित है। अब तो इसे भी मोबाइल और इंटरनेट की उपलब्धता के कारण तगड़ा कॉम्पीटिशन मिल रहा है।

रेडियो सिलोन से विविध भारती तक का सफर
श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (एसएलबीसी) जो पहले रेडियो सिलोन के नाम से जाना जाता था, 1923 में अपनी स्थापना के बाद से ही अंग्रेजी संगीत के कार्यक्रमों के चलते एशिया में सबसे लोकप्रिय स्टेशनों में गिना जाने लगा था। उस समय ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) पर फिल्मी गानों पर आधारित मनोरंजक कार्यक्रम नहीं प्रसारित होते थे।
 आज़ादी के बाद जब आकाशवाणी केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आया तब भी इस दिशा में कोशिशें नहीं हुईं। क्योंकि तब फिल्म संगीत को ‘ओछा’ माना जाता था और  और सरकारी रेडियो की स्थापना के उद्देश्यों से मेल नहीं खाने वाला माना जाता था। इस सोच के उस दौर में हिंदी फिल्मों के गीत-संगीत की लोकप्रियता अपने शिखर पर थी। यही कारण है कि भारत में रेडियो सिलोन की लिसनिंग गजब की बढ़ गई थी। रेवेन्यू बड़ी मात्रा में रेडियो सिलोन के माध्यम से श्रीलंका पहुंच रहा था। ऐसे में केंद्र सरकार ने उसकी काट के लिए विविध भारती को खड़ा किया और 3 अक्टूबर 1957 को विविध भारती की शुरुआत की गई। इसके बाद से ही रेडियो सिलोन की लिसनिंग कम होने लगी और विविध भारती देश की सुरीली धड़कन बन गया।

विश्व रेडियो दिवस का 2022 की क्या है थीम
विकास (Evolution) थीम है इस साल का। क्योंकि दुनिया हमेशा बदलती रहती है, इसलिए इसके साथ-साथ रेडियो भी विकसित होता है। यह रेडियो के लचीलेपन और स्थिरता को दर्शाता है।

रेडियो के बारे में ये हैं कुछ अहम बातें

-1936 में भारत में सरकारी 'इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया' की शुरुआत हुई जो आज़ादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया।

-आजादी के पहले भारत में 9 रेडियो केंद्र थे, विभाजन के बाद 3 पाकिस्तान में चले गए।

-हमारे देश के दूरदराज के इलाकों सहित 99 फीसदी इलाकों में रेडियो की पहुंच है। वहीं 100 से ज्यादा देशों में इसका प्रसारण किया जा रहा है।

-भौतिक विज्ञानी हेनरिक हर्ट्ज़ पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह साबित किया कि रेडियो तरंगें मौजूद हैं।

-एक 'प्रसारण' तभी होता है जब एकसाथ कई रिसीवरों को एक रेडियो सिग्नल भेजा जाता है।

-पहले रेडियो संदेश एकतरफा थे और टेलीग्राफ संदेशों को बदलने का एक प्रयास थे।

-1919 में अमेरिका में रेडियो का विकास शुरू हुआ, जहां पिट्सबर्ग में पहले रेडियो स्टेशन की स्थापना की गई.संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 15,000 रेडियो स्टेशन हैं.

-एफएम रेडियो की शुरुआत 1939 में हुई थी। सबसे लोकप्रिय एफएम रेडियो या फ़्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन रेडियो 1939 में सार्वजनिक रूप से सामने आया।

-वर्ष 2010 में, स्पेनिश रेडियो अकादमी ने यूनेस्को से अनुरोध किया कि वह एक दिन रेडियो के उपयोग और महत्व को पहचानने के लिए स्थापित करें।

-वर्ष 2011 में 13 फरवरी को यूनेस्को के आम सम्मेलन के 36वें सत्र में इसका ऐलान किया गया।

-2012 में इटली के पीसा विश्वविद्यालय द्वारा 13 फरवरी को पहली बार रेडियो-डे का आयोजन किया गया था।

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement