केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सोमवार को कहा कि आने वाले 4 से 6 महीनों के भीतर भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की कीमतें पेट्रोल चालित गाड़ियों के समान हो जाएंगी। गडकरी ने कहा कि भारत की जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) पर निर्भरता एक आर्थिक बोझ है, क्योंकि देश हर साल ₹22 लाख करोड़ ईंधन आयात पर खर्च करता है। इसके अलावा यह पर्यावरण के लिए भी खतरा है। इसलिए देश के सतत विकास के लिए स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना अनिवार्य है। पीटीआई की खबर के मुताबिक, गडकरी ने FICCI हायर एजुकेशन समिट 2025 में अपने संबोधन के दौरान यह बात कही।
भारत को ऑटोमोबाइल उद्योग में नंबर 1 बनाने का लक्ष्य
खबर के मुताबिक, गडकरी ने कहा कि भारत का लक्ष्य है कि अगले 5 वर्षों में देश की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को दुनिया में नंबर 1 बनाया जाए। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने सड़क परिवहन मंत्रालय का कार्यभार संभाला था, तब भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग का आकार ₹14 लाख करोड़ था, जो अब बढ़कर ₹22 लाख करोड़ हो गया है।
अगर वैश्विक आधार पर तुलना करें तो अमेरिका का ₹78 लाख करोड़, चीन ₹47 लाख करोड़ का ऑटोमोबाइल उद्योग है, जबकि भारत का ₹22 लाख करोड़ है। गडकरी ने यह भी जानकारी दी कि मकई (कॉर्न) से एथेनॉल उत्पादन कर किसानों ने अब तक ₹45,000 करोड़ की अतिरिक्त आमदनी की है, जो भारत में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को अपनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
इलेक्ट्रिक कार और पेट्रोल कार में अंतर को समझिए
भारत में इलेक्ट्रक गाड़ियों के मामले में सबसे ज्यादा दबदबा टाटा मोटर्स का है। उदाहरण के तौर पर अगर आप टाटा नेक्सॉन का पेट्रोल वैरिएंट लेते हैं तो इसकी शुरुआती एक्सशोरूम कीमत ₹7,31,890 है, जबकि इसी कार के इलेक्ट्रिक वैरिएंट की शुरुआती एक्सशोरूम कीमत 12.49 लाख रुपये से शुरू होती है। यानी दोनों ही कारों की कीमतों में काफी अंतर है। पैसेंजर व्हीकल्स के अलावा, बाकी सेगमेंट की गाड़ियों की कीमतों में भी काफी अंतर है।






































