मुम्बई। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 30 अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में कमी आने से 44.6 करोड़ डॉलर घटकर 428.60 अरब डॉलर रह गया। रिजर्व बैंक की ओर से शुक्रवार को जारी ताजा आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। इससे पूर्व सप्ताह में, विदेशी मुद्रा भंडार 1.45 अरब डॉलर की भारी गिरावट के साथ 429.05 अरब डॉलर रह गया था।
अगस्त माह के पहले पखवाड़े में देश का विदेशी मुद्राभंडार 430.57 अरब डॉलर के अब तक के सर्वोच्च स्तर तक पहुंच गया था। रिजर्व बैंक के शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक 30 अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियां 1.124 अरब डॉलर घटकर 396 अरब डॉलर रह गई। विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति समग्र मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण घटक है।
आंकड़ों के अनुसार, समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान देश का स्वर्ण भंडार 68.2 करोड़ डॉलर बढ़कर 27.55 अरब डॉलर पर पहुंच गया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ विशेष आहरण अधिकार 1.433 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा। आईएमएफ में देश का आरक्षित मुद्रा भंडार 50 लाख डॉलर की मामूली गिरावट के साथ 3.617 अरब डॉलर रह गया।
जानिए क्या होता है विदेशी मुद्रा भंडार
विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां हैं ताकि जरूरत पड़ने पर वह अपनी देनदारियों का भुगतान कर सकें। इस तरह की मुद्राएं केंद्रीय बैंक जारी करता है। साथ ही साथ सरकार और अन्य वित्तीय संस्थानों की तरफ से केंद्रीय बैंक के पास जमा किए गई राशि होती है। यह भंडार एक या एक से अधिक मुद्राओं में रखे जाते हैं। ज्यादातर डॉलर और कुछ हद तक यूरो में विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल होता है. विदेशी मुद्रा भंडार को फॉरेक्स रिजर्व या एफएक्स रिजर्व भी कहा जाता है।
कुल मिलाकर विदेशी मुद्रा भंडार में केवल विदेशी बैंक नोट, विदेशी बैंक जमा, विदेशी ट्रेजरी बिल और अल्पकालिक और दीर्घकालिक विदेशी सरकारी प्रतिभूतियां शामिल होनी चाहिए। हालांकि, सोने के भंडार, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर), और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जमा राशि भी विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा होता है। यह व्यापक आंकड़ा अधिक आसानी से उपलब्ध है, लेकिन इसे आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय भंडार या अंतर्राष्ट्रीय भंडार कहा जाता है।
देश की इकोनॉमी पर इसका क्या असर होता है?
देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा भंडार का अहम योगदान होता है। इसको इस उदाहरण से समझते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर नवंबर 1990 से जून 1991 तक सात महीनों के लिए वे देश के प्रधानमंत्री रहे, जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने तब देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो चुकी थी, राजनीतिक हालात भी अस्थिर थे। भारत की अर्थव्यवस्था भुगतान संकट में फंसी हुई थी। इसी समय रिजर्व बैंक ने 47 टन सोना गिरवी रख कर कर्ज लेने का फैसला किया। उस समय के गंभीर हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.1 अरब डॉलर ही रह गया था। इतनी रकम तीन हफ्तों के आयात के लिए भी पूरी नहीं थी।