एक्सपर्ट का मानना है कि किसी भी तेजी से व्यापारियों के लिए बिकवाली के अवसर पैदा हो सकते हैं, जबकि बाजार की स्थितियों में अनुकूल बदलाव से रुपया 85.50 की तरफ बढ़ सकता है।
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई ने 21 मार्च को समाप्त सप्ताह में 1,794 करोड़ रुपये (19.4 करोड़ डॉलर) के शेयर बेचे हैं।
दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापने वाला डॉलर सूचकांक 0.79 प्रतिशत घटकर 104.91 पर कारोबार कर रहा था।
USD to INR exchange rate : पिछले पांच दिन तक सीमित दायरे में रहने के बाद भारतीय रुपये में मजबूती आई है। विदेशी बैंकों की डॉलर बिकवाली से रुपये में यह तेजी आई है।
जानकार का कहना है कि हम मौद्रिक नीति का इंतजार कर रहे हैं, जिसमें बाजार अनुमान लगा रहा है कि आरबीआई 25 आधार अंकों की कटौती करेगा, लेकिन कमजोर रुपये के साथ आरबीआई को मुद्रास्फीति अनुमानों पर सतर्क रहने और अपने दृष्टिकोण में आक्रामक होने की जरूरत है।
आरबीआई की तरफ से रेपो रेट में कटौती की चिंताओं और विदेशी बाजार में अमेरिकी करेंसी की व्यापक मजबूती ने भी निवेशकों के सेंटीमेंट को प्रभावित किया है।
डोनाल्ड ट्रंप के कनाडा और मेक्सिको पर 25 प्रतिशत और चीन पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाने से व्यापक व्यापार युद्ध की आशंका तेज हो गई है। इसका असर भारतीय मुद्रा पर देखा गया।
रुपये में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार गिरावट है। सोमवार को यह अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। आज रुपया टूटर 87.29 पर पहुंच गया है।
पिछले कुछ महीनों में भारतीय रुपया दबाव में रहा है लेकिन यह एशिया और अन्य देशों की मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में सबसे कम अस्थिर मुद्रा रही है।
13 जनवरी को रुपये में करीब दो साल में एक दिन में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई थी और सत्र के अंत में रुपया 66 पैसे की गिरावट के साथ अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.70 के अपने ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुआ था।
रुपया टूटने का असर भारतीय अर्थव्यवस्था, आम जनता और बिजनेस जगत पर होगा। रुपये में कमजोरी आने से विदेशों से आयत करना महंगा होगा। इसके चलते जरूरी वस्तुओं की कीमत बढ़ सकती है।
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजरी प्रमुख और कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भंसाली ने कहा कि यह गिरावट अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण है।
विदेशी मुद्रा बाजार में शुक्रवार रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 4 पैसे टूटकर अबतक के सबसे निचले स्तर 85.79 पर बंद हुआ। 2024 में भारतीय रुपये में 2.9 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका की इकोनॉमी में मजबूती से डॉलर में जबरदस्त तेजी आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आयात पर शुल्क बढ़ाने की मंशा जताई है। इस वजह से भी दुनियाभर के मुद्रा कारोबारियों के बीच डॉलर की मांग बढ़ी है।
भारत का तेल आयात, जिसकी कीमत ज्यादातर डॉलर में होती है, रुपये के मूल्यह्रास के चलते काफी महंगा हो सकता था, हालांकि, ब्रेंट क्रूड की कीमतों में 5 प्रतिशत की गिरावट से इसका असर कम हो गया है, जो दिसंबर 2023 में 77 डॉलर प्रति बैरल से 73 डॉलर प्रति बैरल हो गया है।
घरेलू बाजारों में बिकवाली और विदेशी कोषों की लगातार निकासी के चलते रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया। इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से भी रुपये पर दबाव पड़ा।
आज घरेलू शेयर बाजार में तेजी और डॉलर के कमजोर होने से रुपये को मिले समर्थन को पश्चिम एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच विदेशी फंड्स की निकासी ने बेअसर कर दिया।
किसी भी देश की मुद्रा उसकी और दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम है। करेंसी न सिर्फ इंटरनेशनल ट्रेड और फाइनेंस के साधन के तौर पर बल्कि किसी देश की आर्थिक हित और शासन के संकेतक के तौर पर भी काम करते हैं।
Dollar vs Rupees: डॉलर में मजबूती के कारण रुपये पर दबाव देखा जा रहा है और यह गिरकर अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है।
यह गिरावट दुनिया भर में डी-डॉलरीकरण के ट्रेंड के जोर पकड़ने के बीच आई है। ग्लोबल सेंट्रेल बैंक रिजर्व में अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी में गिरावट जारी है। रेन्मिन्बी दुनिया भर में चौथी सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा बन गई।
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