Thursday, May 02, 2024
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India On Litmus Test:अग्निपरीक्षा के दौर से गुजर रही भारत की कूटनीति, जानें क्यों अचानक ब्रिटेन से जर्मनी तक हुए खिलाफ?

India On Fire Test:दुनिया में तेजी से बदलते सामरिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवेश में अचानक भारत की कूटनीति कठिन अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरने लगी है। कुछ दिनों पहले तक जहां, भारत मौजूदा वैश्विक परिवेश में सबसे बेहतर स्थिति में था तो वहीं अब देश के सामने कई मुश्किल परिस्थितियां पैदा हो गई हैं।

Dharmendra Kumar Mishra Reported By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Updated on: October 10, 2022 15:03 IST
India On Litmus Test- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India On Litmus Test

Highlights

  • पीएम मोदी की बढ़ती ताकत से घबराए पश्चिमी देशों ने शुरू की गोलबंदी
  • भारत पर दबाव बनाने की कोशिश में जुटे अमेरिका, ब्रिटेन, इटली और जर्मनी
  • भारतीय कूटनीति की चाल से दुनिया के सभी पांसे हो रहे पस्त

India On Fire Test:दुनिया में तेजी से बदलते सामरिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवेश में अचानक भारत की कूटनीति कठिन अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरने लगी है। कुछ दिनों पहले तक जहां, भारत मौजूदा वैश्विक परिवेश में सबसे बेहतर स्थिति में था तो वहीं अब देश के सामने कई मुश्किल परिस्थितियां पैदा हो गई हैं। अभी तक अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और जर्मनी तक सब भारत के प्रति अपना झुकाव दिखा रहे थे, मगर हाल ही में सभी के रुख अचानक से बदलने लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में उइगर मुसलमानों पर अमेरिका और पश्चिमी देशों की ओर से लाए गए प्रस्ताव पर चीन के खिलाफ वोट नहीं करके भारत ने सही किया या गलत?..... इन तमाम सवालों का जवाब आपको समझाएंगे। मगर आइए सबसे पहले आपको बताते हैं कि अचानक भारत के खिलाफ ये माहौल क्यों बनने लगा?...आखिर क्यों अमेरिका से लेकर जर्मनी और ब्रिटेन के सुर भारत के प्रति बदलने लगे?

अभी तक भारत दुनिया के क्षितिज पर एक ऐसे मुकाम पर है कि पूरी दुनिया को लग रहा कि ये देश सबसे अधिक फायदे में है। क्योंकि सभी देश भारत से उम्मीदें रख रहे हैं, भारत सबको दिशा दे रहा है, भारत की अहमियत बढ़ रही है, भारत का रुतबा बढ़ रहा है। सभी देश भारत की बात पर भरोसा कर रहे हैं, उसकी छवि तेजी से दुनिया के मानस पटल को आकर्षित कर रही है। यह सब कमाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से है। मगर अब देशों को भारत की ऐसी छवि देखी नहीं जा रही। भारत की आत्मनिर्भरता और उसकी स्वतंत्र विदेश नीति से खासकर अमेरिका, चीन और पश्चिम देश हैरान व परेशान हैं। भारत कहीं सबको पीछे छोड़ते हुए ग्लोबल लीडर न बन जाए, इसकी चिंता भी सभी को सताने लगी है। इसलिए अब भारत के खिलाफ साजिश का दौर शुरू हो गया है।

India's current diplomacy

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India's current diplomacy

भारत के प्रति क्या है अमेरिका की रणनीति
भारत के रक्षा विशेषज्ञ व सेवानिवृत्त ले. जनरल संजय कुलकर्णी कहते हैं कि अमेरिका को भी लग रहा कि भारत ऐसी स्थिति में है कि उसको अभी सब तरफ से फायदा हो रहा। अमेरिका समेत अन्य सभी देश यह देख कर परेशान हैं और ये सभी देश अमेरिका के साथ मिले हैं। अमेरिका भारत के साथ दोस्ती जरूर दिखा रहा है, लेकिन वह इसमें अपना हित देख रहा है। इसमें भारत का कोई हित शामिल नहीं है। अमेरिका भारत के हित को प्रभावित कर रहा है। इधर रूस के साथ भारत के संबंध अच्छे हैं। इसको लेकर भी पश्चिम अलग रणनीति बना रहा है कि कैसे भारत को किसी अलग कोने में धकेला जाए। यही वजह है कि अमेरिका पाकिस्तान के एफ-16 को अपग्रेड करने के लिए पैसे दे रहा है। पाकिस्तान के आर्मी चीफ का अमेरिका ने जिस तरीके से स्वागत किया है, उससे पता चलता है कि उसका रुख किस तरफ है।

