Wednesday, April 24, 2024
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‘नेहरू नहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे देश के पहले प्रधानमंत्री’

कर्नल शौकत अली मलिक ने पहली बार भारतीय जमीन में भारत का झंडा फहराया था। कर्नल मलिक आजाद हिंद फौज के सैनिक थे। 1947 को दूसरी बार झंडा फहराया गया था। कांग्रेस ने इतिहास में जबरदस्ती ये तथ्य छुपाए थे। चंद्र बोस ने अंडमान-निकोबार द्वीप का नाम बदलकर शहीद

India TV News Desk Edited by: India TV News Desk
Published on: August 18, 2017 12:03 IST
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नई दिल्ली: अगर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रपौत्र के शब्दों पर विश्वास किया जाए, तो नेताजी भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। नेताजी के प्रपौत्र चंद्र बोस के अनुसार, भारत की स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को दोबारा लिखे जाने की जरूरत है। उनके अनुसार नेताजी ने 1943 में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार स्थापित की थी इसलिए नेहरू दूसरे प्रधानमंत्री थे। चंद्र बोस के मुताबिक नेताजी आजाद हिंद फौज के प्रमुख थे और उन्होंने अंडमान-निकोबार द्वीप में भारत का झंडा लहराया था। नेताजी भारत के पहले प्रधानमंत्री थे भले ही निर्वासित सरकार के पीएम थे। ये भी पढ़ें: अमेरिका में बना सबसे बड़ा हिंदू मंदिर? जानिए दुनिया के सबसे बड़े हिंदू मंदिर का सच

कर्नल शौकत अली मलिक ने पहली बार भारतीय जमीन में भारत का झंडा फहराया था। कर्नल मलिक आजाद हिंद फौज के सैनिक थे। 1947 को दूसरी बार झंडा फहराया गया था। कांग्रेस ने इतिहास में जबरदस्ती ये तथ्य छुपाए थे। चंद्र बोस ने अंडमान-निकोबार द्वीप का नाम बदलकर शहीद और स्वराज द्वीप रखे जाने की मांग करते हुए कहा कि सुभाष चंद्र बोस ने यही नाम रखा था।

“भारत की आजादी के इतिहास को सही तरीके से लिखा नहीं गया है जिसमें विकृतियां हैं। हमें लगता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) की भूमिका को ठीक से चित्रित नहीं किया गया है। हमें लगता है कि केंद्र की वर्तमान सरकार को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के विभिन्न प्रकाशित लेखों में विकृतियों को सुधारना चाहिए और नेताजी तथा आईएनए की भूमिका ठीक से चित्रित करना चाहिए,” चंद्र बोस ने कहा।

बता दें कि सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था। अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के लिए उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया और युवाओं को 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा भी दिया।

18 अगस्त 1945 को वे हवाई जहाज से मंचूरिया जा रहे थे। इस सफर के दौरान ताइहोकू हवाई अड्डे पर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें उनकी मौत हो गई। उनकी मौत भारत के इतिहास का सबसे बड़ा रहस्य बनी हुई है। उनकी रहस्यमयी मौत पर समय-समय पर कई तरह की अटकलें सामने आती रहती हैं।

वहीं कई सरकारी तथ्यों के मुताबिक 18 अगस्त, 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचुरिया जा रहे थे और इसी हवाई सफर के बाद वो लापता हो गए। हालांकि, जापान की एक संस्था ने उसी साल 23 अगस्त को ये खबर जारी किया कि नेताजी का विमान ताइवान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था जिसके कारण उनकी मौत हो गई।

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