Friday, April 19, 2024
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क्या नए कानून से सारे किसानों का हुआ नुकसान? गुजरात-महाराष्ट्र के अन्नदाताओं को मिला नए कृषि बिल से फायदा

खेती से जुड़े 3 कानूनों के खिलाफ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। इन तीनों कानूनों से पंजाब, हरियाणा समेत कुछ राज्यों के किसान नाराज हैं। उन्हें चिंता है कि नए कानून से उपज पर मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो सकता है लेकिन क्या नए कानून से सारे किसानों का नुकसान हुआ?

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: December 02, 2020 22:07 IST
New farm laws helped Rajasthan-Maharashtra farmers- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV ये कानून किसानों को नुकसान पहुंचाने वाले हैं या फायदा पहुंचाने वाले ये समझने के लिए अलग अलग राज्यों में इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने किसानों से बात की।

नई दिल्ली: खेती से जुड़े 3 कानूनों के खिलाफ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। इन तीनों कानूनों से पंजाब, हरियाणा समेत कुछ राज्यों के किसान नाराज हैं। उन्हें चिंता है कि नए कानून से उपज पर मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो सकता है लेकिन क्या नए कानून से सारे किसानों का नुकसान हुआ? ये कानून किसानों को नुकसान पहुंचाने वाले हैं या फायदा पहुंचाने वाले ये समझने के लिए अलग अलग राज्यों में इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने किसानों से बात की। आपको जानकर हैरानी होगी कि ज्यादातर राज्यों में ऐसे किसान मिले जिन्होंने कहा कि नए कानूनों से उन्हें फायदा हुआ है। 

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ऐसे ही कुछ किसान महाराष्ट्र में मिले जहां बीजेपी की सरकार नहीं है। महाराष्ट्र के नासिक में गेहूं, गन्ना और धान के अलावा सबसे ज्यादा प्याज होता है। इसके अलावा यहां अंगूर, केले और दूसरी सब्जियां की खेती होती है। ये सब कैश क्रॉप हैं। सबसे ज्यादा नुकसान की गुंजाइश कैश क्रॉप में ही होती है लेकिन नासिक के विनायक हेमाडे ने बताया कि नए कानून के कारण उन्हें कई गुना फायदा हुआ। विनायक हेमाडे नासिक के नांदुर शिंगोटे गांव के रहने वाले हैं। 

इस बार उन्होंने चार एकड़ में हरे धनिये की खेती की थी जिसपर करीब 40 हजार रुपए की लागत आई। 45 से 50 दिन की मेहनत के बाद फसल तैयार हुई। नए कानून के मुताबिक विनायक हेमाडे ने मंडी जाने के बजाए खेत से ही फसल को बेचने की कोशिश की और वो कामयब रहे। विनायक हेमाडे की फसल को नासिक के व्यापारी ने खेत से ही खरीद लिया और इसके लिए विनायक हेमाडे को 12 लाख पचास हजार रुपए का पेमेंट भी कर दिया। इस बार विनायक को मंडी के चक्कर नहीं लगाने पड़े, मजदूरी और ढुलाई का खर्चा भी बच गया। विनायक हेमाडे ने कहा कि सरकार जो बिल लेकर आई है वो वाकई में किसानों को फायदा पहुंचा रहा है क्योंकि इससे किसान डायरेक्ट अपनी फसल व्यापारी को बेच पा रहा है।

ऐसा ही एक उदाहरण गुजरात के मेहसाणा में भी देखने को मिला। मेहसाणा कॉटन की खेती के लिए मशहूर है। इस वक्त मेहसाणा में कॉटन की खरीद हो रही है और ज्यादातर किसान मंडियों में जा रहे हैं लेकिन जिन किसानों को नए कानून की जानकारी है वो मंडी के बजाए सीधे व्यापारियों से भी कॉन्टैक्ट कर रहे हैं। संवाददाता निर्णय कपूर ने बताया कि कृषि कानून बनने के बाद किसानों ने अपने ग्रुप्स बनाए हैं ताकि व्यापारियों के साथ डायरेक्ट बारगेन कर सकें और जब एक बार डील क्लोज़ हो जाती है तो फिर व्यापारी खुद किसानों का माल उठाने के लिए ट्रक्स को भेजते हैं।

इस वक्त मेहसाणा के कड़ी इलाके में रोजाना 300 ट्रक कपास लेने के लिए पहुंच रहे हैं। कुछ किसान बिना किसी ग्रुप के डायरेक्ट व्यापारियों से डील कर रहे हैं। किसानों ने बताया कि वो नए कानून की बजह से मंडी टैक्स से बच गए। पैसा तुरंत मिल रहा है और भाव मंडी से ज्यादा मिल रहा है। मंडी में 20 किलो कपास का रेट 1100 रुपए हैं जबकि कॉटन मिल 20 किलो कपास के 1140 रुपए दे रही है।

कुछ ऐसा ही हाल उत्तराखंड में भी है जहां कई नौजवान खेती की तरफ लौट रहे हैं। कोई मशरूम की खेती कर रहा है तो कोई कैप्सिकम यानी शिमला मिर्च उगा रहा है। हरिद्वार के मनमोहन भारद्वाज पहले हॉर्टिकल्चरिस्ट थे लेकिन बाद में वो मशरूम और कैप्सिकम फार्मिंग में आ गए। पिछले कुछ महीनों में मनमोहन भारद्वाज ने 10 एकड़ जमीन पर एक पॉली हाउस में कैप्सिकम और केले की खेती करनी शुरू की। 

मनमोहन ने कहा कि पहले वो जब मंडियों में अपनी फसल बेचते थे तो उन्हें अपनी फसल का काफी कम दाम मिलता था और पेमेंट में भी देरी होती थी लेकिन नए कानून बनने के बाद वो कहीं नहीं जाते। बड़ी बड़ी कंपनियां उनके खेत पर आती हैं, फसल की कीमत भी ज्यादा मिलती है। मनमोहन भारद्वाज ने बताया कि पहले उन्हें एक किलो हरी शिमला मिर्च के मंडी में 30 रुपए मिलते थे लेकिन अब वो इसे 60 रुपए किलो के हिसाब से बेच रहे हैं। इसी तरह एक किलो कलर्ड कैप्सिकम के भी अब 100 रुपए की बजाए 135 रुपए मिल रहे हैं।

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