भारत ने चीन के खिलाफ इसलिए नहीं किया वोट
ले. जनरल कुलकर्णी कहते हैं कि चीन के खिलाफ अमेरिका ने मानवाधिकारों के उल्लंघन का जो प्रस्ताव पेश किया था, भारत भी उसके पक्ष में है, लेकिन उसने वोट नहीं देकर खुद को इससे दूर रखा। यह भारत की अपनी कूटनीति है। ताकि कल के भारत के खिलाफ भी कश्मीर जैसे मसले पर कोई इस तरह का माहौल न बना सके। ऐसा नहीं है कि भारत को चीन से कोई डर था, बल्कि यह मौजूदा समय की जरूरत है। दुनिया के बदलते हालात के बीच खुद को नए तरीके से स्टैंड करने का भी वक्त है। आज भारत की सफलता से हर कोई चिढ़ रहा है। अमेरिका और पश्चिमी देशों को भारत का यह कदम निश्चित ही अच्छा नहीं लगा होगा। इसलिए ब्रिटेन से लेकर जर्मनी और अमेरिका तक की भाषा भारत के प्रति बदलने लगी है।  

रूस को हराने के लिए अमेरिका दे रहा यूक्रेन को हथियार
अमेरिका चाहता है कि रूस की युद्ध में पराजय हो। इसलिए वह करीब सात महीने से यूक्रेन को हथियार दे रहा है। इस दौरान अब तक करीब 15 से 17 बिलियन डॉलर के हथियार अमेरिका ने यूक्रेन को दे डाले हैं। इतना बिलियन डॉलर का हथियार तो भारत एक साल में भी नहीं खरीदता। हमने सिर्फ पांच बिलियन डॉलर का राफेल खरीद लिया था तो पूरी दुनिया में हल्ला हो गया था। जबकि अमेरिका ने जितने हथियार सात महीने में यूक्रेन को दे दिए, उसके मुकाबले पांच बिलियन डॉलर एक तिहाई ही है। इसी तरह अभी हमने अभी दो बिलियन डॉलर के करीब की कीमत का एयरक्रॉफ्ट कैरियर बनाया तो पूरी दुनिया में हल्ला हो गया। जबकि उसके ऊपर अभी हवाई जहाज भी तैनात नहीं है। जबकि यूक्रेन को अमेरिका 2014 से ही हथियार दे रहा है। रूस ने क्रीमिया पर इसी दौरान कब्जा किया था। तबसे वह यूक्रेन को हथियार दे रहा है। यूक्रेन उसका इस्तेमाल करके रूस के सामने खड़ा है।

PM Modi

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PM Modi

जर्मनी समेत अन्य पश्चिमी देश हथियारों के लिए अमेरिका पर निर्भर
ले. जनरल कुलकर्णी कहते हैं कि जर्मनी नाटो का सदस्य है। मगर जर्मनी और यूरोपीय यूनियन के अन्य सारे मेंबर्स अमेरिका के हथियारों के बल पर ही बात करते हैं। वैसे तो इन देशों को अपनी जीडीपी का कम से का चार फीसद तक हथियारों पर खर्च करना चाहिए, लेकिन वह सिर्फ 01 फीसद ही हथियारों पर इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि बाकी हथियार अमेरिका देगा। वह सभी अमेरिका के हथियारों के बल पर बात करते हैं। इसलिए कह सकते हैं कि वह सब बाकी पैसा लगाकर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार रहे हैं। वह भी अमेरिका के बलबूते पर। यह अमेरिका को भी पता है। रक्षा उपकरण बनाने की भी लिमिट है। इसमें वक्त भी लगता है। जर्मनी अभी बैकफुट पर है, इसलिए वह पाकिस्तान के साथ खड़ा दिख रहा है। कश्मीर में मानवाधिकार पर आवाज उठा रहा है। जर्मनी को पता है कि भारत की जो विश्व में छवि है और हर कोई उसे सुन रहा है, इसलिए उसे(भारत को) झटका देना है। अमेरिका इसके लिए परामर्श भी दे रहा है।  

