Friday, April 26, 2024
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IND vs WI: भारत-वेस्टइंडीज सीरीज में ‘फ्रंट फुट नोबॉल’ पर मैदानी नहीं, तीसरा अंपायर देगा फैसला

भारत-वेस्टइंडीज के बीच टी-20 और वनडे सीरीज को लेकर आईसीसी ने घोषणा किया है कि  ‘फ्रंट फुट नोबॉल’ पर फैसला मैदानी अंपायर नहीं, बल्कि तीसरा अंपायर देगा।

Bhasha Edited by: Bhasha
Published on: December 05, 2019 16:54 IST
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Image Source : GETTY IMAGE Umpire

भारत-वेस्टइंडीज के बीच खेले जाने वाले पहले टी-20 मुकाबले में अंपायरिंग को लेकर आईसीसी ने एक बड़े बदलाव का एलान किया है। आईसीसी ने गुरूवार को घोषणा की कि भारत और वेस्टइंडीज के बीच आगामी टी-20 और वनडे सीरीज में ‘फ्रंट फुट नोबॉल’ पर फैसला मैदानी अंपायर नहीं बल्कि तीसरा अंपायर करेगा। सीरीज शुक्रवार से हैदराबाद में टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच से शुरू होगी जिसमें तीन टी-20 के अलावा इतने ही वनडे खेले जायेंगे। 

इसके दौरान ही ‘फ्रंट फुट नोबॉल’ पर फैसला करने की तकनीक को ट्रायल पर रखा जायेगा। आईसीसी ने बयान में कहा, ‘‘पूरे ट्रायल के दौरान प्रत्येक फेंकी गयी गेंद की निगरानी की जिम्मेदारी तीसरे अंपायर पर होगी और उन्हें ही पता करना होगा कि कहीं गेंदबाज का पांव रेखा से आगे तो नहीं पड़ा। ’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘अगर गेंदबाज का पांव रेखा से आगे होता है तो तीसरा अंपायर इसकी सूचना मैदानी अंपायर को देगा जो बाद में नोबॉल का इशारा करेगा। नतीजतन मैदानी अंपायर तीसरे अंपायर की सलाह के बिना ‘फ्रंट फुट नोबॉल’ पर फैसला नहीं करेगा। ’’

आईसीसी ने कहा कि करीबी फैसलों में संदेह का लाभ गेंदबाज को मिलेगा। आईसीसी ने कहा, ‘‘अगर नोबॉल पर फैसला बाद में बताया जाता है तो मैदानी अंपायर आउट के फैसले को रोक देगा और नोबॉल करार दे देगा। मैच के दौरान के अन्य फैसलों के लिये सामान्य की तरह मैदानी अंपायर जिम्मेदार होगा। ’’ 

इसके अनुसार, ‘‘ट्रायल के नतीजे का इस्तेमाल यह निर्धारित करने के लिये होगा कि इस प्रणाली का नोबॉल संबंधित फैसलों की सटीकता पर लाभदायक असर होता है या नहीं और क्या इसे खेल के प्रवाह में कम से कम बाधा पहुंचाये बिना लागू किया जा सकता है या नहीं। ’’ 

तीसरे अंपायर को फ्रंट फुट नोबॉल की जिम्मेदारी देने का फैसला इस साल अगस्त में लिया गया था। इस प्रणाली का ट्रायल सबसे पहले 2016 में इंग्लैंड और पाकिस्तान के बीच वनडे सीरीज के दौरान किया गया था। आईसीसी ने अपनी क्रिकेट समिति के ज्यादा से ज्यादा सीमित ओवर के मैचों में इसके इस्तेमाल की सिफारिश के बाद फिर से इसके परीक्षण का फैसला किया। 

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