Thursday, April 25, 2024
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मिलिए दुर्गम पहाड़ों के कर्मयोगी से, जिसने बदल दिया पढ़ने-पढ़ाने का तरीका, हर कोई करता है तारीफ

भास्कर निष्काम कर्मयोगी की तरह दुर्गम गांव में रहकर बच्चों को मनोयोग से पढ़ा रहे हैं, उनकी इस साधना का अहसास न सिर्फ जिला प्रशासन बल्कि केंद्रीय सरकार को भी है। भास्कर जोशी कई पुरस्कारों से नवाज़े जा चुके हैं।

Sanjay Bisht Written by: Sanjay Bisht
Updated on: May 11, 2020 18:28 IST
Bhaskar Joshi Students- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV मिलिए दुग्रम पहाड़ों के कर्मयोगी से, जिसने बदल दिया पढ़ने-पढ़ाने का तरीका, हर कोई करता है तारीफ

धौलादेवी. बात अगर घूमने की हो तो हमारे मन में सबसे पहले शायद पहाड़ी इलाका ही आए, पहाड़ों में घूमना शायद ही किसी को पसंद न हो, लेकिन जब बात करियर बनाने की आती है तो पहाड़ के लोग भी पहाड़ों से दूर भागने लगते हैं। इसकी भी एक बड़ी वजह है, दरअसल अगर पहाड़ों में किसी की तबियत खराब हो जाए तो आपको डॉक्टर के पास पहुंचने के लिए डोली या पालकी का सहारा लेना पड़ेगा। गांव से कच्ची सड़क..कच्ची सड़क से सड़क और सड़क से मुख्य सड़क तक पहुंचते-पहुंचते ही आपका आधा दिन तबाह हो सकता है।

पहाड़ों में बहुत सी जगहों पर टेलीफोन और इंटरनेट नेटवर्क आपको चिढ़ाते हैं, इसीलिए शायद ज्यादातर पहाड़ी टीचर भी दुर्गम जगहों में हुई अपनी पोस्टिंग को कालापानी मानते हैं और सुगम जगहों में अपने ट्रांसफर के लिए प्रयासरत रहते हैं, जो प्रयास नहीं कर पाते वे बेचारे कुड़ते रहते हैं, जलते रहते हैं लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों के दुर्गम स्थानों में भी शिक्षा की धूनी रमाई जा रही हैं, सरकारी सिस्टम के कुछ ऐसे चेंजिंग एजेंट भी हैं जो चुनौतियों के सामने आत्मसमर्पण करने को तैयार नहीं हैं। कुछ शिक्षकों ने पहाड़ों में शिक्षा की ऐसी अलख जगा रखी है, जिससे पूरा पहाड़ रौशन है। ऐसे ही एक शिक्षक हैं, भास्कर जोशी।

भास्कर जोशी दुर्गम जगहों के मसीहा अध्यापक क्यों हैं, इसका अंदाजा एक वीडियो से लगाया जा सकता है। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, इस वीडियो में छोटे-छोटे स्कूली बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते नजर आए। ये स्कूली बच्चे सरकारी स्कूल में एडमिशन का संदेश दे रहे थे। इन बेहद प्रतिभावान बच्चों के गुरु हैं भास्कर जोशी। भास्कर अल्मोड़ा के धौलादेवी ब्लॉक के बजेला गांव के टीचर हैं। यह गांव इतना दुर्गम है कि अल्मोड़ा से इस गांव तक पहुंचने में आधा दिन लगता है। सिर्फ इतना ही नहीं, चार पहिया वाहन से सवारी करने के बाद, करीब 7 किलोमीटर की दूरी पैदल पार कर इस गांव बजेला में पहुंचा जा सकता है।

