Wednesday, May 01, 2024
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गयाजी: ऐसा स्थान जहां तर्पण और पिंडदान करने से पितरों को मिलती है इस दुनिया से मुक्ति

बिहार का गयाजी तीर्थ स्थान पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए सबसे उचित स्थान माना जाता है। माना जाता है कि अगर आप अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाना चाहते है तो यहां पर आएं। इस स्थान पर 7 पीढ़ी के पूर्वजों तक को मोक्ष दिलाई जाती है। जानिए इस तीर्थ के बारें.

India TV Lifestyle Desk Edited by: India TV Lifestyle Desk
Published on: September 09, 2017 11:05 IST

gayaji

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गयावाल तीर्थव्रती सुधारिनी सभा के अध्यक्ष गजाधर लाल जी ने आईएएनएस को बताया, "महाभारत में लिखा है कि फल्गु तीर्थ में स्नान करके जो मनुष्य श्राद्ध में भगवान गदाधर (भगवान विष्णु) का दर्शन करता है, वह पितरों के ऋण से विमुक्त हो जाता है।"

उन्होंने बताया कि फल्गु श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन ये तीन मुख्य कार्य होते हैं। पितृपक्ष में कर्मकांड का विधि विधान अलग-अलग है। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकांड करते हैं।

गया को विष्णु का नगर माना गया है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है। विष्णु पुराण के मुताबिक गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और स्वर्गवास करते हैं। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे 'पितृ तीर्थ' भी कहा जाता है।

गया के गयापाल पंडा मनीलाल बारीक कहते हैं कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना पिंडदान हो ही नहीं सकता। पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है।

इस कारण गया मानी जाती है मोक्ष की नगरी

एक प्रचलित कथा के अनुसार, भस्मासुर के वंशज में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं। इस वरदान के मिलने के बाद स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी और प्राकृतिक नियम के विपरीत सबकुछ होने लगा। लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे।

इससे बचने के देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से मांगी। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिया दे दिया। जब ग्यासुर लेटा तो उसका श्शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस की जगह आगे चलकर गया बनी। परंतु गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और फिर उसने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने (मुक्ति) वाला बना रहे। लोग यहां पर किसी की मुक्ति की इच्छा से पिंडदान करें, उन्हें मुक्ति मिले।

यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गयाजी आते हैं।

कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों के 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था। फिलहाल इनमें से अब 48 ही बची हैं। वर्तमान समय में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है।

उल्लेखनीय है कि देश में श्राद्ध के लिए हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ सहित कई स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन गया का स्थान उसमें सर्वोपरि कहा गया है।

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनाते हैं।

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