रूस से अच्छे संबंध रखना हर हाल में जरूरी
भारत रूस के साथ अच्छे संबंध इसलिए रख रहा है कि हमें चीन से खतरा है। यदि हम अमेरिका के साथ दोस्ती रखते हैं, जिसका रूस दुश्मन है तो उसमें नुकसान भारत का है। क्योंकि उससे हमें सिर्फ इंडियन ओशियन में और क्वाड में अमेरिका फायदा दे सकता है। मगर पूर्वी लद्दाख यानि जिसको हम वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) बोलते हैं, उसके ऊपर तो खुद भारत को लड़ना है। वहां अमेरिका लड़ने नहीं आएगा। अगर वह भारत को हथियार देता भी है तो हमें उसे समझने तक में ही लड़ाई हो खत्म हो जाएगी। जैसे यूक्रेन को अमेरिका हथियार दे रहा, लेकिन लड़ रहा है यूक्रेन। यूक्रेनी सैनिक ही मारे जा रहे हैं। इसलिए कोई हथियार देता भी है तो लड़ना भारत को ही है। हमें चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ लड़ना है। इस लड़ाई में हमारा साथ कोई नहीं देगा।
अभी तो भारत का फायदा इसमें है कि उसे तेल और गैस मिलता रहे। रूस 25 फीसद सस्ते में भारत को दे रहा है। इससे हम महंगाई को नियंत्रित करने का प्रयास तो कर पा रहे हैं। क्योंकि हमारे यहां महंगाई तो है, लेकिन वह बेकाबू नहीं है। हमारा श्रीलंका, पाकिस्तान और बंग्लादेश जैसा हाल नहीं है।

रूस से अच्छे संबंध रखने से भारत खुद होगा मजबूत
यदि रूस से भारत अच्छे संबंध बनाए रखता है तो वह खुद मजबूत होता रहेगा। क्योंकि हमें यह मानकर चलना है कि चीन या पाकिस्तान किसी के साथ हमारी लड़ाई हुई तो यह हमें ही लड़ना है। वैसे तो भारत के पास रूस के पुराने हथियार 50 फीसद हैं। मगर आज रूस ऐसी स्थिति में नहीं है कि वह हमें उसका कोई मेंटिनेंस पार्ट या अपग्रेड करने के लिए कुछ दे सके। इसलिए लड़ाई खुद भारत को लड़नी होगी। यदि ऐसे में यूक्रेन की तरह सात-आठ महीने लड़ाई चली तो भारत का दिवाला निकल जाएगा। खैर तब चीन को भी भारी नुकसान होगा। यह बात चीन को भी पता है। इसलिए वह भारत से पंगा नहीं लेगा। मगर भारत को उसी हिसाब से अपनी तैयारी करनी है।

चीन और भारत को पस्त करने के लिए पाकिस्तान की ओर झुका अमेरिका
मौजूदा हालात में अब अमेरिका को लग रहा है कि यदि वह पाकिस्तान से दोस्ती रखता है तो वह चीन के खिलाफ दखलंदाजी कर सकता है। क्योंकि पाकिस्तान चीन का दोस्त है, उसके बारे में सबकुछ जानता है। पाकिस्तान का इस वक्त दिवाला निकल चुका है, उसे मदद की जरूरत है। वहीं चीन का दिवाला भले नहीं निकला हो, लेकिन वह पाकिस्तान को बहुत मदद करने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में बचाव करने के लिए सिर्फ अमेरिका ही पाकिस्तान की आर्थिक मदद कर सकता है। चीन के नागिरकों को भी पाकिस्तान में खतरा है। इसलिए चीन पाकिस्तान की ज्यादा मदद नहीं कर रहा। अमेरिका को पाकिस्तान की मदद करने में दो फायदे हैं कि वह भारत पर भी पाकिस्तान के जरिये मानसिक दबाव बना सकता है कि भारत रूस की तरफ ज्यादा न झुके और उसके जरिये चीन की नब्ज भी पकड़ सकता है।

Western Country against India !

Image Source : INDIA TV
Western Country against India !

ब्रिटेन, जर्मनी और यूएएस के बदले बोल
इस दौरान ब्रिटेन की गृहमंत्री भारत के खिलाफ बोल रही हैं। ब्रिटेन के अलावा जर्मनी, यूएएस सब भारत को वीजा देने में मुश्किल कर रहे। जर्मनी कश्मीर मसले पर अचानक बोलने लगा है। क्योंकि वह सभी चाहते हैं कि अगर भारत पश्चिम की तरफ थोड़ा झुकाव कर दे तो वह(अमेरिका और पश्चिमी देश) रूस को हराने में सफल हो जाएंगे। अगर रूस हारता है तो भारत का नुकसान है। चीन को रूस के हार और जीत दोनों में फायदा है। चीनी चाहते हैं कि रूस खत्म हो जाए फिर मैं अकेला ताकतवर बचूंगा। वामपंथ को बढ़ावा देंगे। टेक्नोलॉजी, न्यूक्लियर बम सब रूस में है। इसलिए चीन चाहता है कि रूस हारता भी है तो फायदा चीन को होगा। रूसी टेक्नोलॉजी और परमाणु हथियारों का वह फायदा उठाएगा। मगर रूस की हार से भारत को जबरदस्त नुकसान होगा। क्योंकि वही भारत का एक मात्र भरोसेमंद साथी है। पश्चिमी देश चाहते हैं कि भारत कमजोर हो। इसीलिए वह रूस के प्रति भारत का झुकाव खत्म करने के लिए तरह-तरह के दबाव बना रहे हैं।  

