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बाराबंकी की मिट्टी से तेहरान के तख्त तक का सफर, जानें खामेनेई के उस्ताद खुमैनी का भारत से क्या है कनेक्शन

बाराबंकी के किंटूर गांव का संबंध ईरान के सुप्रीम लीडर रहे रुहोल्लाह खुमैनी से है। खुमैनी के पूर्वज किंटूर गांव से पहले इराक और फिर ईरान पहुंचे थे। चलिए आपको इतिहास से जुड़ी पूरी कहानी बताते हैं।

Edited By: Amit Mishra @AmitMishra64927
Published : Jun 24, 2025 16:39 IST, Updated : Jun 24, 2025 16:41 IST
Ayatollah Ali Khamenei (R) Ayatollah Ruhollah Khomeini (L)
Image Source : AP Ayatollah Ali Khamenei (R) Ayatollah Ruhollah Khomeini (L)

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले का किंटूर गांव। यह छोटा सा गांव है लेकिन इसकी मिट्टी का अपना ही जीवंत इतिहास है। यह वही मिट्टी है जहां से एक ऐसा सफर शुरू हुआ, जिसने ना केवल एक परिवार, बल्कि एक मुल्क की तकदीर को बदल कर रख दिया। यह कहानी है सैयद अहमद मुसावी की, जिनके कदमों ने किंटूर से खुमैन तक का सफर तय किया। मुसावी के वंशजों ने ईरान की धार्मिक सत्ता को एक नई पहचान दी। चलिए आपको इतिहास से झरोखे से ईरान की वर्तमान तस्वीर दिखाते हैं।

किंटूर से नजफ तक की राह

19वीं सदी की शुरुआत में जब ब्रिटिश हुकूमत का साया हिंदुस्तान पर गहराया था तो किंटूर के एक साधारण से शिया परिवार में सैयद अहमद मुसावी ने जन्म लिया। मुसावी के पूर्वज ईरान से ही आए थे, लेकिन किंटूर की मिट्टी ने उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ रखा था। सैयद अहमद का रुझान मजहबी इल्म की ओर था। 1830 के दशक में, जब वह बराबंकी से इराक के नजफ शहर में हजरत अली के रौजे की जियारत के लिए निकले, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह सफर इतिहास के पन्नों को पलट देगा। 

नजफ से खुमैन तक का सफर

नजफ की गलियों में सैयद अहमद ने ना केवल इल्म अर्जित किया, बल्कि एक नई मंजिल भी तलाश ली। नजफ से सैयद ईरान के खुमैन शहर पहुंचे, जहां उन्होंने नई जिंदगी शुरू की। शादी की, परिवार बसाया, लेकिन अपनी हिंदुस्तानी पहचान को कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने आगे उपनाम 'हिंदी' जोड़ा, जिससे लोग उन्हें "सैयद अहमद मुसावी हिंदी" कहकर पुकारते थे। 1869 में कर्बला में सैयद अहमद मुसावी का निधन हो गया लेकिन उनकी तालीम और नजरिया उनके वंशजों को आगे की राह दिखाता रहा।

Ayatollah Ruhollah Khomeini

Image Source : AP
Ayatollah Ruhollah Khomeini

एक क्रांति का बीज: रुहोल्लाह खुमैनी

सैयद अहमद मुसावी की विरासत को उनके पोते रुहोल्लाह खुमैनी ने आगे बढ़ाया। 24 सितंबर 1902 को खुमैन के एक साधारण घर में जन्मे रुहोल्लाह का बचपन कुरान की आयतों और मजहबी इल्म के बीच बीता। छह साल की उम्र में ही उन्होंने कुरान को दिल में उतार लिया था। कुम शहर में उनकी शिक्षा ने उन्हें शिया शास्त्रों का गहरा जानकार बनाया। खुमैनी का मन केवल किताबों तक सीमित नहीं था वो बदलाव का भी सपना देखते थे।

खुमैनी के संदेश से बदल गया ईरान

1960 के दशक में, जब शाह रजा पहलवी की अमेरिका-समर्थित सत्ता अपने चरम पर थी, रुहोल्लाह खुमैनी ने उनकी नीतियों के खिलाफ जमकर आवाज उठाई। उनकी तकरीरें आग की तरह फैलीं। शाह ने रुहोल्लाह खुमैनी को 1964 में देश से निकाल दिया। तुर्की, इराक और फिर फ्रांस में रहे खुमैनी का निर्वासन एक क्रांति की नींव बन गया। फ्रांस की धरती से उन्होंने वह संदेश दिया, जिसने 1979 में ईरान को हमेशा के लिए बदल दिया।

1979 Iran Revolution

Image Source : AP
1979 Iran Revolution

1979: एक मुल्क, एक क्रांति

1979 में ईरान की सड़कों पर क्रांति की आग भड़क उठी। अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी की वापसी ने शाह की सत्ता को जड़ से उखाड़ दिया। यह सिर्फ सत्ता का बदलाव नहीं था, यह एक मुल्क के लिए नया उदय था। ईरान अब एक इस्लामिक गणराज्य था, जहां संविधान से लेकर सड़कों तक इस्लामिक कानून की गूंज सुनाई दे रही थी। खुमैनी सुप्रीम लीडर बने और फिर उनके विचारों ने ना केवल ईरान, बल्कि पूरी दुनिया में शिया इस्लाम की गूंज को और तेज किया।

अयातुल्ला अली खामेनेई का उदय

ईरान में हो रही इसी क्रांति के बीच अयातुल्ला अली खामेनेई जैसी शख्सियत उभरी। 17 जुलाई 1939 को मशहद में जन्मे अली, सैयद जवाद खामेनेई के आठ बच्चों में से एक थे। मशहद की गलियों में उनकी परवरिश हुई। खुमैनी के विचारों से प्रेरित होकर वह क्रांति में शामिल हुए। उनके इल्म और समर्पण ने उन्हें खुमैनी का करीबी सहयोगी बनाया। 1989 में खुमैनी की मृत्यु के बाद, अयातुल्ला अली खामेनेई को सुप्रीम लीडर चुना गया। तब से लेकर आज तक खामेनेई ईरान की बागडोर संभाले हुए हैं। वैसे अयातुल्ला अली खामेनेई का भारत से कोई सीधा संबंध नहीं है लेकिन उनके उस्ताद अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी के पूर्वज भारत से ईरान गए थे। 

Ayatollah Ali Khamenei

Image Source : AP
Ayatollah Ali Khamenei

बहुत बड़ा है किंटूर गांव का किरदार

बाराबंकी जिले का किंटूर भले ही छोटा सा गांव है लेकिन इसका किरदार ईरान के इतिहास में बहुत बड़ा है। सैयद अहमद मुसावी से लेकर अयातुल्ला अली खामेनेई तक, इसी गांव ने हर पल को देखा है। इस गांव ने ईरान का इतिहास देखा है और वर्तमान देख रहा है। इस गांव की मिट्टी में बसी कहानी आज भी जिंदा है। 

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