भास्कर 2013 से इस प्राइमरी स्कूल में नियुक्त हैं। शुरुआत में भास्कर जोशी ने पास ही के एक कस्बे में किराए पर मकान लिया लेकिन स्कूल से दूर रहकर बात नहीं बनी। इसलिए बाद में वह गांव में ही रहने आ गए और फिर बच्चों के साथ भास्कर का प्रयोग शुरु हुआ। भास्कर जब गांव के स्कूल में आए, तब स्कूल की हालात बेहद खराब थी। सिर्फ 10 बच्चे इस स्कूल में पढ़ रहे थे। भास्कर ने घर घर जाकर कैंपेन चलाया।

अभिभावकों को भरोसा दिलाया और बच्चों को गांव के स्कूल भेजने की अपील की। कई माता-पिता आर्थिक बोझ सहकर अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए दूर दूर के प्राइवेट स्कूलों में भेज रहे थे, भास्कर ने ऐसे माता पिता से भी बात की। स्कूल आ रहे बच्चों को नए तरीकों से शिक्षा दी। हर छात्र की कमजोरी का पता लगाया और उसे दूर किया। साल दर साल स्कूल का रिजल्ट अच्छा आने लगा, और अब भास्कर के स्कूल में 27 बच्चे पढ़ने लगे हैं। प्राइमरी स्कूल बजेला के छात्रों को प्राइवेट स्कूल के छात्रों से कम सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। सरकारी स्कूल के बच्चे फर्नीचर में बैठते हैं और प्रोजेक्टर के जरिए पढ़ाई करते हैं।

भास्कर कक्षा 1 से लेकर 5 तक के स्कूल में अकेले टीचर हैं। आमतौर पर अकेला शिक्षक होना एक चुनौती हो सकता है लेकिन भास्कर जोशी ने इस चुनौती को अवसर में तब्दील किया और स्कूल के सभी छात्रों को शिक्षा के एक ही सांचे में ढाला। हर छात्र के लिए पढ़ने की एक जैसी तकनीक को अपनाया और हर किसी के लिए अंग्रेजी के ज्ञान को अनिवार्य बनाया। न सिर्फ अंग्रेजी बल्कि गणित और विज्ञान जैसे विषयों पर भी स्कूली छात्रों को निपुण बनाया और इसीलिए भास्कर जोशी का स्कूल न सिर्फ जिले बल्कि राज्य में भी सबसे नामदार स्कूल है।

इस स्कूल के छात्रों का लोहा पूरा जिला मानता है। भास्कर निष्काम कर्मयोगी की तरह दुर्गम गांव में रहकर बच्चों को मनोयोग से पढ़ा रहे हैं, उनकी इस साधना का अहसास न सिर्फ जिला प्रशासन बल्कि केंद्रीय सरकार को भी है। भास्कर जोशी कई पुरस्कारों से नवाज़े जा चुके हैं। उन्हें केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री से टीचर इनोविट अवार्ड भी मिल चुका है।

अध्यापक भास्कर जोशी का परिवार हल्द्वानी में रहता है और वह अकेले गांव में रहते हैं। शहरों में रहने वाले हम और आप जैसे लोग अपने मोबाइल से ई कॉर्मस कंपनियों के जरिए अपने घर तक ज़रूरी सामान चुटकियों में मंगा लेते हैं लेकिन उत्तराखंड का बजेला गांव ऐसा गांव है जहां भास्कर को महीने का राशन मंगाने के लिए घोड़ों की मदद लेनी पड़ती है। गांव में मोबाइल का नेटवर्क हर दम नदारद रहता है, भास्कर बताते हैं कि गांव में एक पेड़ के नीचे ही मोबाइल का नेटवर्क आता है, ऐसे में उन्हें दुनिया से जुड़ने के लिए उस पेड़ के नीचे आना पड़ता है। भास्कर सरकारी कर्मचारी होने के बाद भी विपरीत परिस्थितियों में असाधारण काम कर रहे हैं। उनके काम को पहचान मिल रही है और दूर दूर तक ये पैगाम भी जा रहा है कि सभी सरकारी कर्मचारी मन लगाकर काम करे तो समाज की सूरत बदल सकती है, आने वाला भविष्य सुरक्षित बन सकता है।

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