बिलकुल सही दिशा में है भारत की कूटनीति
ले. जनरल संजय कुलकर्णी कहते हैं कि इस वक्त भारत विपरीत परिस्थितियों और चौतरफा दबाव के बावजूद अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर कायम है। भारत यह दिखा रहा है कि वह किसी के आगे घुटने नहीं टेक सकता। भारत आत्म निर्भर हो रहा है और सशक्त हो रहा है। अर्थव्यवस्था में भी हम दुनिया में सबसे बड़े पांचवें देश हैं। साइंस, टेक्नॉलॉजी और अंतरिक्ष में भी भारत दुनिया से कदमताल कर रहा है। ऐसे में पूरी दुनिया को भारत की जरूरत है। इसलिए भारत को बिलकुल झुकना नहीं चाहिए। पीएम मोदी के नेतृत्व में इस वक्त भारत की विदेश नीति बहुत सही दिशा में जा रही है। कई बार हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर भी कह चुके हैं कि हमें जो करना है, अपने हिसाब से करना है। किसी के कहने के आधार पर भारत कोई फैसला नहीं लेगा। भारत को अपना फैसला लेने का अधिकार है। वह किसी के दबाव में आने वाला नहीं है।

जर्मनी, ब्रिटेन और इटली सबकी बंद होगी बत्ती
भारत को अपनी इसी कूटनीति पर कायम रहना चाहिए। क्योंकि ज्यादा वक्त तक जर्मनी, ब्रिटेन और इटली भारत का विरोध नहीं कर पाएंगे। अमेरिका भी खुल कर भारत का विरोध करने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि उसे चीन के खिलाफ भारत का साथ चाहिए। इस दौरान अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगा रखा है और समुद्र में शिप में उसका तेल पड़ा है। कहीं नहीं जा पा रहा है, तो यह सब चाल पैसों के लिए और तेल के लिए है। अब सर्दियां आ रही हैं। इससे जर्मनी, फ्रांस, इटली सबकी बत्ती बंद होने वाली है। हालांकि जर्मनी के पास इस सर्दी के लिए तेल है। मगर रूस-यूक्रेन की लड़ाई इतनी जल्दी खत्म नहीं होने वाली। ऐसे में किसी को तेल और गैस नहीं मिलेगी। जर्मनी 25 फीसद तेल और गैस के लिए रूस पर निर्भर करता है। ब्रिटेन और इटली भी रूस से ही तेल और गैस लेते हैं। उधर हमले में रूस की गैस सप्लाई लाइन भी फट गई है। ऐसे में पश्चिमी देशों को गैस व तेल नहीं मिल पाएगा। तब सभी देशों में बौखलाहट मचेगी। भारत की कूटनीति बहुत सही चल रही है। हम जरूरत के अनुसार अमेरिका से भी सीमित इंटरेस्ट रख रहे हैं। तभी तो रूस ने देखा कि भारत का कुछ झुकाव अमेरिका की तरफ तो उसने पाकिस्तान की तरफ झुकाव दिखाना शुरू कर दिया। मगर जब भारत ने तेल और गैस के मामले पर रूस के लिए स्टैंड लिया तो फिर रूस ने पाक को छोड़ दिया। मगर इधर अमेरिका को यह बात बुरी लग गई।

अमेरिका को चाहिए भारत का साथ
अमेरिका को चीन से लड़ने के लिए कोई चाहिए। वह सिर्फ भारत है। अगर चीन किसी से एशिया में डरता है तो वह सिर्फ भारत है। क्योंकि चीन से टक्कर लेने की स्थिति में भारत के अलावा कोई नहीं है। ताइवान मामले में अमेरिका को भारत की सख्त जरूत पड़ेगी। अन्यथा चीन को हराना मुश्किल होगा। क्योंकि अमेरिका ताइवान को सिर्फ हथियार देगा, वह लड़ने नहीं आएगा। इसलिए सबको अपनी जरूरत है। अपनी कूटनीति बिल्कुल ठीक दिशा में जा रही है। हम किसी के तरफ नहीं है। राष्ट्रीय हित, देश हित सर्वोपरि है। अमेरिका का स्पष्ट संदेश होता है कि कोई देश उसके साथ या तो दोस्ती रखे या दुश्मनी। हमसे भी यही चाहता है। मगर भारत न दोस्ती रखने वाला है न दुश्मनी। क्योंकि वह घुटने टेकने वाला नहीं है। भारत स्वावलंबी है। भारत की दुनिया में इज्जत है। भारत का अपना एक स्वाभिमान है। भारत का मस्तक पीएम मोदी लगातार ऊंचा कर रहे हैं।

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