Thursday, April 25, 2024
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नापाक मंसूबों के साथ कश्मीर पर फोकस कर रहा है कुख्यात आतंकी संगठन अल-कायदा

अल-कायदा का दक्षिण एशियाई सहयोगी कश्मीर और भारत में इस बदलाव के साथ तथाकथित गजावतुल हिंद अभियान पर जोर दे रहा है, जिसे 'भारत के खिलाफ अंतिम लड़ाई' भी कहा जा रहा है।

IANS Reported by: IANS
Published on: October 28, 2020 20:27 IST
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Image Source : PTI FILE भारतीय एजेंसियां विभिन्न हिस्सों से अल-कायदा के मॉड्यूल को समझने और उसके इरादों को नाकाम करने में सक्षम हैं।

नई दिल्ली: आतंकवादी अबू मोहसिन अल-मिसरी को 25 अक्टूबर को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से लगभग 150 किलोमीटर दक्षिण में स्थित मध्य गजनी प्रांत में मार गिराया गया। अल-मिसरी भारतीय उपमहाद्वीप के लिए आतंकी गुट के सेकंड कमांडर के तौर पर आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहा था। अल-मिसरी फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेटिगेशन (FBI) की वांछित (मोस्ट वांटेड) लिस्ट में था। उस पर अमेरिकी नागरिकों को मारने की साजिश का आरोप लगाया गया था। गजनी में मिसरी की हत्या से पता चलता है कि अल-कायदा कोर का अभी भी अफगानिस्तान-पाकिस्तान (अफपाक) क्षेत्र में प्रभुत्व कायम है।

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा, ‘तालिबान को अफगानिस्तान के नागरिकों, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने ऐसी कार्रवाई से यह साबित करना होगा कि उसने अलकायदा सहित सभी आतंकवादी नेटवर्क और समूहों के साथ संबंध तोड़ लिए हैं और वह युद्ध और हिंसा का त्याग कर देगा एवं देश में स्थायी तौर पर शांति सुनिश्चित करने के लिए वह एक स्थायी संघर्ष विराम को स्वीकार करेगा।’ अमेरिका के साथ ऐतिहासिक शांति समझौते के अनुरूप, जिस पर पहले फरवरी में हस्ताक्षर किए गए थे, तालिबान ने अल-कायदा सहित सभी आतंकवादी समूहों के साथ संबंधों में कटौती करने का वादा किया है। बदले में अमेरिका ने जुलाई 2021 तक अफगानिस्तान से सभी विदेशी सुरक्षा बलों को वापस लेने पर प्रतिबद्धता जाहिर की है।

तालिबान ने बेशक आतंकी संगठनों के साथ संबंध तोड़ने का वादा किया है, मगर यह भी तथ्य है कि अभी भी अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट दोनों की अफगानिस्तान में मौजूदगी है और वह रह-रहकर अपनी मौजूदगी दर्ज भी करा रहे हैं। वहीं हक्कानी नेटवर्क, जो पाकिस्तानी सेना का एक सशस्त्र सहयोगी हैं, उसने भी विभिन्न प्रकार के आतंकवादी समूहों के साथ मजबूत संबंध स्थापित किए हैं। वर्तमान समय में भी इन आतंकी समूहों के बीच वैचारिक मतभेद के बावजूद, तालिबान, अल-कायदा और आईएस को अतिव्यापी वफादारी, साझा सैन्य कमांडरों और निश्चित रूप से पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के संरक्षण का लाभ मिलता है।

पिछले साल से ही अल-कायदा के नेतृत्व ने, जिसमें उसका प्रमुख अयमान अल जवाहिरी भी शामिल हैं, उसने भारत के खिलाफ कश्मीर में नए सिरे से जिहाद के एजेंडे पर चलने का आह्वान किया है। भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा (एक्यूआईएस) में कुख्यात ट्रांसनेशनल जिहादी समूह की क्षेत्रीय सहायक के रूप में गठन के लगभग छह साल बाद, संगठन अपने हिंसक अभियान को कश्मीर में स्थानांतरित कर रहा है। इस साल मार्च में एक्यूआईएस ने दावा किया कि समूह अपने लंबे समय तक चले आ रहे प्रकाशन (पब्लिकेशन) नवा-ए अफगान जिहाद के शीर्षक को नवा-ए गजावतुल हिंद में बदल देगा। यह घोषणा कश्मीर के मुद्दे पर भारतीय-केंद्रित रणनीति के इरादे के तहत की गई है।

अल-कायदा का दक्षिण एशियाई सहयोगी कश्मीर और भारत में इस बदलाव के साथ तथाकथित गजावतुल हिंद अभियान पर जोर दे रहा है, जिसे 'भारत के खिलाफ अंतिम लड़ाई' भी कहा जा रहा है। हालांकि आतंकी समूह के मंसूबों को नाकाम करने के लिए भारतीय सुरक्षा बल और भारतीय एजेंसियां भी सतर्क हैं। भारतीय एजेंसियां विभिन्न हिस्सों से अल-कायदा के मॉड्यूल को समझने और उसके इरादों को नाकाम करने में सक्षम हैं। पिछले महीने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने पश्चिम बंगाल में अल-कायदा के एक ऐसे ही मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया और 9 संदिग्धों को गिरफ्तार किया।

ये सभी भर्तियां पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद के प्रशिक्षण शिविरों से हुई थीं। भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद से पाकिस्तान ने भारत को विभिन्न मंचों पर घेरने की कोशिश की, मगर वह हर बार नाकाम रहा। भारत द्वारा उसे हाशिए पर कर दिए जाने जाने के बाद, पाकिस्तान हताश हो गया है और उसने लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) को अल-कायदा को समर्थन देने के लिए कहा है।

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